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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 4:13-25

व्यवस्था के पालन मात्र से धार्मिकता नहीं

13 उस प्रतिज्ञा का आधार, जो अब्राहाम तथा उनके वंशजों से की गई थी कि अब्राहाम पृथ्वी के वारिस होंगे, व्यवस्था नहीं परन्तु विश्वास की धार्मिकता थी. 14 यदि व्यवस्था का पालन करने से उन्हें मीरास प्राप्त होती है तो विश्वास खोखला और प्रतिज्ञा बेअसर साबित हो गई है. 15 व्यवस्था क्रोध का पिता है किन्तु जहाँ व्यवस्था है ही नहीं, वहाँ व्यवस्था का उल्लंघन भी सम्भव नहीं!

16 परिणामस्वरूप विश्वास ही उस प्रतिज्ञा का आधार है, कि परमेश्वर के अनुग्रह में अब्राहाम के सभी वंशजों को यह प्रतिज्ञा निश्चित रूप से प्राप्त हो सके—न केवल उन्हें, जो व्यवस्था के अधीन हैं परन्तु उन्हें भी, जिनका विश्वास वैसा ही है, जैसा अब्राहाम का, जो हम सभी के कुलपिता हैं. 17 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: मैंने तुम्हें अनेकों राष्ट्रों का पिता ठहराया है, हमारे कुलपिता अब्राहाम ने उन्हीं परमेश्वर में विश्वास किया, जो मरे हुओं को जीवन देते हैं तथा अस्तित्व में आने की आज्ञा उन्हें देते हैं, जो हैं ही नहीं.

अब्राहाम का विश्वास, मसीही विश्वास का आदर्श

18 बिलकुल निराशा की स्थिति में भी अब्राहाम ने उनसे की गई इस प्रतिज्ञा के ठीक अनुरूप उस आशा में विश्वास किया: वह अनेकों राष्ट्रों के पिता होंगे, ऐसे ही होंगे तुम्हारे वंशज. 19 अब्राहाम जानते थे कि उनका शरीर मरी हुए दशा में था क्योंकि उनकी आयु लगभग सौ वर्ष थी तथा साराह का गर्भ तो मृत था ही. फिर भी वह विश्वास में कमज़ोर नहीं हुए. 20 उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में अपने विश्वास में विचलित न होकर, स्वयं को उसमें मजबूत करते हुए परमेश्वर की महिमा की 21 तथा पूरी तरह निश्चिंत रहे कि वह, जिन्होंने यह प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा करने में भी सामर्थी हैं. 22 इसलिए अब्राहाम के लिए यही विश्वास की धार्मिकता मानी गई. 23 उनके लिए धार्मिकता मानी गई, ये शब्द मात्र उन्हीं के विषय में नहीं हैं, 24 परन्तु इनका सम्बन्ध हमसे भी है, जिन्हें परमेश्वर की ओर से धार्मिकता की मान्यता प्राप्त होगी—हम, जिन्होंने विश्वास उनमें किया है—जिन्होंने हमारे प्रभु मसीह येशु को मरे हुओं से दोबारा जीवित किया, 25 जो हमारे अपराधों के कारण मृत्युदण्ड के लिए सौंपे गए तथा हमें धर्मी घोषित कराने के लिए दोबारा जीवित किए गए.

मत्तियाह 21:23-32

येशु के अधिकार को चुनौती

(मारक 11:27-33; लूकॉ 20:1-8)

23 येशु ने मन्दिर में प्रवेश किया और जब वह वहाँ शिक्षा दे ही रहे थे, प्रधान याजक और पुरनिए उनके पास आए और उनसे पूछा, “किस अधिकार से तुम ये सब कर रहे हो? कौन है वह, जिसने तुम्हें इसका अधिकार दिया है?”

24 येशु ने इसके उत्तर में कहा, “मैं भी आप से एक प्रश्न करूँगा. यदि आप मुझे उसका उत्तर देंगे तो मैं भी आपके इस प्रश्न का उत्तर दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ: 25 योहन का बपतिस्मा किसकी ओर से था—स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से?”

इस पर वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “यदि हम कहते हैं, ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेगा, ‘तब आपने योहन में विश्वास क्यों नहीं किया?’ 26 किन्तु यदि हम कहते हैं, ‘मनुष्यों की ओर से’, तब हमें भीड़ से भय है; क्योंकि सभी योहन को भविष्यद्वक्ता मानते हैं.”

27 उन्होंने आ कर येशु से कहा, “आपके प्रश्न का उत्तर हमें मालूम नहीं.”

येशु ने भी उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी आपको नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से ये सब करता हूँ.

दो पुत्रों का दृष्टान्त

28 “इस विषय में क्या विचार है आपका? एक व्यक्ति के दो पुत्र थे. उसने बड़े पुत्र से कहा, ‘हे पुत्र, आज जा कर दाख की बारी का काम देख लेना.’

29 “उसने पिता को उत्तर दिया, ‘मेरे लिए यह सम्भव नहीं होगा.’ परन्तु कुछ समय के बाद उसे अपने उत्तर पर पछतावा हुआ और वह दाख की बारी चला गया.

30 “पिता दूसरे पुत्र के पास गया और उससे भी यही कहा. उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ, अवश्य.’ किन्तु वह गया नहीं.

31 “यह बताइए कि किस पुत्र ने अपने पिता की इच्छा पूरी की?”

उन्होंने उत्तर दिया.

“बड़े पुत्र ने.” येशु ने उनसे कहा, “सच यह है कि समाज से निकाले लोग तथा वेश्याएँ आप लोगों से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर जाएँगे. 32 बपतिस्मा देने वाले योहन आपको धर्म का मार्ग दिखाते हुए आए किन्तु आप लोगों ने उनका विश्वास ही न किया किन्तु समाज के बहिष्कृतों और वेश्याओं ने उनका विश्वास किया. यह सब देखने पर भी आपने उनमें विश्वास के लिए पश्चाताप न किया.

Saral Hindi Bible (SHB)

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