Book of Common Prayer
8 तुम तो यह सोच कर ही सन्तुष्ट हो गए कि तुम्हारी सारी ज़रूरतों की पूर्ति हो चुकी—तुम सम्पन्न हो गए हो, हमारे सहयोग के बिना ही तुम राजा बन गए हो! उत्तम तो यही होता कि तुम वास्तव में राजा बन जाते और हम भी तुम्हारे साथ शासन करते. 9 मुझे ऐसा लग रहा है कि परमेश्वर ने हम प्रेरितों को विजय-यात्रा में मृत्युदण्ड प्राप्त व्यक्तियों के समान सबसे अन्तिम स्थान पर रखा है. हम सारी सृष्टि, स्वर्गदूतों तथा मनुष्यों के सामने तमाशा बन गए हैं. 10 हम मसीह के लिए मूर्ख हैं, किन्तु तुम मसीह में एक होकर बुद्धिमान हो! हम दुर्बल हैं और तुम बलवान! तुम आदर पाते हो और हम तिरस्कार! 11 इस समय भी हम भूखे-प्यासे और अपर्याप्त वस्त्रों में हैं, सताए जाते तथा मारे-मारे फिरते हैं. 12 हम मेहनत करते हैं तथा अपने हाथों से काम करते हैं. जब हमारी बुराई की जाती है, हम आशीर्वाद देते हैं. हम सताए जाते हैं किन्तु धीरज से सहते हैं. 13 जब हमारी निन्दा की जाती है तो हम विनम्रता से उत्तर देते हैं. हम तो मानो इस संसार का मैल तथा सबके लिए कूड़ा-कर्कट बन गए हैं.
एक विनती
14 यह सब मैं तुम्हें लज्जित करने के उद्धेश्य से नहीं लिख रहा परन्तु अपनी प्रिय सन्तान के रूप में तुम्हें सावधान कर रहा हूँ. 15 मसीह में तुम्हारे दस हज़ार शिक्षक तो हो सकते हैं किन्तु इतने पिता नहीं. मसीह में ईश्वरीय सुसमाचार के कारण मैं तुम्हारा पिता बन गया हूँ. 16 मेरी तुमसे विनती है कि तुम मेरे जैसी चाल चलो. 17 इसीलिए मैंने तिमोथियॉस को तुम्हारे पास भेजा है, जो मेरा प्रिय तथा प्रभु में विश्वासयोग्य पुत्र है. वही तुम्हें मसीह येशु में मेरी जीवनशैली की याद दिलाएगा—ठीक जैसी शिक्षा इसके विषय में मैं हर जगह, हर एक कलीसिया में देता हूँ.
18 तुममें से कुछ तो अहंकार में फूले नहीं समा रहे मानो मैं वहाँ आऊँगा ही नहीं. 19 यदि प्रभु ने चाहा तो मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास आऊँगा. तब न केवल इन अहंकारियों की शिक्षा परन्तु उनका सामर्थ्य भी मेरे सामने स्पष्ट हो जाएगा. 20 परमेश्वर का राज्य मात्र शब्दों में नहीं परन्तु सामर्थ्य में निहित है. 21 तो क्या चाहते हो तुम? मैं तुम्हारे पास छड़ी लेकर आऊँ या नम्रता के भाव में प्रेम के साथ?
मसीह येशु में विशाल भीड़ की रुचि
(मत्ति 12:15-17)
7 मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ झील के पास चले गए. एक विशाल भीड़, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेश से आ कर इकठ्ठी हुई थी, उनके पीछे-पीछे चल रही थी. 8 मसीह येशु के बड़े-बड़े कामों का वर्णन सुन कर येरूशालेम नगर, इदूमिया प्रदेश, यरदन नदी के पार के क्षेत्र तथा त्सोर और त्सीदोन से भी अनेकों-अनेक इस भीड़ में सम्मिलित हो गए थे. 9 इस विशाल भीड़ के दबाव से बचने के उद्धेश्य से मसीह येशु ने शिष्यों को एक नाव तैयार रखने की आज्ञा दी. 10 मसीह येशु ने अनेकों को स्वास्थ्यदान दिया था इसलिए वे सभी, जो रोगी थे, मात्र उन्हें छू लेने के उद्धेश्य से उन पर गिरे पड़ रहे थे. 11 जब कभी दुष्टात्मा उनके सामने आती थी, वे उनके सामने गिर कर चिल्ला-चिल्ला कर कहती थी, “आप परमेश्वर-पुत्र हैं!” 12 किन्तु मसीह येशु ने उन्हें चेतावनी दी कि वे यह किसी से न कहें.
बारह शिष्यों का चयन
(लूकॉ 6:12-16)
13 इसके बाद मसीह येशु पर्वत पर चले गए. वहाँ उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया, जिन्हें उन्होंने सही समझा और वे उनके पास आए. 14 मसीह येशु ने बारह को चुना कि वे उनके साथ रहें, वह उन्हें प्रचार के लिए निकाल सकें 15 और उन्हें दुष्टात्मा निकालने का अधिकार हो. 16 मसीह येशु द्वारा चुने हुए बारह के नाम इस प्रकार हैं: शिमोन—जिन्हें उन्होंने पेतरॉस नाम दिया; 17 ज़ेबेदियॉस के पुत्र याक़ोब तथा उनके भाई योहन, जिनको उन्होंने उपनाम दिया था, बोएनेरगेस, जिसका अर्थ होता है गर्जन के पुत्र; 18 आन्द्रेयास, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस, मत्तियाह, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, थद्देइयॉस, शिमोन कनानी तथा 19 कारियोतवासी यहूदाह, जिसने मसीह येशु के साथ धोखा किया.
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