Book of Common Prayer
एज्रा वंश के एतान का एक भक्ति गीत।
1 मैं यहोवा, की करूणा के गीत सदा गाऊँगा।
मैं उसके भक्ति के गीत सदा अनन्त काल तक गाता रहूँगा।
2 हे यहोवा, मुझे सचमुच विश्वास है, तेरा प्रेम अमर है।
तेरी भक्ति फैले हुए अम्बर से भी विस्तृत है।
3 परमेश्वर ने कहा था, “मैंने अपने चुने हुए राजा के साथ एक वाचा कीया है।
अपने सेवक दाऊद को मैंने वचन दिया है।
4 ‘दाऊद तेरे वंश को मैं सतत् अमर बनाऊँगा।
मैं तेरे राज्य को सदा सर्वदा के लिये अटल बनाऊँगा।’”
5 हे यहोवा, तेरे उन अद्भुत कर्मो की अम्बर स्तुति करते हैं।
स्वर्गदूतों की सभा तेरी निष्ठा के गीत गाते हैं।
6 स्वर्ग में कोई व्यक्ति यहोवा का विरोध नहीं कर सकता।
कोई भी देवता यहोवा के समान नहीं।
7 परमेश्वर पवित्र लोगों के साथ एकत्रित होता है। वे स्वर्गदूत उसके चारो ओर रहते हैं।
वे उसका भय और आदर करते हैं।
वे उसके सम्मान में खड़े होते हैं।
8 सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा, जितना तू समर्थ है कोई नहीं है।
तेरे भरोसे हम पूरी तरह रह सकते हैं।
9 तू गरजते समुद्र पर शासन करता है।
तू उसकी कुपित तरंगों को शांत करता है।
10 हे परमेश्वर, तूने ही राहाब को हराया था।
तूने अपने महाशक्ति से अपने शत्रु बिखरा दिये।
11 हे परमेश्वर, जो कुछ भी स्वर्ग और धरती पर जन्मी है तेरी ही है।
तूने ही जगत और जगत में की हर वस्तु रची है।
12 तूने ही सब कुछ उत्तर दक्षिण रचा है।
ताबोर और हर्मोन पर्वत तेरे गुण गाते हैं।
13 हे परमेश्वर, तू समर्थ है।
तेरी शक्ति महान है।
तेरी ही विजय है।
14 तेरा राज्य सत्य और न्याय पर आधारित है।
प्रेम और भक्ति तेरे सिंहासन के सैनिक हैं।
15 हे परमेश्वर, तेरे भक्त सचमुच प्रसन्न है।
वे तेरी करूणा के प्रकाश में जीवित रहते हैं।
16 तेरा नाम उनको सदा प्रसन्न करता है।
वे तेरे खरेपन की प्रशंसा करते हैं।
17 तू उनकी अद्भुत शक्ति है।
उनको तुमसे बल मिलता है।
18 हे यहोवा, तू हमारा रक्षक है।
इस्राएल का वह पवित्र हमारा राजा है।
19 इस्राएल तूने निज सच्चे भक्तों को दर्शन दिये और कहा,
“फिर मैंने लोगों के बीच से एक युवक को चुना,
और मैंने उस युवक को महत्वपूर्ण बना दिया, और मैंने उस युवक को बलशाली बना दिया।
20 मैंने निज सेवक दाऊद को पा लिया,
और मैंने उसका अभिषेक अपने निज विशेष तेल से किया।
21 मैंने निज दाहिने हाथ से दाऊद को सहारा दिया,
और मैंने उसे अपने शक्ति से बलवान बनाया।
22 शत्रु चुने हुए राजा को नहीं हरा सका।
दुष्ट जन उसको पराजित नहीं कर सके।
23 मैंने उसके शत्रुओं को समाप्त कर दिया।
जो लोग चुने हुए राजा से बैर रखते थे, मैंने उन्हें हरा दिया।
24 मैं अपने चुने हुए राजा को सदा प्रेम करूँगा और उसे समर्थन दूँगा।
मैं उसे सदा ही शक्तिशाली बनाऊँगा।
25 मैं अपने चुने हुए राजा को सागर का अधिकारी नियुक्त करूँगा।
नदियों पर उसका ही नियन्त्रण होगा।
26 वह मुझसे कहेगा, ‘तू मेरा पिता है।
तू मेरा परमेश्वर, मेरी चट्टान मेरा उद्धारकर्ता है।’
27 मैं उसको अपना पहलौठा पुत्र बनाऊँगा।
वह धरती पर महानतम राजा बनेगा।
28 मेरा प्रेम चुने हुए राजा की सदा सर्वदा रक्षा करेगा।
मेरी वाचा उसके साथ कभी नहीं मिटेगी।
29 उसका वंश सदा अमर बना रहेगा।
उसका राज्य जब तक स्वर्ग टिका है, तब तक टिका रहेगा।
30 यदि उसके वंशजों ने मेरी व्यवस्था का पालन छोड़ दिया है
और यदि उन्होंने मेरे आदेशों को मानना छोड़ दिया है, तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।
31 यदि मेरे चुने हुए राजा के वंशजों ने मेरे विधान को तोड़ा
और यदि मेरे आदेशो की उपेक्षा की,
32 तो मैं उन्हें दण्ड दूंगा, जो बहुत बड़ा होगा।
33 किन्तु मैं उन लोगों से अपना निज प्रेम दूर नहीं करूँगा।
मैं सदा ही उनके प्रति सच्चा रहूँगा।
34 जो वाचा मेरी दाऊद के साथ है, मैं उसको नहीं तोड़ूँगा।
मैं अपनी वाचा को नहीं बदलूँगा।
35 अपनी पवित्रता को साक्षी कर मैंने दाऊद से एक विशेष प्रतिज्ञा की थी,
सो मैं दाऊद से झूठ नहीं बोलूँगा!
