Book of Common Prayer
25 किन्तु इस समय तो मैं येरूशालेम के पवित्र लोगों की सहायता के लिए येरूशालेम की ओर जा रहा हूँ. 26 मकेदोनिया तथा आख़ेया प्रदेश की कलीसियाएँ येरूशालेम के निर्धन पवित्र लोगों की सहायता के लिए खुशी से सामने आईं. 27 सच मानो, उन्होंने यह खुशी से किया है. वे येरूशालेमवासियों के कर्ज़दार हैं क्योंकि जब अन्यजातियों ने उनसे आत्मिक धन प्राप्त किया है तो यह उचित ही है कि अब वे भौतिक वस्तुओं द्वारा भी उनकी सहायता करें. 28 इसलिए अपने कर्तव्य को पूरा कर जब मैं निश्चित हो जाऊँगा कि उन्हें यह राशि प्राप्त हो गई है, मैं स्पेन की ओर जाऊँगा तथा मार्ग में तुमसे भेंट करूँगा. 29 यह तो मुझे मालूम है कि जब मैं तुमसे भेंट करूँगा, मेरे साथ मसीह येशु की आशीष पूरी तरह होंगी.
30 अब, प्रियजन, हमारे प्रभु मसीह येशु तथा पवित्रात्मा के प्रेम के द्वारा तुमसे मेरी विनती है कि मेरे साथ मिलकर परमेश्वर से मेरे लिए प्रार्थनाओं में जुट जाओ 31 कि मैं यहूदिया प्रदेश के अविश्वासी व्यक्तियों की योजनाओं से बच सकूँ तथा येरूशालेम के पवित्र लोगों के प्रति मेरी सेवा उन्हें स्वीकार हो 32 कि मैं परमेश्वर की इच्छा के द्वारा तुमसे आनन्दपूर्वक भेंट कर सकूँ तथा तुम्हारी संगति मेरे लिए एक सुखद विश्राम हो जाए. 33 शान्ति के परमेश्वर तुम सबके साथ रहें. आमेन.
येशु दोबारा पिलातॉस के सामने
(मारक 15:2-5; लूकॉ 23:1-5; योहन 18:28-38)
11 येशु राज्यपाल के सामने लाए गए और राज्यपाल ने उनसे प्रश्न करने प्रारम्भ किए, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”
येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह आप स्वयं ही कह रहे हैं.”
12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यन्त आश्चर्यजनक था.
15 फ़सह उत्सव पर परम्परा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बन्दी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बन्दीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बन्दी था. 17 इसलिए जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूँ, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.
19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह सन्देश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”
20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्युदण्ड की माँग करें.
21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूँ?” भीड़ का उत्तर था.
“बार-अब्बास को.”
22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?”
उन सभी ने एक साथ कहा.
“उसे क्रूस पर चढ़ाया जाए!”
23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”
किन्तु वे और अधिक चिल्लाने लगे, “क्रूस पर चढ़ाया जाए उसे!”
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