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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 9:19-33

19 सम्भवत: तुममें से कोई यह प्रश्न उठाए, “तो फिर परमेश्वर हममें दोष क्यों ढूंढ़ते हैं? भला कौन उनकी इच्छा के विरुद्ध जा सकता है?” 20 तुम कौन होते हो कि परमेश्वर से वाद-विवाद का दुस्साहस करो? क्या कभी कोई वस्तु अपने रचनेवाले से यह प्रश्न कर सकती है, “मुझे ऐसा क्यों बनाया है आपने?” 21 क्या कुम्हार का यह अधिकार नहीं कि वह मिट्टी के एक ही पिण्ड से एक बर्तन अच्छे उपयोग के लिए तथा एक बर्तन साधारण उपयोग के लिए गढ़े?

22 क्या हुआ यदि परमेश्वर अपने क्रोध का प्रदर्शन और अपने सामर्थ्य के प्रकाशन के उद्देश्य से अत्यन्त धीरज से विनाश के लिए निर्धारित पात्रों की सहते रहे? 23 इसमें उनका उद्देश्य यही था कि वह कृपापात्रों पर अपनी महिमा के धन को प्रकाशित कर सकें, जिन्हें उन्होंने महिमा ही के लिए पहले से तैयार कर लिया था 24 हमें भी, जो उनके द्वारा बुलाए गए हैं, मात्र यहूदियों ही में से नहीं, परन्तु अन्यजातियों में से भी.

सब कुछ पुराने नियम में पहले से ही घोषित है

25 जैसा कि वह भविष्यद्वक्ता होशे के अभिलेख में भी कहते हैं:

“मैं उन्हें ‘अपनी प्रजा’ घोषित करूँगा,
    जो मेरी प्रजा नहीं थे तथा उन्हें प्रिय सम्बोधित करूँगा, जो प्रियजन थे ही नहीं,”

26 और,

“जिस स्थान पर उनसे यह कहा गया था,
    ‘तुम मेरी प्रजा नहीं हो,’
    उसी स्थान पर वे जीवित परमेश्वर की ‘सन्तान घोषित किए जाएँगे.’”

27 भविष्यद्वक्ता यशायाह इस्राएल के विषय में कातर शब्द में कहते हैं:

“यद्यपि इस्राएल के वंशजों की संख्या समुद्रतट की बालू के कणों के तुल्य है,
    उनमें से थोड़े ही बचाए जाएंगे.
28 क्योंकि परमेश्वर पृथ्वी पर
    अपनी दण्ड की आज्ञा का कार्य शीघ्र ही पूरा करेंगे.

29 ठीक जैसी भविष्यद्वक्ता यशायाह की पहले से लिखित बात है:

“यदि स्वर्गीय सेनाओं के प्रभु ने
    हमारे लिए वंशज न छोड़े होते तो
    हमारी दशा सोदोम,
    और अमोराह नगरों के समान हो जाती.”

इस्राएल की असफलता का कारण

30 तब परिणाम क्या निकला? वे अन्यजाति, जो धार्मिकता को खोज भी नहीं रहे थे, उन्होंने धार्मिकता प्राप्त कर ली—वह भी वह धार्मिकता, जो विश्वास के द्वारा है. 31 किन्तु धार्मिकता की व्यवस्था की खोज कर रहा इस्राएल उस व्यवस्था के भेद तक पहुँचने में असफल ही रहा. 32 क्या कारण है इसका? मात्र यह कि वे इसकी खोज विश्वास में नहीं परन्तु मात्र रीतियों को पूरा करने के लिए करते रहे. परिणामस्वरूप उस ठोकर के पत्थर से उन्हें ठोकर लगी. 33 ठीक जैसा पवित्रशास्त्र का अभिलेख है:

मैं त्सिय्योन में एक ठोकर के पत्थर तथा ठोकर खाने की चट्टान की स्थापना कर रहा हूँ.
    जो इसमें विश्वास रखता है,
    वह लज्जित कभी न होगा.

मत्तियाह 24:1-14

ज़ैतून पर्वत का प्रवचन

(मारक 13:1-23; लूकॉ 21:5-24)

24 येशु मन्दिर से निकल कर जा रहे थे कि शिष्यों ने उनका ध्यान मन्दिर परिसर की ओर आकर्षित किया. येशु ने उनसे कहा, “तुम यह मन्दिर परिसर देख रहे हो? सच तो यह है कि एक दिन इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर रखा न दिखेगा—हर एक पत्थर ज़मीन पर बिखरा होगा.”

येशु ज़ैतून पर्वत पर बैठे हुए थे. इस एकान्त में उनके शिष्य उनके पास आए और उनसे यह प्रश्न किया, “गुरुवर, हमें यह बताइए कि ये घटनाएँ कब घटित होंगी, आपके आने तथा जगत के अन्त का चिह्न क्या होगा?”

येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “इस विषय में सावधान रहना कि कोई तुम्हें भरमाने न पाए क्योंकि मेरे नाम में अनेक यह दावा करते आएंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ’ और इसके द्वारा अनेकों को भरमा देंगे. तुम युद्धों के विषय में तो सुनोगे ही साथ ही उनके विषय में उड़ते-उड़ते समाचार भी. ध्यान रहे कि तुम इससे घबरा न जाओ क्योंकि इनका होना अवश्य है—किन्तु इसे ही अन्त न समझ लेना. राष्ट्र राष्ट्र के तथा राज्य राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. सभी जगह अकाल पड़ेंगे तथा भूकम्प आएंगे किन्तु ये सब घटनाएँ तो प्रसव-पीड़ाओं का प्रारम्भ मात्र होंगी.

“तब वे तुम्हें क्लेश देने के लिए पकड़वाएंगे और तुम्हारी हत्या कर देंगे क्योंकि मेरे कारण तुम सभी देशों की घृणा के पात्र बन जाओगे. 10 इसी समय अनेक विश्वास से हट जाएंगे तथा त्याग देंगे, वे एक दूसरे से विश्वासघात करेंगे, वे एक दूसरे से घृणा करने लगेंगे. 11 अनेक झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे. वे अनेकों को भरमा देंगे. 12 अधर्म के बढ़ने के कारण अधिकांश का प्रेम ठण्डा पड़ता जाएगा; 13 किन्तु उद्धार उसी का होगा, जो अन्तिम क्षण तक विश्वास में स्थिर रहेगा. 14 पूरे जगत में सारे राष्ट्रों के लिए प्रमाण के तौर पर राज्य के विषय में सुसमाचार का प्रचार किया जाएगा और तब जगत का अन्त हो जाएगा.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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