36 दाऊद का वंश सदा बना रहेगा,
जब तक सूर्य अटल है उसका राज्य भी अटल रहेगा।
37 यह सदा चन्द्रमा के समान चलता रहेगा।
आकाश साक्षी है कि यह वाचा सच्ची है। इस प्रमाण पर भरोसा कर सकता है।”
38 किन्तु हे परमेश्वर, तू अपने चुने हुए राजा पर क्रोधित हो गया।
तूने उसे एक दम अकेला छोड़ दिया।
39 तूने अपनी वाचा को रद्द कर दिया।
तूने राजा का मुकुट धूल में फेंक दिया।
40 तूने राजा के नगर का परकोटा ध्वस्त कर दिया,
तूने उसके सभी दुर्गों को तहस नहस कर दिया।
41 राजा के पड़ोसी उस पर हँस रहे हैं,
और वे लोग जो पास से गुजरते हैं, उसकी वस्तुओं को चुरा ले जाते हैं।
42 तूने राजा के शत्रुओं को प्रसन्न किया।
तूने उसके शत्रुओं को युद्ध में जिता दिया।
43 हे परमेश्वर, तूने उन्हें स्वयं को बचाने का सहारा दिया,
तूने अपने राजा की युद्ध को जीतने में सहायता नहीं की।
44 तूने उसे जीतने नहीं दिया,
उसका पवित्र सिंहासन तूने धरती पर पटक दिया।
45 तूने उसके जीवन को कम कर दिया,
और उसे लज्जित किया।
46 हे यहोवा, तू हमसे क्या सदा छिपा रहेगा
क्या तेरा क्रोध सदा आग सा धधकेगा
47 याद कर मेरा जीवन कितना छोटा है।
तूने ही हमें छोटा जीवन जीने और फिर मर जाने को रचा है।
48 ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो सदा जीवित रहेगा और कभी मरेगा नहीं।
कब्र से कोई व्यक्ति बच नहीं पाया।
49 हे परमेश्वर, वह प्रेम कहाँ है जो तूने अतीत में दिखाया था
तूने दाऊद को वचन दिया था कि तू उसके वंश पर सदा अनुग्रह करेगा।
50-51 हे स्वामी, कृपा करके याद कर कि लोगों ने तेरे सेवकों को कैसे अपमानित किया।
हे यहोवा, मुझको सारे अपमान सुनने पड़े हैं।
तेरे चुने हुए राजा को उन्होंने अपमानित किया।
52 यहोवा, सदा ही धन्य है!
आमीन, आमीन!
