Book of Common Prayer
9 इसी कारण जिस दिन से हमने यह सुना है, हमने तुम्हारे लिए प्रार्थना करना नहीं छोड़ा और हम यह विनती करते हैं कि तुम पूरे आत्मिक ज्ञान और समझ में परमेश्वर की इच्छा के सारे ज्ञान में भरपूर होते जाओ 10 कि तुम्हारा स्वभाव प्रभु के योग्य हो, जो उन्हें हर प्रकार से प्रसन्न करने वाला हो, जो हर एक भले कार्य में फलदाई हो तथा परमेश्वर के सारे ज्ञान में उन्नत होते हुए तुम 11 सारी सहनशीलता और धीरज के लिए उनकी महिमा की शक्ति के अनुसार सारे सामर्थ से बलवान होते जाओ तथा 12 पिता का खुशी से आभार मानो, जिन्होंने तुम्हें ज्योति के राज्य में पवित्र लोगों की मीरास में शामिल होने के लिए योग्य बना दिया, 13 क्योंकि वही हमें अन्धकार के वश से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आए हैं. 14 उन्हीं में हमारा छुटकारा अर्थात् पाप की क्षमा है.
दृष्टान्त में कहे गए प्रवचन
13 यह घटना उस दिन की है जब येशु घर से बाहर झील के किनारे पर बैठे हुए थे. 2 एक बड़ी भीड़ उनके चारों ओर इकट्ठा हो गयी. इसलिए वह एक नाव में जा बैठे और भीड़ झील के तट पर रह गयी. 3 उन्होंने भीड़ से दृष्टान्तों में अनेक विषयों पर चर्चा की. येशु ने कहा.
“एक किसान बीज बोने के लिए निकला. 4 बीज बोने में कुछ बीज तो मार्ग के किनारे गिरे, जिन्हें पक्षियों ने आ कर चुग लिया. 5 कुछ अन्य बीज पथरीली भूमि पर भी जा गिरे, जहाँ पर्याप्त मिट्टी नहीं थी. पर्याप्त मिट्टी न होने के कारण वे जल्दी ही अंकुरित भी हो गए 6 किन्तु जब सूर्योदय हुआ, वे झुलस गए और इसलिए कि उन्होंने जड़ें ही नहीं पकड़ी थीं, वे मुरझा गए. 7 कुछ अन्य बीज कँटीली झाड़ियों में जा गिरे और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा दिया. 8 कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और फल लाए. यह उपज सौ गुणी, साठ गुणी, तीस गुणी थी. 9 जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.”
10 येशु के शिष्यों ने उनके पास आ कर उनसे प्रश्न किया, “गुरुवर, आप लोगों को दृष्टान्तों में ही शिक्षा क्यों देते हैं?” 11 उसके उत्तर में येशु ने कहा, “स्वर्ग-राज्य के रहस्य जानने की क्षमता तुम्हें तो प्रदान की गई है, उन्हें नहीं. 12 क्योंकि जिस किसी के पास है उसे और अधिक प्रदान किया जाएगा और वह सम्पन्न हो जाएगा किन्तु जिसके पास नहीं है उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है. 13 यही कारण है कि मैं लोगों को दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूँ:
“क्योंकि वे देखते हुए भी कुछ नहीं देखते तथा
सुनते हुए भी कुछ नहीं सुनते और
न उन्हें इसका अर्थ ही समझ आता है.
14 उनकी इसी स्थिति के विषय में भविष्यद्वक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है:
“‘तुम सुनते तो रहोगे किन्तु समझोगे नहीं;
तुम देखते तो रहोगे किन्तु तुम्हें कोई ज्ञान न होगा;
15 क्योंकि इन लोगों का मन-मस्तिष्क मन्द पड़ चुका है.
वे अपने कानों से ऊँचा ही सुना करते हैं. उन्होंने अपनी आँखें मूंद रखी हैं
कि कहीं वे अपनी आँखों से देखने न लगें,
कानों से सुनने न लगें तथा
अपने हृदय से समझने न लगें और मेरी ओर फिर जाएँ कि मैं उन्हें स्वस्थ कर दूँ.’
16 धन्य हैं तुम्हारी आँखें क्योंकि वे देखती हैं और तुम्हारे कान क्योंकि वे सुनते हैं.
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