Book of Common Prayer
21 इसके बाद एक बलवान स्वर्गदूत ने विशाल चक्की के पाट के समान पत्थर उठा कर समुद्र में प्रचण्ड वेग से फेंकते हुए कहा:
“इसी प्रकार फेंक दिया जाएगा भव्य महानगर बाबेल भी,
जिसका कभी कोई अवशेष तक न मिलेगा.
22 अब से तुझमें गायकों, वीणा,
बाँसुरी तथा तुरही का शब्द कभी सुनाई न पड़ेगा.
अब से किसी भी कारीगर का कोई कार्य तुझ में न पाया जाएगा.
अब से तुझ में चक्की की आवाज़ सुनाई न देगी.
23 अब से तुझ में एक भी दीप न जगमगाएगा,
अब से तुझमें वर और वधू का उल्लसित शब्द भी न सुना जाएगा,
तेरे व्यापारी पृथ्वी के सफल व्यापारी थे.
तेरे जादू ने सभी राष्ट्रों को भरमा दिया था.
24 तुझमें ही भविष्यद्वक्ताओं और
पवित्र लोगों, तथा पृथ्वी पर घात किए गए सभी व्यक्तियों का लहू पाया गया.”
झील तट पर स्वास्थ्यदान
(मारक 7:31-37)
29 वहाँ से येशु गलील झील के तट से होते हुए पर्वत पर चले गए और वहाँ बैठ गए. 30 एक बड़ी भीड़ उनके पास आ गयी. जिनमें लँगड़े, अपंग, अंधे, गूंगे और अन्य रोगी थे. लोगों ने इन्हें येशु के चरणों में लिटा दिया और येशु ने उन्हें स्वस्थ कर दिया. 31 गूंगों को बोलते, अपंगों को स्वस्थ होते, लंगड़ों को चलते तथा अंधों को देखते देख भीड़ चकित हो इस्राएल के परमेश्वर का गुणगान करने लगी.
32 येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, “मुझे इन लोगों से सहानुभूति है क्योंकि ये मेरे साथ तीन दिन से हैं और इनके पास अब खाने को कुछ नहीं है. मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता—कहीं ये मार्ग में ही मूर्च्छित न हो जाएँ.”
33 शिष्यों ने कहा, “इस निर्जन स्थान में इस बड़ी भीड़ की तृप्ति के लिए भोजन का प्रबन्ध कैसे होगा?”
34 येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या है तुम्हारे पास?” “सात रोटियां और कुछ मछलियां,” उन्होंने उत्तर दिया.
35 येशु ने भीड़ को भूमि पर बैठ जाने का निर्देश दिया 36 और स्वयं उन्होंने सातों रोटियां और मछलियां लेकर उनके लिए परमेश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के बाद उन्हें तोड़ा और शिष्यों को देते गए तथा शिष्य भीड़ को. 37 सभी ने खाया और तृप्त हुए और रोटी के शेष टुकड़ों से सात बड़े टोकरे भर गए. 38 वहाँ जितनों ने भोजन किया था उनमें स्त्रियों और बालकों के अतिरिक्त पुरुषों ही की संख्या कोई चार हज़ार थी. 39 भीड़ को विदा कर येशु नाव में सवार हो कर मगादान क्षेत्र में आए.
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