याकूब अपने पुत्रों को आशीर्वाद देता है
49 तब याकूब ने अपने सभी पुत्रो को अपने पास बुलाया। उसने कहा, “मेरे सभी पुत्रो, यहाँ मेरे पास आओ। मैं तुम्हें बताऊँगा कि भविष्य में क्या होगा।
2 “याकूब के पुत्रो, एक साथ आओ और सुनो,
अपने पिता इस्राएल की सुनो।”
रूबेन
3 “रूबेन, तुम मेरे प्रथम पुत्र हो।
तुम मेरे पहले पुत्र और मेरी शक्ति का पहला सबूत हो।
तुम मेरे सभी पुत्रों से
अधिक गर्वीले और बलवान हो।
4 किन्तु तुम बाढ़ की तंरगों की
तरह प्रचण्ड हो।
तुम मेरे सभी पुत्रों से
अधिक महत्व के नहीं हो सकोगे।
तुम उस स्त्री के साथ सोए
जो तुम्हारे पिता की थी।
तुमने अपने पिता के बिछौने को
सम्मान नहीं दिया।”
शिमोन और लेवी
5 “शिमोन और लेवी भाई हैं।
उन्हें अपनी तलवारों से लड़ना प्रिय है।
6 उन्होंने गुप्त रूप से बुरी योजनाएँ बनाईं।
मेरी आत्मा उनकी योजना का कोई अंश नहीं चाहती।
मैं उनकी गुप्त बैठकों को स्वीकार नहीं करूँगा।
उन्होंने आदमियों की हत्या की जब वे क्रोध में थे और उन्होंने केवल विनोद के लिए जानवरों को चोट पहुँचाई।
7 उनका क्रोध एक अभिशाप है।
ये अत्याधिक कठोर और अपने पागलपन में क्रोधित हैं।
याकूब के देश में इनके परिवारों की अपनी भूमि नहीं होगी।
वे पूरे इस्राएल में फैलेंगे।”
यहूदा
8 “यहूदा, तुम्हारे भाई तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।
तुम अपने शत्रुओं को हराओगे।
तुम्हारे भाई तुम्हारे सामने झुकेंगे।
9 यहूदा उस शेर की तरह है जिसने किसी जानवर को मारा हो।
हे मेरे पुत्र, तुम अपने शिकार पर खड़े शेर के समान हो
जो आराम करने के लिए लेटता है,
और कोई इतना बहादुर नहीं कि उसे छेड़ दे।
10 यहूदा के परिवार के व्यक्ति राजा होंगे।
उसके परिवार का राज—चिन्ह उसके परिवार से
वास्तविक शासक के आने से पहले समाप्त नहीं होगा।
तब अनेकों लोग उसका आदेश मानेंगे और सेवा करेंगे।
11 वह अपने गधे को अँगूर की बेल से बाँधता है।
वह अपने गधे के बच्चों को सबसे अच्छी अँगूर की बेलों में बाँधता है।
वह अपने वस्त्रों को धोने के लिए सबसे अच्छी दाखमधु का उपयोग करता है।
12 उसकी आँखे दाखमधु पीने से लाल रहती है।
उसके दाँत दूध पीने से उजले है।”[a]
जबूलून
13 “जबूलून समुद्र के निकट रहेगा।
इसका समुद्री तट जहाजों के लिए सुरक्षित होगा।
इसका प्रदेश सीदोन तक फैला होगा।”
इस्साकर
14 “इस्साकर उस गधे के समान है जिसने अत्याधिक कठोर काम किया है।
वह भारी बोझ ढोने के कारण पस्त पड़ा है।
15 वह देखेगा कि उसके आराम की जगह अच्छी है।
तथा यह कि उसकी भूमि सुहाबनी है।
तब वह भारी बोझे ढोने को तैयार होगा।
वह दास के रूप में काम करना स्वीकार करेगा।”
दान
16 “दान अपने लोगों का न्याय वैसे ही करेगा
जैसे इस्राएल के अन्य परिवार करते हैं।
17 दान सड़क के किनारे के
साँप के समान है।
वह रास्ते के पास लेटे हुए
उस भयंकर साँप की तरह है,
जो घोड़े के पैर को डसता है,
और सवार घोड़े से गिर जाता है।
18 “यहोवा, मैं उद्धार की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”
गाद
