Book of Common Prayer
7 अपने देह में रहने के समय में उन्होंने ऊँचे शब्द में रोते हुए, आँसुओं के साथ उनके सामने प्रार्थनाएँ और विनती कीं, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकते थे. उनकी परमेश्वर में भक्ति के कारण उनकी प्रार्थनाएँ स्वीकार की गईं. 8 पुत्र होने पर भी उन्होंने अपने दुःख उठाने से आज्ञा मानने की शिक्षा ली. 9 फिर सिद्ध घोषित किए जाने के बाद वह स्वयं उन सबके लिए, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, अनन्त काल उद्धार का कारण बन गए; 10 क्योंकि वह परमेश्वर द्वारा मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला के महापुरोहित चुने गए थे.
शिक्षा में अपेक्षित प्रगति
11 हमारे पास इस विषय में कहने के लिए बहुत कुछ है तथा इसका वर्णन करना भी कठिन काम है क्योंकि तुम अपनी सुनने की क्षमता खो बैठे हो. 12 समय के अनुसार तो तुम्हें अब तक शिक्षक बन जाना चाहिए था किन्तु अब आवश्यक यह हो गया है कि कोई तुम्हें दोबारा परमेश्वर के ईश्वरीय वचनों के शुरु के सिद्धान्तों की शिक्षा दे. तुम्हें ठोस आहार नहीं, दूध की ज़रूरत हो गई है. 13 वह, जो मात्र दूध का सेवन करता है, धार्मिकता की शिक्षा से अपरिचित है, क्योंकि वह शिशु है. 14 ठोस आहार सयानों के लिए होता है, जिन्होंने लगातार अभ्यास के द्वारा अपनी ज्ञानेन्द्रियों को इसके प्रति निपुण बना लिया है कि क्या सही है और क्या गलत.
विक्षिप्त प्रेतात्मा से पीड़ित की मुक्ति
(मत्ति 17:14-21; मारक 9:17-29)
37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठा थी. 38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊँचे शब्द में पुकार कर कहा, “गुरुवर! आप से मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती सन्तान है. 39 एक प्रेत अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. प्रेत उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारम्भ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह प्रेत कदाचित ही उसे छोड़ कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारु है. 40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किन्तु वे असफल रहे.”
41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” मसीह येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहाँ लाओ अपने पुत्र को!”
42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, प्रेत ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारम्भ हो गई किन्तु मसीह येशु ने प्रेत को डाँटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया. 43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए.
दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की दूसरी घोषणा
(मत्ति 17:22, 23; मारक 9:30-32)
जब सब लोग इस घटना पर अचम्भित हो रहे थे मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा, 44 “जो कुछ मैं कह रहा हूँ अत्यन्त ध्यानपूर्वक सुनो और याद रखो: मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों पकड़वाया जाने पर है.” 45 किन्तु शिष्य इस बात का मतलब समझ न पाए. इस बात का मतलब उनसे छुपाकर रखा गया था. यही कारण था कि वे इसका मतलब समझ न पाए और उन्हें इसके विषय में मसीह येशु से पूछने का साहस भी न हुआ.
46 शिष्यों में इस विषय को ले कर विवाद छिड़ गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है. 47 यह जानते हुए कि शिष्य अपने मन में क्या सोच रहे हैं मसीह येशु ने एक छोटे बालक को अपने पास खड़ा करके कहा, 48 “जो कोई मेरे नाम में इस छोटे बालक को ग्रहण करता है, मुझे ग्रहण करता है, तथा जो कोई मुझे ग्रहण करता है, उन्हें ग्रहण करता है जिन्होंने मुझे भेजा है. वह, जो तुम्हारे मध्य छोटा है, वही है जो श्रेष्ठ है.”
49 योहन ने उन्हें सूचना दी, “प्रभु, हमने एक व्यक्ति को आपके नाम में प्रेत निकालते हुए देखा है. हमने उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न किया क्योंकि वह हममें से नहीं है.”
50 “मत रोको उसे!” मसीह येशु ने कहा, “क्योंकि जो तुम्हारा विरोधी नहीं, वह तुम्हारे पक्ष में है.”
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