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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 11:13-24

13 अब मैं तुमसे बातें करता हूँ, जो अन्यजाति हो. अब, जबकि मैं अन्यजातियों के लिए प्रेरित हूँ, मुझे अपनी सेवकाई का गर्व है 14 कि मैं किसी भी रीति से कुटुम्बियों में जलनभाव उत्पन्न कर सकूँ तथा इसके द्वारा उनमें से कुछ को तो उद्धार प्राप्त हो सके; 15 क्योंकि यदि उनकी अस्वीकृति संसार से परमेश्वर के मेल-मिलाप का कारण बन गई है, तो उनकी स्वीकृति मरे हुओं में से जी उठने के अलावा क्या हो सकती है?

रोपी गई शाखाएँ

16 यदि भेंट का पहिला पेडा पवित्र ठहरा तो गुँधा हुआ सारा आटा ही पवित्र है. यदि की जड़ पवित्र है तो शाखाएँ भी पवित्र ही हुईं न? 17 किन्तु यदि कुछ शाखाएँ तोड़ी गईं तथा तुम, जो एक जंगली ज़ैतून हो, उनमें रोपे गए हो तथा उनके साथ ज़ैतून पेड़ की जड़ के अंग होने के कारण पौष्टिक सार के सहभागी बन गए हो 18 तो उन शाखाओं का घमण्ड़ न भरना. यदि तुम घमण्ड़ भरते ही हो तो इस सच्चाई पर विचार करो: यह तुम नहीं, जो जड़ के पोषक हो परन्तु जड़ ही है, जो तुम्हारा पोषक है. 19 तब तुम्हारा दूसरा तर्क होगा: “शाखाएँ तोड़ी गईं कि मुझे रोपा जा सके.” 20 ठीक है. किन्तु उन्हें तो उनके अविश्वास के कारण अलग किया गया किन्तु तुम स्थिर हो अपने विश्वास के कारण. इसके विषय में घमण्ड़ न भरते हुए श्रद्धाभाव को स्थान दो. 21 यदि परमेश्वर ने स्वाभाविक शाखाओं को भी न छोड़ा तो वह तुम पर भी कृपा नहीं करेंगे.

22 परमेश्वर की कृपा तथा उनकी कठोरता पर विचार करो: गिरे हुए लोगों के लिए कठोरता तथा तुम्हारे लिए कृपा—यदि तुम वास्तव में उनकी कृपा की सीमा में बने रहते हो नहीं तो तुम्हें भी काट कर अलग कर दिया जाएगा. 23 तब वे भी, यदि वे अपने अविश्वास के हठ में बने न रहें, रोपे जाएँगे क्योंकि परमेश्वर उन्हें रोपने में समर्थ हैं. 24 जब तुम्हें उस पेड़ से, जो प्राकृतिक रूप से जंगली ज़ैतून है, काट कर स्वभाव के विरुद्ध अच्छे तथा साटे हुए पेड़ में रोपा गया है, तब वे शाखाएँ, जो प्राकृतिक हैं, अपने ही मूल पेड़ में कितनी सरलतापूर्वक रोप ली जाएँगी!

मत्तियाह 25:14-30

सोने के सिक्कों का दृष्टान्त

14 “स्वर्ग-राज्य उस व्यक्ति के समान भी है, जो एक यात्रा के लिए तैयार था, जिसने हर एक सेवक को उसकी योग्यता के अनुरूप सम्पत्ति सौंप दी. 15 एक को पाँच सोने के सिक्के,[a] एक को दो तथा एक को एक. इसके बाद वह अपनी यात्रा पर चला गया. 16 जिस सेवक को सोने के सिक्के दिए गए थे, उसने तुरन्त उस धन का व्यापार में लेन देन किया, जिससे उसने पाँच सोने के सिक्के और कमाए. 17 इसी प्रकार उस सेवक ने भी, जिसे दो सोने के सिक्के दिए गए थे, दो और कमाए. 18 किन्तु जिसे एक सोने का सिक्का दिया गया था, उसने जा कर भूमि में गड्ढा खोदा और अपने स्वामी की दी हुई वह सम्पत्ति वहाँ छिपा दी.

19 “बड़े दिनों के बाद उनके स्वामी ने लौट कर उनसे हिसाब लिया. 20 जिसे पाँच सोने के सिक्के दिए गए थे, उसने अपने साथ पाँच सोने के सिक्के और ला कर स्वामी से कहा, ‘महोदय, आपने मुझे पाँच सोने के सिक्के दिए थे. यह देखिए, मैंने इनसे पाँच और कमाए हैं.’

21 “स्वामी ने उससे कहा, ‘बड़े अच्छे, मेरे योग्य तथा विश्वसनीय सेवक! तुम थोड़े धन में विश्वसनीय पाए गए इसलिए मैं तुम्हें अनेक ज़िम्मेदारियाँ सौंपूँगा. अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो जाओ.’

22 “वह सेवक भी आया, जिसे दो सोने के सिक्के दिए गए थे. उसने स्वामी से कहा, ‘महोदय, आपने मुझे दो सोने के सिक्के दिए थे. यह देखिए, मैंने दो और कमाए हैं!’

23 “उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘बड़े अच्छे, मेरे योग्य तथा विश्वसनीय सेवक! तुम थोड़े धन में विश्वसनीय पाए गए इसलिए मैं तुम्हें भी अनेक ज़िम्मेदारियाँ सौंपूँगा. अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो जाओ.’

24 “तब वह सेवक भी उपस्थित हुआ, जिसे एक सोने का सिक्का दिया गया था. उसने स्वामी से कहा, ‘महोदय, मैं जानता था कि आप एक कठोर व्यक्ति हैं. आप वहाँ से फसल काटते हैं, जहाँ आपने बोया ही नहीं तथा वहाँ से फसल इकट्ठा करते हैं, जहाँ आपने बीज डाला ही नहीं. 25 इसलिए भय के कारण मैंने आपकी दी हुई निधि भूमि में छिपा दी. देख लीजिए, जो आपका था, वह मैं आपको लौटा रहा हूँ.’

26 “स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘अरे ओ दुष्ट, और आलसी सेवक! जब तू यह जानता ही था कि मैं वहाँ से फसल काटता हूँ, जहाँ मैंने बोया ही न था तथा वहाँ से फसल इकट्ठा करता हूँ, जहाँ मैंने बीज बोया ही नहीं? 27 तब तो तुझे मेरी सम्पत्ति महाजनों के पास रख देनी थी कि मेरे लौटने पर मुझे मेरी सम्पत्ति ब्याज सहित प्राप्त हो जाती.’

28 “‘इसलिए इससे यह सोने का सिक्का ले कर उसे दे दो, जिसके पास अब दस सोने के सिक्के हैं.’ 29 यह इसलिए कि हर एक को, जिसके पास है, और दिया जाएगा और वह धनी हो जाएगा; किन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 30 ‘इस निकम्मे सेवक को बाहर अन्धकार में फेंक दो जहाँ हमेशा रोना और दाँत पीसना होता रहेगा.’”

Saral Hindi Bible (SHB)

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