19 “डाकुओं का एक गिरोह गाद पर आक्रमण करेगा।
किन्तु गाद उन्हें मार भगाएगा।”
आशेर
20 “आशेर की भूमि बहुत अच्छी उपज देगी।
उसे वही भोजन मिलेगा जो राजाओं के लिए उपयुक्त होगा।”
नप्ताली
21 “नप्ताली स्वतन्त्र दौड़ने वाले हिरण की तरह है
और उसकी बोली उनके सुन्दर बच्चों की तरह है।”
यूसुफ
22 “यूसुफ बहुत सफल है।
यूसुफ फलों से लदी अंगूर की बेल के समान है।
वह सोते के समीप उगी अँगूर की बेल की तरह है,
बाड़े के सहारे उगी अँगूर की बेल की तरह है।
23 बहुत से लोग उसके विरुद्ध हुए
और उससे लड़े।
धर्नुधारी लोग उसे पसन्द नहीं करते।
24 किन्तु उसने अपने शक्तिशाली धनुष और कुशल भुजाओं से युद्ध जीता।
वह याकूब के शक्तिशाली परमेश्वर चरवाहे, इस्राएल की चट्टान से शक्ति पाता है।
25 और अपने पिता के परमेश्वर से शक्ति पाता है।
“परमेश्वर तुम को आशीर्वाद दे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुम को आशीर्वाद दे।
वह तुम्हें ऊपर आकाश से आशीर्वाद दे और नीचे गहरे समुद्र से आशीर्वाद दे।
वह तुम्हें स्तनों और गर्भ का आशीर्वाद दे।”
26 मेरे माता—पिता को बहुत सी अच्छी चीजें होती रही
और तुम्हारे पिता से मुझको और अधिक आशीर्वाद मिला।
तुम्हारे भाईयों ने तुमको बेचना चाहा।
किन्तु अब तुम्हें एक ऊँचे पर्वत के समान,
मेरे सारे आशीर्वाद का ढेर मिलेगा।
बिन्यामीन
27 “बिन्यामीन एक ऐसे भूखे भेड़िये के समान है
जो सबेरे मारता है और उसे खाता है।
शाम को यह बचे खुचे से काम चलाता है।”
28 ये इस्राएल के बारह परिवार हैं और वही जीज़ें हैं जिन्हें उनके पिता ने उनसे कहा था। उसने हर एक पुत्र को वह आशीर्वाद दिया जो उसके लिए ठीक था।
14 हे मेरे प्रिय मित्रो, अंत में मैं कहता हूँ मूर्ति उपासना से दूर रहो। 15 तुम्हें समझदार समझ कर मैं ऐसा कह रहा हूँ। जो मैं कह रहा हूँ, उसे अपने आप परखो। 16 धन्यवाद का वह प्याला जिसके लिये हम धन्यवाद देते हैं, वह क्या मसीह के लहू में हमारी साझेदारी नहीं है? वह रोटी जिसे हम विभाजित करते हैं, क्या यीशु की देह में हमारी साझेदारी नहीं?
17 रोटी का होना एक ऐसा तथ्य है, जिसका अर्थ है कि हम सब एक ही शरीर से हैं। क्योंकि उस एक रोटी में ही हम सब साझेदार हैं।
18 उन इस्राएलियों के बारे में सोचो, जो बलि की वस्तुएँ खाते हैं। क्या वे उस वेदी के साझेदार नहीं हैं? 19 इस बात को मेरे कहने का प्रयोजन क्या है? क्या मैं यह कहना चाहता हूँ कि मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन कुछ है या कि मूर्ति कुछ भी नहीं है। 20 बल्कि मेरी आशा तो यह है कि वे अधर्मी जो बलि चढ़ाते हैं, वे उन्हें परमेश्वर के लिये नहीं, बल्कि दुष्ट आत्माओं के लिये चढ़ाते हैं। और मैं नहीं चाहता कि तुम दुष्टात्माओं के साझेदार बनो। 21 तुम प्रभु के कटोरे और दुष्टात्माओं के कटोरे में से एक साथ नहीं पी सकते। तुम प्रभु के भोजन की चौकी और दुष्टात्माओं के भोजन की चौकी, दोनों में एक साथ हिस्सा नहीं बटा सकते। 22 क्या हम प्रभु को चिढ़ाना चाहते हैं? क्या जितना शक्तिशाली वह है, हम उससे अधिक शक्तिशाली हैं?
