Book of Common Prayer
9 वास्तव में यह आवश्यक ही नहीं कि मैं पवित्र लोगों में अपनी सेवकाई के विषय में तुम्हें कुछ लिखूँ 2 क्योंकि सहायता के लिए तुम्हारी तैयारी से मैं भली-भांति परिचित हूँ. मकेदोनियावासियों के सामने मैं इसका घमण्ड़ भी करता रहा हूँ कि अखाया प्रदेश की कलीसिया पिछले एक वर्ष से इसके लिए तैयार है और उनमें से अधिकांश को तुम्हारे उत्साह से प्रेरणा प्राप्त हुई. 3 मैंने कुछ साथी विश्वासियों को तुम्हारे पास इसलिए भेजा है कि तुम्हारे विषय में मेरा घमण्ड़ करना खोखला न ठहरे, परन्तु वे स्वयं तुम्हें सेवा के लिए तैयार पाएँ—ठीक जैसा मैं उनसे कहता रहा हूँ. 4 ऐसा न हो कि जब कोई मकेदोनियावासी मेरे साथ आए और तुम्हें दान देने के लिए तैयार न पाए तो हमें तुम्हारे प्रति ऐसे आश्वस्त होने के कारण लज्जित होना पड़े—तुम्हारी अपनी लज्जा तो एक अलग विषय होगा. 5 इसलिए मैंने यह आवश्यक समझा कि मैं साथी विश्वासियों से यह विनती करूँ कि वे पहले ही तुम्हारे पास चले जाएँ तथा उस प्रतिज्ञा की गई भेंट का प्रबन्ध कर लें, जो तुमने उदारता के भाव में दी है, न कि कंजूसी के भाव में.
उदार रोपण
6 याद रहे: वह, जो थोड़ा बोता है, थोड़ा ही काटेगा तथा वह, जो बहुत बोता है, बहुत काटेगा. 7 इसलिए जिसने अपने मन में जितना भी देने का निश्चय किया है, उतना ही दे—बिना इच्छा के या विवशता में नहीं क्योंकि परमेश्वर को प्रिय वह है, जो आनन्द से देता है. 8 परमेश्वर समर्थ हैं कि वह तुम्हें बहुत अधिक अनुग्रह प्रदान करें कि तुम्हें सब कुछ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता रहे और हर भले काम के लिए तुम्हारे पास अधिकता में हो, 9 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:
उन्होंने कंगालों को उदारतापूर्वक दिया;
उनकी कृपा युगानुयुग बनी रहती है.
10 वह परमेश्वर, जो किसान के लिए बीज का तथा भोजन के लिए आहार का इन्तज़ाम करते हैं, वही बोने के लिए तुम्हारे लिए बीज का इन्तज़ाम तथा विकास करेंगे तथा तुम्हारी धार्मिकता की उपज में उन्नति करेंगे. 11 अपनी अपूर्व उदारता के लिए तुम हरेक पक्ष में धनी किए जाओगे. हमारे माध्यम से तुम्हारी यह उदारता परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का विषय हो रही है.
12 यह सेवकाई न केवल पवित्र लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने का ही साधन है परन्तु परमेश्वर के प्रति उमड़ता हुआ धन्यवाद का भाव भी है. 13 तुम्हारी इस सेवकाई को प्रमाण मानते हुए वे परमेश्वर की महिमा करेंगे क्योंकि तुमने मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार को आज्ञा मानते हुए ग्रहण किया और तुम सभी के प्रति उदार मन के हो. 14 तुम पर परमेश्वर के अत्याधिक अनुग्रह को देख वे तुम्हारे लिए बड़ी लगन से प्रार्थना करेंगे. 15 परमेश्वर को उनके अवर्णनीय वरदान के लिए आभार!
मसीह येशु तथा बालक
(मत्ति 19:13-15; मारक 10:13-16)
15 लोग अपने बालकों को मसीह येशु के पास ला रहे थे कि मसीह येशु उन्हें स्पर्श मात्र कर दें. शिष्य यह देख उन्हें डाँटने लगे. 16 मसीह येशु ने बालकों को अपने पास बुलाते हुए कहा, “नन्हे बालकों को मेरे पास आने दो. मत रोको उन्हें! क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है. 17 वास्तव में जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.”
अनन्त काल के जीवन का अभिलाषी धनी युवक
(मत्ति 19:16-30; मारक 10:17-31)
18 एक प्रधान ने उनसे प्रश्न किया, “उत्तम गुरु! अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मेरे लिए क्या करना सही होगा?”
19 “तुम मुझे उत्तम कह कर क्यों बुला रहे हो?” मसीह येशु ने कहा. “परमेश्वर के अलावा दूसरा कोई भी उत्तम नहीं. 20 आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने माता-पिता का सम्मान करना.”
21 “इन सबका पालन तो मैं बचपन से करता आ रहा हूँ,” उसने उत्तर दिया.
22 यह सुन मसीह येशु ने उससे कहा, “एक कमी फिर भी है तुममें. अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर निर्धनों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा. तब आ कर मेरे पीछे हो लो.” 23 यह सुन वह प्रधान बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनी था.
24 यह देख मसीह येशु ने कहा, “धनवानों का स्वर्ग-राज्य में प्रवेश कैसा कठिन है! 25 एक धनी के स्वर्ग-राज्य में प्रवेश करने की तुलना में सुई के छेद में से ऊँट का पार हो जाना सरल है.”
26 इस पर सुननेवाले पूछने लगे, “तब किसका उद्धार सम्भव है?” 27 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है.”
28 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “हम तो अपना घरबार छोड़ कर आपके पीछे चल रहे हैं.”
29 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच तो यह है कि ऐसा कोई भी नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए अपनी घर-गृहस्थी, पत्नी, भाई, बहन, माता-पिता या सन्तान का त्याग किया हो 30 और उसे इस समय में कई गुणा अधिक तथा आगामी युग में अनन्त काल का जीवन प्राप्त न हो.”
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