Book of Common Prayer
इस्राएल का स्थान
9 मसीह में मैं यह सच प्रकट कर रहा हूँ—यह झूठ नहीं—पवित्रात्मा में मेरी अन्तरात्मा इस सच की पुष्टि कर रही है 2 कि मेरा हृदय अत्यन्त खेदित और बहुत पीड़ा में है. 3 मैं यह कामना कर सकता था कि अच्छा होता कि स्वयं मैं शापित होता—अपने भाइयों के लिए, जो शारीरिक रूप से मेरे सजातीय हैं—मसीह से अलग हो जाता. 4 ये सभी इस्राएली हैं. लेपालकपन के कारण उत्तराधिकार, महिमा, वाचाएँ, व्यवस्था, मन्दिर की सेवा-आराधना निर्देश तथा प्रतिज्ञाएँ इन्हीं की हैं. 5 पुरखे भी इन्हीं के हैं तथा शारीरिक पक्ष के अनुसार मसीह भी इन्हीं के वंशज हैं, जो सर्वोच्च हैं, जो युगानुयुग स्तुति के योग्य परमेश्वर हैं, आमेन.
परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञा-पूर्ति
6 क्या परमेश्वर की प्रतिज्ञा विफल हो गयी? नहीं! वास्तविक इस्राएली वे सभी नहीं, जो इस्राएल के वंशज हैं 7 और न ही मात्र अब्राहाम का वंशज होना उन्हें परमेश्वर की सन्तान बना देता है. इसके विपरीत, लिखा है: तुम्हारे वंशज इसहाक के माध्यम से नामित होंगे.
8 अर्थात् शारीरिक रूप से जन्मे हुए परमेश्वर की सन्तान नहीं परन्तु प्रतिज्ञा के अन्तर्गत जन्मे हुए ही वास्तविक सन्तान समझे जाते हैं 9 क्योंकि प्रतिज्ञा इस प्रकार की गई: अगले वर्ष मैं इसी समय दोबारा आऊँगा और साराह पुत्रवती होगी.
10 इतना ही नहीं, रिबैक्का भी एक अन्य उदाहरण हैं: जब उन्होंने गर्भ धारण किया. उनके गर्भ में एक ही पुरुष—हमारे पूर्वज इसहाक से दो शिशु थे. 11 यद्यपि अभी तक युगल शिशुओं का जन्म नहीं हुआ था तथा उन्होंने उचित-अनुचित कुछ भी नहीं किया था, परमेश्वर का उद्धेश्य उनकी ही इच्छा के अनुसार अटल रहा; 12 कामों के कारण नहीं परन्तु उनके कारण, जिन्होंने बुलाया है. रिबैक्का से कहा गया: जेठा अपने से छोटे के अधीन होगा. 13 जैसा कि पवित्रशास्त्र में लिखा है: याक़ोब मेरा प्रिय था किन्तु एसाव मेरे द्वारा अप्रिय.
न्याय्य परमेश्वर
14 तब इसका मतलब क्या हुआ? क्या इस विषय में परमेश्वर अन्यायी थे? नहीं! बिलकुल नहीं! 15 परमेश्वर ने मोशेह से कहा था,
“मैं जिस किसी पर चाहूँ,
कृपादृष्टि करूँगा और जिस किसी पर चाहूँ करुणा.”
16 इसलिए यह मनुष्य की इच्छा या प्रयासों पर नहीं परन्तु परमेश्वर की कृपादृष्टि पर निर्भर है. 17 पवित्रशास्त्र में फ़रोह को सम्बोधित करते हुए लिखा है, “तुम्हारी उत्पत्ति के पीछे मेरा एकमात्र उद्देश्य था तुम में मेरे प्रताप का प्रदर्शन कि सारी पृथ्वी में मेरे नाम का प्रचार हो.”
सर्वशक्तिमान परमेश्वर
18 इसलिए परमेश्वर अपनी इच्छा के अनुसार अपने चुने हुए जन पर कृपा करते तथा जिसे चाहते उसे हठीला बना देते हैं.
27 “धिक्कार है तुम पर पाखण्डी, फ़रीसियो, शास्त्रियो! तुम क़ब्रों के समान हो, जो बाहर से तो सजायी-सँवारी जाती हैं किन्तु भीतर मरे हुए व्यक्ति की हड्डियाँ तथा सब प्रकार की गंदगी भरी होती है. 28 तुम भी बाहर से तो मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो किन्तु तुम्हारे अंदर कपट तथा अधर्म भरा हुआ है.
29 “धिक्कार है तुम पर पाखण्डी, फ़रीसियो, शास्त्रियो! तुम भविष्यद्वक्ताओं की क़ब्रें सँवारते हो तथा धर्मी व्यक्तियों के स्मारक को सजाते हो और कहते हो 30 ‘यदि हम अपने पूर्वजों के समय में होते, हम इन भविष्यद्वक्ताओं की हत्या के साझी न होते.’ 31 यह कह कर तुम स्वयं अपने ही विरुद्ध गवाही देते हो कि तुम उनकी सन्तान हो जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं की हत्या की थी. 32 ठीक है! भरते जाओ अपने पूर्वजों के पापों का घड़ा.”
उनके अपराध तथा आनेवाला दण्ड
33 “अरे सांपो! विषधर की सन्तान! कैसे बचोगे तुम नर्क-दण्ड से? 34 इसलिए मेरा कहना सुनो: मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्ता, ज्ञानी और पवित्रशास्त्र के शिक्षक भेज रहा हूँ. उनमें से कुछ की तो तुम हत्या करोगे, कुछ को तुम क्रूस पर चढ़ाओगे तथा कुछ को तुम यहूदी-सभागृह में कोड़े लगाओगे और नगर-नगर यातनाएँ दोगे 35 कि तुम पर सभी धर्मी व्यक्तियों के पृथ्वी पर बहाए लहू का दोष आ पड़े—धर्मी हाबिल के लहू से ले कर बैरेखाया के पुत्र ज़कर्याह के लहू तक का, जिसका वध तुमने मन्दिर और वेदी के बीच किया. 36 सच तो यह है कि इन सबका दण्ड इसी पीढ़ी पर आ पड़ेगा.”
येशु का येरूशालेम नगर पर विलाप
37 “येरूशालेम! ओ येरूशालेम! तू भविष्यद्वक्ताओं की हत्या करता तथा उनका पथराव करता है, जिन्हें तेरे लिए भेजा जाता है. कितनी बार मैंने यह प्रयास किया कि तेरी सन्तान को इकट्ठा कर एकजुट करूँ, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है किन्तु तूने न चाहा. 38 इसलिए अब यह समझ ले कि तेरा घर तेरे लिए उजाड़ छोड़ा जा रहा है. 39 मैं तुझे बताए देता हूँ कि इसके बाद तू मुझे तब तक नहीं देखेगा जब तक तू यह नारा न लगाए.
“धन्य है वह, जो प्रभु के नाम में आ रहा है!”
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