अपनी स्वतन्त्रता का प्रयोग परमेश्वर की महिमा के लिये करो
23 जैसा कि कहा गया है कि, “हम कुछ भी करने के लिये स्वतन्त्र हैं।” पर सब कुछ हितकारी तो नहीं है। “हम कुछ भी करने के लिए स्वतन्त्र हैं” किन्तु हर किसी बात से विश्वास सुदृढ़ तो नहीं होता। 24 किसी को भी मात्र स्वार्थ की ही चिन्ता नहीं करनी चाहिये बल्कि औरों के परमार्थ की भी सोचनी चाहिये।
25 बाजार में जो कुछ बिकता है, अपने अन्तर्मन के अनुसार वह सब कुछ खाओ। उसके बारे में कोई प्रश्न मत करो। 26 क्योंकि शास्त्र कहता है: “यह धरती और इस पर जो कुछ है, सब प्रभु का है।”(A)
27 यदि अविश्वासियों में से कोई व्यक्ति तुम्हें भोजन पर बुलाये और तुम वहाँ जाना चाहो तो तुम्हारे सामने जो भी परोसा गया है, अपने अन्तर्मन के अनुसार सब खाओ। कोई प्रश्न मत पूछो। 28 किन्तु यदि कोई तुम लोगों को यह बताये, “यह देवता पर चढ़ाया गया चढ़ावा है” तो जिसने तुम्हें यह बताया है, उसके कारण और अपने अन्तर्मन के कारण उसे मत खाओ।
29 मैं जब अन्तर्मन कहता हूँ तो मेरा अर्थ तुम्हारे अन्तर्मन से नहीं बल्कि उस दूसरे व्यक्ति के अन्तर्मन से है। एकमात्र यही कारण है। क्योंकि मेरी स्वतन्त्रता भला दूसरे व्यक्ति के अन्तर्मन द्वारा लिये गये निर्णय से सीमित क्यों रहे? 30 यदि मैं धन्यवाद देकर, भोजन में हिस्सा लेता हूँ तो जिस वस्तु के लिये मैं परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ, उसके लिये मेरी आलोचना नहीं की जानी चाहिये।
31 इसलिए चाहे तुम खाओ, चाहे पिओ, चाहे कुछ और करो, बस सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो। 32 यहूदियों के लिये या ग़ैर यहूदियों के लिये या जो परमेश्वर के कलीसिया के हैं, उनके लिये कभी बाधा मत बनो 33 जैसे स्वयं हर प्रकार से हर किसी को प्रसन्न रखने का जतन करता हूँ, और बिना यह सोचे कि मेरा स्वार्थ क्या है, परमार्थ की सोचता हूँ ताकि उनका उद्धार हो।
11 सो तुम लोग वैसे ही मेरा अनुसरण करो जैसे मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ।
ग़ैर यहूदी महिला को सहायता
(मत्ती 15:21-28)
24 फिर यीशु ने वह स्थान छोड़ दिया और सूर के आस-पास के प्रदेश को चल पड़ा। वहाँ वह एक घर में गया। वह नहीं चाहता था कि किसी को भी उसके आने का पता चले। किन्तु वह अपनी उपस्थिति को छुपा नहीं सका। 25 वास्तव में एक स्त्री जिसकी लड़की में दुष्ट आत्मा का निवास था, यीशु के बारे में सुन कर तत्काल उसके पास आयी और उसके पैरों में गिर पड़ी। 26 यह स्त्री यूनानी थी और सीरिया के फिनीकी में पैदा हुई थी। उसने अपनी बेटी में से दुष्टात्मा को निकालने के लिये यीशु से प्रार्थना की।
27 यीशु ने उससे कहा, “पहले बच्चों को तृप्त हो लेने दे क्योंकि बच्चों की रोटी लेकर उसे कुत्तों के आगे फेंक देना ठीक नहीं है।”
28 स्त्री ने उससे उत्तर में कहा, “प्रभु कुत्ते भी तो मेज़ के नीचे बच्चों के खाते समय गिरे चूरचार को खा लेते हैं।”
29 फिर यीशु ने उससे कहा, “इस उत्तर के कारण, तू चैन से अपने घर जा सकती है। दुष्टात्मा तेरी बेटी को छोड़ बाहर जा चुकी है।”
30 सो वह घर चल दी और अपनी बच्ची को खाट पर सोते पाया। तब तक दुष्टात्मा उससे निकल चुकी थी।
बहरा गूँगा सुनने-बोलने लगा
31 फिर वह सूर के इलाके से वापस आ गया और दिकपुलिस यानी दस-नगर के रास्ते सिदोन होता हुआ झील गलील पहुँचा। 32 वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक व्यक्ति को लाये जो बहरा था और ठीक से बोल भी नहीं पाता था। लोगों ने यीशु से प्रार्थना की कि वह उस पर अपना हाथ रख दे।
33 यीशु उसे भीड़ से दूर एक तरफ़ ले गया। यीशु ने अपनी उँगलियाँ उसके कानों में डालीं और फिर उसने थूका और उस व्यक्ति की जीभ छुई। 34 फिर स्वर्ग की ओर ऊपर देख कर गहरी साँस भरते हुए उससे कहा, “इप्फतह।” (अर्थात् “खुल जा!”) 35 और उसके कान खुल गए, और उसकी जीभ की गांठ भी खुल गई, और वह साफ साफ बोलने लगा।
36 फिर यीशु ने उन्हें आज्ञा दी कि वे किसी को कुछ न बतायें। पर उसने लोगों को जितना रोकना चाहा, उन्होंने उसे उतना ही अधिक फैलाया। 37 लोग आश्चर्यचकित होकर कहने लगे, “यीशु जो करता है, भला करता है। यहाँ तक कि वह बहरों को सुनने की शक्ति और गूँगों को बोली देता है।”
© 1995, 2010 Bible League International