Book of Common Prayer
5 परमेसर जऊन ह हमन ला धीरज अऊ उत्साह देथे, तुमन ला अइसने आतमा देवय कि तुमन मसीह यीसू के हुकूम ला मानत एकता म बने रहव, 6 ताकि एक संग तुमन एक स्वर म हमर परभू यीसू मसीह के ददा परमेसर के इस्तुति कर सकव।
7 जइसने मसीह ह तुमन ला परमेसर के महिमा खातिर गरहन करिस, वइसने तुमन घलो एक-दूसर ला गरहन करव। 8 काबरकि मेंह तुमन ला बतावत हंव कि मसीह ह परमेसर के सच्चई ला परगट करे बर यहूदीमन के सेवक बनिस, ताकि ओह परमेसर के दुवारा हमर पुरखामन ला दिये गय परतिगियां ला पूरा करय, 9 अऊ आनजातमन के ऊपर परमेसर के दया होवय अऊ ओमन परमेसर के महिमा करंय, जइसने कि परमेसर के बचन म लिखे हवय:
“एकरसेति आनजातमन के बीच म,
मेंह तोर महिमा करहूं, अऊ तोर नांव के भजन गाहूं।”[a]
10 परमेसर के बचन म ए घलो कहे गे हवय,
“हे आनजातमन,
तुमन परमेसर के मनखेमन के संग आनंद मनावव।”[b]
11 परमेसर के बचन म ए घलो कहे गे हवय,
“हे आनजात के जम्मो मनखेमन,
परभू के इस्तुति करव; अऊ तुमन जम्मो झन ओकर परसंसा करव।”[c]
12 अऊ यसायाह अगमजानी ह कहे हवय,
“यिसै के बंस म ले एक झन आही;
ओह जम्मो जाति के मनखेमन ऊपर राज करे बर उठही
अऊ आनजातमन ओकर ऊपर अपन आसा रखहीं।”[d]
13 परमेसर जऊन ह आसा देथे, तुम्हर बिसवास के कारन तुमन ला पूरा आनंद अऊ सांति ले भर देवय, ताकि पबितर आतमा के सामरथ के दुवारा मसीह म तुम्हर आसा अऊ बढ़ते रहय।
दस ठन सोन के सिक्का के पटंतर
(मत्ती 25:14-30)
11 जब मनखेमन ए बात ला सुनत रहंय, तब यीसू ह ओमन ला एक पटंतर कहिस, काबरकि ओह यरूसलेम सहर के लकठा म हबर गे रिहिस अऊ मनखेमन सोचत रहंय कि परमेसर के राज ह तुरते सुरू होवइया हवय। 12 एकरसेति ओह कहिस, “एक ऊंच कुल के मनखे ह एक बहुंत दूरिहा देस ला गीस कि ओह उहां राजपद पावय अऊ फेर लहुंटके आवय। 13 जाय के पहिली, ओह अपन दस झन सेवक ला बलाईस अऊ ओमन ला दस ठन सोन के सिक्का देके कहिस, ‘मोर वापिस लहुंटत तक ए पईसा ले लेन-देन करत रहव।’
14 पर ओ देस के मनखेमन ओला बिलकुल ही पसंद नइं करत रिहिन, एकरसेति ओमन कुछू झन ला ओकर पाछू ए कहे बर पठोईन, ‘हमन नइं चाहत हवन कि ए मनखे ह हमर राजा बनय।’
15 तभो ले, ओह राजा बनाय गीस अऊ फेर घर लहुंटिस। तब ओह जऊन सेवकमन ला पईसा दे रिहिस, ओमन ला बलाईस अऊ ए जाने चाहिस कि ओमन कतेक कमाय हवंय।
16 पहिली सेवक ह आईस अऊ कहिस, ‘मालिक, तोर दिये सोन के सिक्का ले मेंह दस ठन अऊ सोन के सिक्का कमाय हवंव।’
17 ओकर मालिक ह कहिस, ‘बहुंत बने करय। तेंह बने सेवक अस, काबरकि तेंह थोरकन चीज म ईमानदार रहय, मेंह तोला दस ठन सहर के अधिकारी बनावत हंव।’
18 दूसरा सेवक ह आईस अऊ कहिस, ‘मालिक, तोर दिये सिक्का ले मेंह पांच ठन अऊ सोन के सिक्का कमाय हवंव।’
19 ओकर मालिक ह कहिस, ‘मेंह तोला पांच ठन सहर के अधिकारी बनावत हंव।’
20 तब एक दूसर सेवक आईस अऊ कहिस, ‘मालिक, ए हवय तोर सोन के सिक्का, मेंह एला एक ठन कपड़ा के टुकड़ा म छुपा के रखे रहेंव। 21 मेंह तोर ले डरत रहेंव, काबरकि तेंह एक कठोर मनखे अस। तेंह ओला ले लेथस, जऊन ह तोर नो हय, अऊ जऊन ला तेंह नइं बोय रहस, ओला लूथस।’
22 ओकर मालिक ह कहिस, ‘हे दुस्ट सेवक! मेंह तोर नियाय तोर कहे बचन के मुताबिक करहूं। तेंह जानत रहय कि मेंह एक कठोर मनखे अंव; मेंह ओला ले लेथंव, जऊन ह मोर नो हय, अऊ ओला लू लेथंव, जऊन ला मेंह नइं बोय रहंव। 23 तब तेंह मोर पईसा ला बैंक म काबर जमा नइं कर देवय, ताकि वापिस आके मेंह एला बियाज सहित ले लेतेंव?’
24 तब जऊन मन उहां ठाढ़े रिहिन, ओमन ला ओह कहिस, ‘एकर ले सोन के सिक्का ला ले लेवव अऊ एला ओ सेवक ला दे देवव, जेकर करा दस ठन सिक्का हवय।’ 25 ओमन कहिन, ‘हे मालिक, ओकर करा तो आघू ले दस ठन सिक्का हवय।’
26 ओह जबाब देवत कहिस, ‘मेंह तुमन ले कहत हंव कि हर एक झन जेकर करा हवय, ओला अऊ दिये जाही, पर जेकर करा नइं ए, ओकर ले ओ चीज घलो ले लिये जाही, जऊन ह ओकर करा बांचे हवय। 27 पर मोर ओ बईरीमन ला इहां लानव, जऊन मन नइं चाहत रिहिन कि मेंह ओमन के राजा बनंव अऊ ओमन ला मोर आघू म मार डारव।’ ”
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