Book of Common Prayer
अन्य निर्देश
7 संसार का अन्त पास है इसलिए तुम प्रार्थना के लिए संयम और सचेत भाव धारण करो. 8 सबसे उत्तम तो यह है कि आपस में उत्तम प्रेम रखो क्योंकि प्रेम अनगिनत पापों पर पर्दा डाल देता है. 9 बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो. 10 हर एक ने परमेश्वर द्वारा विशेष क्षमता प्राप्त की है इसलिए वह परमेश्वर के असीम अनुग्रह के उत्तम भण्ड़ारी के रूप में एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसका प्रयोग करे. 11 यदि कोई प्रवचन करे, तो इस भाव में, मानो वह स्वयं परमेश्वर का वचन हो; यदि कोई सेवा करे, तो ऐसी सामर्थ से, जैसा परमेश्वर प्रदान करते हैं कि सभी कामों में मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिनका साम्राज्य और महिमा सदा-सर्वदा है. आमेन.
12 प्रियो, उस अग्नि रूपी परीक्षा से चकित न हो, जो तुम्हें परखने के उद्धेश्य से तुम पर आएगी, मानो कुछ अनोखी घटना घट रही है, 13 परन्तु जब तुम मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनन्दित होते रहो कि मसीह येशु की महिमा के प्रकट होने पर तुम्हारा आनन्द उत्तम विजय आनन्द हो जाए. 14 यदि मसीह के कारण तुम्हारी निन्दा की जाती है तो तुम आशीषित हो क्योंकि तुम पर परमेश्वर की महिमा का आत्मा छिपा है. 15 तुममें से कोई भी किसी भी रीति से हत्यारे, चोर, दुराचारी या हस्तक्षेपी के रूप में यातना न भोगे; 16 परन्तु यदि कोई विश्वासी होने के कारण दुःख भोगे, वह इसे लज्जा की बात न समझे परन्तु मसीह की महिमा के कारण परमेश्वर की स्तुति करे. 17 परमेश्वर के न्याय के प्रारम्भ होने का समय आ गया है, जो परमेश्वर की सन्तान से प्रारम्भ होगा और यदि यह सबसे पहिले हमसे प्रारम्भ होता है तो उनका अन्त क्या होगा, जो परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार को नहीं मानते हैं?
18 “यदि धर्मी का ही उद्धार कठिन होता है
तो भक्तिहीन व पापी का क्या होगा?”
19 इसलिए वे भी, जो परमेश्वर की इच्छानुसार दुःख सहते हैं, अपनी आत्मा विश्वासयोग्य सृजनहार को सौंप दें, और भले काम करते रहें.
येरीख़ो नगर में अंधे व्यक्ति
(मारक 10:46-52; लूकॉ 18:35-43)
29 जब वे येरीख़ो नगर से बाहर निकल ही रहे थे, एक बड़ी भीड़ उनके साथ हो ली. 30 वहाँ मार्ग के किनारे दो अंधे व्यक्ति बैठे हुए थे. जब उन्हें यह अहसास हुआ कि येशु वहाँ से जा रहे हैं, वे पुकार-पुकार कर विनती करने लगे, “प्रभु! दाविद की सन्तान! हम पर कृपा कीजिए!”
31 भीड़ ने उन्हें झिड़कते हुए शान्त रहने की आज्ञा दी, किन्तु वे और भी अधिक ऊँचे शब्द में पुकारने लगे, “प्रभु! दाविद की सन्तान! हम पर कृपा कीजिए!”
32 येशु रुक गए, उन्हें पास बुलाया और उनसे प्रश्न किया, “क्या चाहते हो तुम? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”
33 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु! हम चाहते हैं कि हम देखने लगें.”
34 तरस खाकर येशु ने उनकी आँखें छुई. तुरन्त ही वे देखने लगे और वे येशु के पीछे हो लिए.
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