Book of Common Prayer
दीकन फ़िलिप्पॉस द्वारा वित्तमंत्री का बपतिस्मा
26 प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फ़िलिप्पॉस से कहा, “उठो, दक्षिण दिशा की ओर उस मार्ग पर जाओ, जो येरूशालेम से अज्ज़ाह नगर को जाता है.” यह जंगल का मार्ग है. 27 फ़िलिप्पॉस इस आज्ञा के अनुसार चल पड़े. मार्ग में उनकी भेंट एक खोजे से हुई, जो इथियोपिया की रानी कन्दाके की राज्यसभा में खजाँची था. वह आराधना के लिए येरूशालेम आया हुआ था. 28 वह स्वदेश लौटते समय अपने रथ में बैठे हुए भविष्यद्वक्ता यशायाह का लेख पढ़ रहा था. 29 पवित्रात्मा ने फ़िलिप्पॉस को आज्ञा दी, “आगे बढ़ो और रथ के साथ-साथ चलते जाओ.”
30 फ़िलिप्पॉस दौड़कर रथ के पास पहुँचे. उन्होंने उस व्यक्ति को भविष्यद्वक्ता यशायाह के ग्रन्थ से पढ़ते हुए सुना तो उससे प्रश्न किया, “आप जो पढ़ रहे हैं, क्या उसे समझ रहे हैं?”
31 “भला मैं इसे कैसे समझ सकता हूँ जब तक कोई मुझे ये सब न समझाए?” वित्तमंत्री ने उत्तर दिया. इसलिए उसने फ़िलिप्पॉस से रथ में बैठने की विनती की.
32 वित्तमंत्री जो भाग पढ़ रहा था, वह यह था:
उन्हें वध के लिए ठहराई हुई भेड़ के समान ले जाया गया.
जैसे ऊन कतरनेवाले के सामने मेमना शान्त रहता है,
वैसे ही उन्होंने भी अपना मुख न खोला.
33 अपनी विनम्रता के कारण वह न्याय से दूर रह गए.
कौन उनके वंशजों का वर्णन करेगा?
क्योंकि पृथ्वी पर से उनका जीवन समाप्त कर दिया गया.
34 खोजे ने फ़िलिप्पॉस से विनती की, “कृपया मुझे बताएं, भविष्यद्वक्ता यह किसका वर्णन कर रहे हैं—अपना या किसी और का?” 35 तब फ़िलिप्पॉस ने पवित्रशास्त्र के उसी भाग से प्रारम्भ कर मसीह येशु के विषय में ईश्वरीय सुसमाचार स्पष्ट किया.
36 जब वे मार्ग में ही थे, एक जलाशय को देख खजाँची ने फ़िलिप्पॉस से पूछा, “यह देखिए, जल! मेरे बपतिस्मा लेने में क्या कोई बाधा है?” 37 फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया, “यदि आप सारे हृदय से विश्वास करते हैं तो आप बपतिस्मा ले सकते हैं.” खोजे ने कहा, “मैं विश्वास करता हूँ कि मसीह येशु ही परमेश्वर के पुत्र हैं.” 38 तब फ़िलिप्पॉस ने रथ रोकने की आज्ञा दी और स्वयं फ़िलिप्पॉस व खोजे दोनों जल में उतर गए और फ़िलिप्पॉस ने उसे बपतिस्मा दिया. 39 जब वे दोनों जल से बाहर आए, सहसा फ़िलिप्पॉस प्रभु के आत्मा के द्वारा वहाँ से उठा लिए गए. वह खोजे को दोबारा दिखाई न दिए. आनन्द से भरकर खोजा स्वदेश लौट गया, 40 जबकि फ़िलिप्पॉस अज़ोतॉस नगर में देखे गए. कयसरिया नगर पहुँचते हुए वह मार्ग पर सभी नगरों में ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करते गए.
प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का उदाहरण
(मत्ति 6:9-13)
11 एक दिन मसीह येशु एक स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे. जब उन्होंने प्रार्थना समाप्त की उनके शिष्यों में से एक ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमको प्रार्थना करना सिखा दीजिए—ठीक जैसे योहन ने अपने शिष्यों को सिखाया है.”
2 मसीह येशु ने उनसे कहा, “जब भी तुम प्रार्थना करो, इस प्रकार किया करो:
“‘हमारे स्वर्गीय पिता!
आपका नाम सभी जगह सम्मानित हो.
आपका राज्य हर जगह स्थापित हो.
3 हमारा रोज़ का भोजन हमें हर दिन दिया कीजिए.
4 हमारे पापों को क्षमा कीजिए.
हम भी उनके पाप क्षमा करते हैं, जो हमारे विरुद्ध पाप करते हैं.
हमें परीक्षा में फँसने से बचाइए.’”
5 “कल्पना करो,” मसीह येशु ने उनसे आगे कहा, “तुममें से किसी का एक मित्र आधी रात में आ कर यह विनती करे, ‘मित्र! मुझे तीन रोटियां दे दो; 6 क्योंकि मेरा एक मित्र यात्रा करते हुए घर आया है और उसके भोजन के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.’ 7 तब वह अंदर ही से उत्तर दे, ‘मुझे मत सताओ! द्वार बन्द हो चुका है और मेरे बालक मेरे साथ सो रहे हैं. अब मैं उठ कर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता.’ 8 मैं जो कह रहा हूँ उसे समझो: हालांकि वह व्यक्ति मित्र होने पर भी भले ही उसे देना न चाहे, फिर भी उस मित्र के बहुत विनती करने पर उसकी ज़रूरत के अनुसार उसे अवश्य देगा.
9 “यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है: विनती करो, तो तुम्हें दिया जाएगा; खोजो, तो तुम पाओगे; द्वार खटखटाओ, तो वह तुम्हारे लिए खोल दिया जाएगा 10 क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, प्राप्त करता है; हर एक, जो खोजता है, पाता है तथा हर एक, जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.
11 “तुममें कौन पिता ऐसा है, जो अपने पुत्र के मछली माँगने पर उसे साँप दे 12 या अण्डे की विनती पर बिच्छू? 13 जब तुम बुरे होते हुए भी अपने बालकों को सबसे अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता कहीं अधिक बढ़कर उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, पवित्रात्मा क्यों न देंगे!”
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