Book of Common Prayer
अन्यजातियों की सेवा में पौलॉस का श्रम
24 अब तो मैं तुम्हारे लिए अपने कष्टों में प्रफुल्लित होता हूँ तथा मैं उनकी देह—कलीसिया के लिए अपने शरीर में मसीह की यातनाओं में बाकी रह गई कमी को पूरा करते हुए अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर रहा हूँ. 25 इसी कलीसिया के लिए मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर द्वारा सौंपी गई सेवा के लिए सेवक चुना गया कि मैं परमेश्वर के आदेश को पूरी तरह प्रचार कर सकूँ. 26 वह भेद जो युगों और पीढ़ियों से छिपा रहा है किन्तु अब उनके पवित्र लोगों पर प्रकट किया गया है, 27 जिन पर परमेश्वर ने अन्यजातियों के बीच इस भेद के वैभव के धन को प्रकट कर देना सही समझा. वह भेद है तुम में स्थिर बना मसीह, तुम्हारी होने वाली महिमा की आशा.
28 हम बुद्धिमत्तापूर्वक हर एक को चेताते तथा हर एक को शिक्षा देते हुए उन्हीं का प्रचार करते हैं कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में परिपक्व रूप में प्रस्तुत करें. 29 इसी उद्धेश्य से मैं उनके सामर्थ के अनुसार, जो मुझमें प्रबल रूप से कार्य कर रही है, मेहनत करते हुए परिश्रम कर रहा हूँ.
2 मैं चाहता हूँ कि तुमको यह मालूम हो कि मैं तुम्हारे लिए तथा उन सबके लिए, जो लाओदीकेइया में हैं तथा उन सबके लिए, जिन्होंने मुझे व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा है, कितना कठिन परिश्रम कर रहा हूँ. 2 कि उनके हृदय प्रोत्साहित होकर प्रेम में जुड़कर उस पूरे धन को प्राप्त हो, जो समझ के पूरे निश्चय में और परमेश्वर के भेद का वास्तविक ज्ञान हो, जो स्वयं मसीह है, 3 जिनमें बुद्धि और ज्ञान के सारे भण्ड़ार छिपे है. 4 मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि कोई भी तुम्हें लुभाने वाली बातों के द्वारा भटकाने न पाए. 5 हालांकि शारीरिक रूप से मैं वहाँ अनुपस्थित हूँ तौभी तुम्हारे उत्तम अनुशासन तथा मसीह में तुम्हारे विश्वास की दृढ़ता को देख कर प्रसन्न होते हुए, आत्मा में मैं तुम्हारे साथ हूँ.
गलत शिक्षाओं के विषय में चेतावनी व मसीही स्वभाव के लिए प्रोत्साहन
6 इसलिए कि तुमने प्रभु मसीह येशु को स्वीकार कर लिया है, अपना जीवन उनमें जीयों 7 उनमें गहराई तक जड़े हुए, और मसीह में उन्नत होते हुए अपने विश्वास में दृढ़ हो जाओ—ठीक जैसी शिक्षा तुम्हें दी गई थी—तथा तुम में धन्यवाद भाव अधिक से अधिक होता रहे.
संसार की ज्योति मसीह येशु
12 मन्दिर में अपनी शिक्षा को दोबारा आरम्भ करते हुए मसीह येशु ने लोगों से कहा, “मैं ही संसार की ज्योति हूँ. जो कोई मेरे पीछे चलता है, वह अन्धकार में कभी न चलेगा क्योंकि जीवन की ज्योति उसी में बसेगी.”
13 तब फ़रीसियों ने उनसे कहा, “तुम अपने ही विषय में गवाही दे रहे हो इसलिए तुम्हारी गवाही स्वीकार नहीं की जा सकती है.”
14 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि मैं स्वयं अपने विषय में गवाही दे भी रहा हूँ, तो भी मेरी गवाही स्वीकार की जा सकती है क्योंकि मुझे मालूम है कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ; किन्तु तुम लोग नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया और कहाँ जा रहा हूँ. 15 तुम लोग मानवीय सोच से अन्य लोगों का न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता. 16 यदि मैं किसी का न्याय करूँ भी तो वह सही ही होगा क्योंकि इसमें मैं अकेला नहीं—इसमें मैं और मेरे भेजनेवाले दोनों मिले हैं. 17 तुम्हारी व्यवस्था में ही यह लिखा है कि दो व्यक्तियों की गवाही सच के रूप में स्वीकार की जा सकती है. 18 एक गवाह तो मैं हूँ, जो स्वयं अपने विषय में गवाही दे रहा हूँ और मेरे विषय में अन्य गवाह—मेरे भेजनेवाले—पिता परमेश्वर हैं”.
19 तब उन्होंने मसीह येशु से पूछा, “कहाँ है तुम्हारा यह पिता?” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “न तो तुम मुझे जानते हो और न ही मेरे पिता को; यदि तुम मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जान लेते.”
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