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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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गलातिया 3:1-14

विश्वास जनित धार्मिकता

निर्बुद्धि गलातियो! किसने तुम्हें सम्मोहित कर दिया? तुम्हारे सामने तो मसीह येशु को साफ़-साफ़ क्रूस पर दिखाया गया था! मैं तुमसे सिर्फ यह जानना चाहता हूँ: पवित्रात्मा तुमने व्यवस्था के नियम-पालन द्वारा प्राप्त किया या ईश्वरीय सुसमाचार को सुनने और उसमें विश्वास करने के द्वारा? क्या तुम इतने निर्बुद्धि हो? जो पवित्रात्मा द्वारा शुरू किया गया था क्या वह मनुष्य के कार्यों से सिद्ध बनाया जा रहा है? तुमने इतने दुःख उठाए तो क्या वे वास्तव में व्यर्थ थे? परमेश्वर, जो तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करते तथा तुम्हारे बीच चमत्कार करते हैं, क्या यह वह व्यवस्था का पालन करने के द्वारा करते हैं या विश्वास के साथ सुनने के द्वारा; जैसे अब्राहाम ने परमेश्वर में विश्वास किया और यह उनके लिए धार्मिकता माना गया? इसलिए अब यह भली-भांति समझ लो कि जिन्होंने विश्वास किया है वे ही अब्राहाम की सन्तान हैं. पवित्रशास्त्र ने पहले से जानकर कि परमेश्वर अन्यजातियों को विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएंगे, पहले ही अब्राहाम को यह शुभसन्देश देते हुए कहा था: “सभी राष्ट्र तुम में आशीषित होंगे.” इसलिए वे सभी, जो विश्वास करते हैं, अब्राहाम—विश्वास-पुरुष—के साथ, जो स्वयं विश्वासी थे, आशीषित किए जाते हैं.

व्यवस्था द्वारा लाया गया शाप

10 वे, जो व्यवस्था के कार्यों पर निर्भर हैं, शापित हैं क्योंकि पवित्रशास्त्र का वर्णन है: शापित है वह, जो व्यवस्था के हर एक नियम का पालन नहीं करता. 11 यह स्पष्ट है कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्वर के सामने कोई भी धर्मी नहीं ठहरता; क्योंकि लिखा है: वह, जो धर्मी है, विश्वास से जीवित रहेगा. 12 फिर भी, व्यवस्था विश्वास पर आधारित नहीं है, इसके विपरीत जो उसका पालन करता है, उसी के द्वारा जिएगा. 13 मसीह ने स्वयं शाप बन कर हमें व्यवस्था के शाप से मुक्त कर दिया—जैसा कि लिखा है: शापित है हर एक, जो काठ पर लटकाया जाता है. 14 यह सब इसलिए कि मसीह येशु में अब्राहाम की आशीषें अन्यजातियों तक आएँ और हम विश्वास द्वारा प्रतिज्ञा की हुई पवित्रात्मा प्राप्त करें.

मत्तियाह 14:13-21

पाँच हज़ार को भोजन

(मारक 6:30-44; लूकॉ 9:10-17; योहन 6:1-15)

13 इस समाचार को सुन येशु नाव पर सवार हो कर वहाँ से एकान्त में चले गए. जब लोगों को यह मालूम हुआ, वे नगरों से निकल कर पैदल ही उनके पीछे चल दिए. 14 तट पर पहुँचने पर येशु ने इस बड़ी भीड़ को देखा और उनका हृदय करुणा से भर गया. उन्होंने उनमें, जो रोगी थे उनको स्वस्थ किया.

15 सन्ध्याकाल उनके शिष्य उनके पास आ कर कहने लगे, “यह निर्जन स्थान है और दिन ढल रहा है इसलिए भीड़ को विदा कर दीजिए कि गाँवों में जा कर लोग अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”

16 किन्तु येशु ने उनसे कहा, “उन्हें विदा करने की कोई ज़रूरत नहीं है—तुम करो उनके लिए भोजन की व्यवस्था!”

17 उन्होंने येशु को बताया कि यहाँ उनके पास सिर्फ़ पाँच रोटियां और दो मछलियां हैं.

18 येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “उन्हें यहाँ मेरे पास ले आओ.” 19 लोगों को घास पर बैठने की आज्ञा देते हुए येशु ने पाँचों रोटियां और दोनों मछलियां अपने हाथों में ले कर स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर भोजन के लिए धन्यवाद देने के बाद रोटियां तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देना प्रारम्भ किया और शिष्यों ने भीड़ को. 20 सभी ने भरपेट खाया. शेष रह गए टुकड़े इकट्ठा करने पर बारह टोकरे भर गए. 21 वहाँ जितनों ने भोजन किया था उनमें स्त्रियों और बालकों को छोड़ कर पुरुषों की संख्या ही कोई पाँच हज़ार थी.

Saral Hindi Bible (SHB)

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