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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 14:13-23

13 अतएव अब से हम एक-दूसरे पर आरोप न लगाएं परन्तु यह निश्चय करें कि हम अपने भाई के मार्ग में न तो बाधा उत्पन्न करेंगे और न ही ठोकर का कोई कारण. 14 मुझे यह मालूम है तथा प्रभु मसीह येशु में मैं पूरी तरह से निश्चित हूँ कि अपने आप में कुछ भी अशुद्ध नहीं है. यदि किसी व्यक्ति ने किसी वस्तु को अशुद्ध मान ही लिया है, वह उसके लिए ही अशुद्ध है. 15 यदि आपके भोजन के कारण साथी उदास होता है तो तुम्हारा स्वभाव प्रेम के अनुसार नहीं रहा. अपने भोजन के कारण तो उसका विनाश न करो, जिसके लिए मसीह ने अपने प्राण दिए! 16 इसलिए जो तुम्हारी दृष्टि में तुम्हारे लिए सही और उचित है, उसके विषय में अन्यों को निन्दा करने का अवसर न मिले 17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य मात्र खान-पान के विषय में नहीं परन्तु पवित्रात्मा में धार्मिकता, शान्ति तथा आनन्द में है. 18 जो कोई मसीह की सेवा इस भाव में करता है, वह परमेश्वर को ग्रहण योग्य तथा मनुष्यों द्वारा भाता है.

19 हम अपने सभी प्रयास पारस्परिक और एक-दूसरे की उन्नति की दिशा में ही लक्षित करें. 20 भोजन को महत्व देते हुए परमेश्वर के काम को न बिगाड़ो. वास्तव में सभी भोज्य पदार्थ स्वच्छ हैं किन्तु ये उस व्यक्ति के लिए बुरे हो जाते हैं, जो इन्हें खाकर अन्य के लिए ठोकर का कारण बनता है. 21 सही यह है कि न तो माँस का सेवन किया जाए और न ही दाख़रस का या ऐसा कुछ भी किया जाए, जिससे साथी को ठोकर लगे.

22 इन विषयों पर अपने विश्वास को स्वयं अपने तथा परमेश्वर के मध्य सीमित रखो. धन्य है वह व्यक्ति, जिसकी अन्तरात्मा उसके द्वारा स्वीकृत किए गए विषयों में उसे नहीं धिक्कारती. 23 यदि किसी व्यक्ति को अपने खान-पान के विषय में संशय है, वह अपने ऊपर दोष ले आता है क्योंकि उसका खान-पान विश्वास से नहीं है. जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है.

मत्तियाह 26:57-68

येशु महासभा के सामने

(मारक 14:53-65)

57 जिन्होंने येशु को पकड़ा था वे उन्हें महायाजक कायाफ़स के यहाँ ले गए, जहाँ शास्त्री तथा पुरनिये इकट्ठा थे. 58 पेतरॉस कुछ दूरी पर येशु के पीछे-पीछे चलते हुए महायाजक के प्रांगण में आ पहुँचे और वहाँ वह प्रहरियों के साथ बैठ गए कि देखें आगे क्या-क्या होता है.

59 प्रधान पुरोहितों तथा सभी परिषद का प्रयास मात्र यह था कि वे येशु के विरुद्ध झूठे गवाह खड़े कर लें और येशु को मृत्युदण्ड दिला सकें. 60 परन्तु अनेक झूठे गवाह सामने आए किन्तु मृत्युदण्ड के लिए आवश्यक दो सहमत गवाह उन्हें फिर भी न मिले. अन्त में ऐसे दो गवाह आए.

जिन्होंने कहा, 61 “यह व्यक्ति कहता था कि यह परमेश्वर के मन्दिर को नाश करके उसे तीन दिन में दोबारा खड़ा करने में समर्थ है.”

62 यह सुनते ही महायाजक उठ खड़ा हुआ और येशु से कहने लगा, “जो आरोप ये लोग तुम पर लगा रहे हैं क्या उसके बचाव में तुम्हारे पास कोई उत्तर नहीं?” 63 येशु मौन ही रहे.

तब महायाजक ने येशु से कहा, “मैं तुम्हें जीवित परमेश्वर की शपथ देता हूँ कि तुम हमें बताओ क्या तुम्हीं मसीह—परमेश्वर-पुत्र हो?”

64 येशु ने उसे उत्तर दिया, “आपने यह स्वयं कह दिया है, फिर भी, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि इसके बाद आप मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दायीं ओर बैठे तथा आकाश के बादलों पर आता हुआ देखेंगे.”

65 यह सुनना था कि महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और कहा, “परमेश्वर-निन्दा की है इसने! क्या अब भी गवाहों की ज़रूरत है?

“आप सभी ने स्वयं यह परमेश्वर-निन्दा सुनी है. 66 अब क्या विचार है आपका?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्युदण्ड के योग्य है.”

67 तब उन्होंने येशु के मुख पर थूका, उन पर घूंसों से प्रहार किया, कुछ ने उन्हें थप्पड़ भी मारे और फिर उनसे प्रश्न किया, 68 “मसीह महोदय! यदि आप भविष्यद्वक्ता हैं, तो अपनी भविष्यवाणी से बताइए कि आपको किसने मारा है?”

Saral Hindi Bible (SHB)

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