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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 12

आत्मिक वन्दना-विधि

12 प्रियजन, परमेश्वर की बड़ी दया के प्रकाश में तुम सबसे मेरी विनती है कि तुम अपने शरीर को परमेश्वर के लिए परमेश्वर को भानेवाला जीवन तथा पवित्र बलि के रूप में भेंट करो. यही तुम्हारी आत्मिक आराधना की विधि है. इस संसार के स्वरूप में न ढलो, परन्तु मन के नए हो जाने के द्वारा तुममें जड़ से परिवर्तन हो जाए कि तुम परमेश्वर की इच्छा को, जो उत्तम, ग्रहण करने योग्य तथा त्रुटिहीन है, सत्यापित कर सको.

विनम्रता तथा प्रेम

मुझे दिए गए बड़े अनुग्रह के द्वारा मैं तुममें से हर एक को सम्बोधित करते हुए कहता हूँ कि कोई भी स्वयं को अधिक न समझे, परन्तु स्वयं के विषय में तुम्हारा आकलन परमेश्वर द्वारा दिए गए विश्वास के परिमाण के अनुसार हो. यह इसलिए कि जिस प्रकार हमारे शरीर में अनेक अंग होते हैं और सब अंग एक ही काम नहीं करते; उसी प्रकार हम, जो अनेक हैं, मसीह में एक शरीर तथा व्यक्तिगत रूप से सभी एक दूसरे के अंग हैं. इसलिए कि हमें दिए गए अनुग्रह के अनुसार हममें पवित्रात्मा द्वारा दी गई भिन्न-भिन्न क्षमताएँ हैं. जिसे भविष्यवाणी की क्षमता प्राप्त है, वह उसका उपयोग अपने विश्वास के अनुसार करे; यदि सेवकाई की, तो सेवकाई में; सिखाने की, तो सिखाने में; उपदेशक की, तो उपदेश देने में; सहायता की, तो बिना दिखावे के उदारतापूर्वक देने में; जिसे अगुवाई की, वह मेहनत के साथ अगुवाई करे तथा जिसे करुणा भाव की, वह इसका प्रयोग सहर्ष करे.

प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; आदर्श के प्रति आसक्त रहो; 10 आपसी प्रेम में समर्पित रहो; अन्यों को ऊँचा सम्मान दो; 11 तुम्हारा उत्साह कभी कम न हो; आत्मिक उत्साह बना रहे; प्रभु की सेवा करते रहो; 12 आशा में आनन्द, क्लेशों में धीरज तथा प्रार्थना में नियमितता बनाए रखो; 13 पवित्र संतों की सहायता के लिए तत्पर रहो, आतिथ्य सत्कार करते रहो.

14 अपने सतानेवालों के लिए तुम्हारे मुख से आशीष ही निकले—आशीष—न कि शाप; 15 जो आनन्दित हैं, उनके साथ आनन्द मनाओ तथा जो शोकित हैं, उनके साथ शोक; 16 तुममें आपस में मेल भाव हो; तुम्हारी सोच में अहंकार न हो परन्तु उनसे मिलने-जुलने के लिए तत्पर रहो, जो समाज की दृष्टि में छोटे हैं; स्वयं को ज्ञानवान न समझो.

17 किसी के प्रति भी दुष्टता का बदला दुष्टता न हो; तुम्हारा स्वभाव सबकी दृष्टि में सुहावना हो; 18 यदि सम्भव हो तो यथाशक्ति सभी के साथ मेल बनाए रखो. 19 प्रियजन, तुम स्वयं बदला न लो—इसे परमेश्वर के क्रोध के लिए छोड़ दो, क्योंकि शास्त्र का लेख है: बदला लेना मेरा काम है, प्रतिफल मैं दूँगा. प्रभु का कथन यह भी है:

20 यदि तुम्हारा शत्रु भूखा है, उसे भोजन कराओ,
    यदि वह प्यासा है, उसे पानी दो;
ऐसा करके तुम उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगा दोगे.

21 बुराई से न हारकर बुराई को भलाई के द्वारा हरा दो.

लूकॉ 8:1-15

मसीह येशु और शिष्यों की सहयात्री स्त्रियाँ

इसके बाद शीघ्र ही मसीह येशु परमेश्वर के राज्य की घोषणा तथा प्रचार करते हुए नगर-नगर और गाँव-गाँव फिरने लगे. बारहों शिष्य उनके साथ-साथ थे. इनके अतिरिक्त कुछ वे स्त्रियाँ भी उनके साथ यात्रा कर रही थीं, जिन्हें रोगों और प्रेतों से छुटकारा दिलाया गया था: मगदालावासी मरियम, जिस में से सात प्रेत निकाले गए थे, हेरोदेस के भण्ड़ारी कूज़ा की पत्नी योहान्ना, सूज़न्ना तथा अन्य स्त्रियाँ. ये वे स्त्रियाँ थी, जो अपनी सम्पत्ति से इनकी सहायता कर रही थीं.

जब नगर-नगर से बड़ी भीड़ इकट्ठा हो रही थी और लोग मसीह येशु के पास आ रहे थे, मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा शिक्षा दी.

“एक किसान बीज बोने निकला. जब वह बीज बिखरा रहा था, कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे, पैरों के नीचे कुचले गए तथा आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया. कुछ पथरीली भूमि पर जा पड़े, वे अंकुरित तो हुए परन्तु नमी न होने के कारण मुरझा गए. कुछ बीज कंटीली झाड़ियों में जा पड़े और झाड़ियों ने उनके साथ बड़े होते हुए उन्हें दबा दिया. कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे, बड़े हुए और फल लाए—जितना बोया गया था उससे सौ गुणा.”

जब मसीह येशु यह दृष्टान्त सुना चुके तो उन्होंने ऊँचे शब्द में कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले.”

उनके शिष्यों ने उनसे प्रश्न किया, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?” 10 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम्हें तो परमेश्वर के राज्य का भेद जानने की क्षमता प्रदान की गई है किन्तु अन्यों के लिए मुझे दृष्टान्तों का प्रयोग करना पड़ता है जिससे कि,

“‘वे देखते हुए भी न देखें;
    और सुनते हुए भी न समझें.’

11 “इस दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर का वचन है. 12 मार्ग के किनारे की भूमि वे लोग हैं, जो वचन सुनते तो हैं किन्तु शैतान आता है और उनके मन से वचन उठा ले जाता है कि वे विश्वास करके उद्धार प्राप्त न कर सकें 13 पथरीली भूमि वे लोग हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुनने पर खुशी से स्वीकारते हैं किन्तु उनमें जड़ न होने के कारण वे विश्वास में थोड़े समय के लिए ही स्थिर रह पाते हैं. कठिन परिस्थितियों में घिरने पर वे विश्वास से दूर हो जाते हैं. 14 वह भूमि जहाँ बीज कँटीली झाड़ियों के मध्य गिरा, वे लोग हैं, जो सुनते तो हैं किन्तु जब वे जीवनपथ पर आगे बढ़ते हैं, जीवन की चिन्ताएँ, धन तथा विलासिता उनका दमन कर देती हैं और वे मजबूत हो ही नहीं पाते. 15 इसके विपरीत उत्तम भूमि वे लोग हैं, जो भले और निष्कपट हृदय से वचन सुनते हैं और उसे दृढ़तापूर्वक थामे रहते हैं तथा निरन्तर फल लाते हैं.

Saral Hindi Bible (SHB)

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