Book of Common Prayer
पेतरॉस द्वारा अपंग को चंगाई
3 एक दिन नवें घण्टे पर, जो प्रार्थना का निर्धारित समय था, पेतरॉस और योहन मन्दिर जा रहे थे. 2 उसी समय जन्म से अपंग एक व्यक्ति को भी वहाँ ले जाया जा रहा था, जिसे प्रतिदिन मन्दिर के ओरियन अर्थात् सुन्दर नामक द्वार पर छोड़ दिया जाता था कि वह वहाँ प्रवेश करते व्यक्तियों से भिक्षा विनती कर सके. 3 पेतरॉस और योहन को प्रवेश करते देख उसने उनसे भीख माँगी. 4 पेतरॉस तथा योहन ने उसकी ओर सीधे, एकटक देखते हुए कहा, “हमारी ओर देखो.” 5 उनसे कुछ पाने की आशा में वह उन्हें ताकने लगा.
6 पेतरॉस ने उससे कहा, “स्वर्ण और रजत तो मेरे पास है नहीं किन्तु मैं तुम्हें वह देता हूँ, जो मेरे पास है: नाज़रेथ के मसीह येशु के नाम में स्वस्थ हो जाओ और चलने लगो.” 7 यह कहते हुए उन्होंने उसका दायाँ हाथ पकड़ कर उसे उठाया. 8 उसी क्षण उसके पाँवों तथा टखनों में बल-संचार हुआ, वह उछल कर खड़ा हो गया और चलने लगा. उसने उनके साथ चलते, उछलते-कूदते, परमेश्वर का गुणगान करते हुए मन्दिर में प्रवेश किया. 9 वहाँ सभी ने उसे चलते-फिरते और परमेश्वर का गुणगान करते हुए देखा. 10 यह जानकर कि यह वही भिक्षुक है, जो मन्दिर के सुन्दर नामक द्वार पर बैठा करता था, वे उसमें यह परिवर्तन देख अचम्भित और चकित रह गए.
सच्ची दाखलता—मसीह येशु
15 “मैं ही सच्ची दाखलता हूँ और मेरे पिता किसान हैं. 2 मुझमें लगी हुई हर एक डाली, जो फल नहीं देती, उसे वह काट देते हैं तथा हर एक फल देने वाली डाली को छांटते हैं कि वह और भी अधिक फल लाए. 3 उस वचन के द्वारा, जो मैंने तुमसे कहा है, तुम शुद्ध हो चुके हो. 4 मुझमें स्थिर बने रहो तो मैं तुम में स्थिर बना रहूँगा. शाखा यदि लता से जुड़ी न रहे तो फल नहीं दे सकती, वैसे ही तुम भी मुझ में स्थिर रहे बिना फल नहीं दे सकते.
5 “मैं दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो. वह, जो मुझमें स्थिर बना रहता है और मैं उसमें, बहुत फल देता है; मुझसे अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते. 6 यदि कोई मुझमें स्थिर बना नहीं रहता, वह फेंकी हुई डाली के समान सूख जाता है. उन्हें इकट्ठा कर आग में झोंक दिया जाता है और वे स्वाहा हो जाती हैं. 7 यदि तुम मुझमें स्थिर बने रहो और मेरे वचन तुम में स्थिर बने रहें तो तुम्हारे माँगने पर तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी. 8 तुम्हारे फलों की बहुतायत में मेरे पिता की महिमा और तुम्हारा मेरे शिष्य होने का सबूत है.
9 “जिस प्रकार पिता ने मुझसे प्रेम किया है उसी प्रकार मैंने भी तुम से प्रेम किया है; मेरे प्रेम में स्थिर बने रहो. 10 तुम मेरे प्रेम में स्थिर बने रहोगे, यदि तुम मेरे आदेशों का पालन करते हो, जैसे मैं पिता के आदेशों का पालन करता आया हूँ और उनके प्रेम में स्थिर हूँ. 11 यह सब मैंने तुमसे इसलिए कहा है कि तुम में मेरा आनन्द बना रहे और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए. आपसी प्रेम की आज्ञा
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