Book of Common Prayer
12 इसलिए प्रियजन, हम पापी स्वभाव के कर्ज़दार नहीं कि हम इसके अनुसार व्यवहार करें. 13 क्योंकि यदि तुम पापी स्वभाव के अनुसार व्यवहार कर रहे हो तो तुम मृत्यु की ओर हो किन्तु यदि तुम पवित्रात्मा के द्वारा पाप के स्वभाव के कामों को मारोगे तो तुम जीवित रहोगे.
परमेश्वर की सन्तान
14 वे सभी, जो परमेश्वर के आत्मा द्वारा चलाए जाते हैं, परमेश्वर की सन्तान हैं. 15 तुम्हें दासत्व की वह आत्मा नहीं दी गई, जो तुम्हें दोबारा भय की ओर ले जाये, परन्तु तुम्हें लेपालकपन की आत्मा प्रदान की गई है. इसी की प्रेरणा से हम पुकारते हैं, “अब्बा! पिता!” 16 स्वयं पवित्रात्मा हमारी आत्मा के साथ इस सच्चाई की पुष्टि करते हैं कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं 17 और जब हम सन्तान ही हैं तो हम वारिस भी हैं—परमेश्वर के वारिस तथा मसीह येशु के सहवारिस—यदि हम वास्तव में उनके साथ यातनाएँ सहते हैं कि हम उनके साथ महिमित भी हों.
हमारे लिए निर्धारित होनेवाली महिमा
18 मेरे विचार से वह महिमा, हममें जिसका भावी प्रकाशन होगा, हमारे वर्तमान कष्टों से तुलनीय है ही नहीं! 19 सृष्टि बड़ी आशा भरी दृष्टि से परमेश्वर की सन्तान के प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रही है. 20 सृष्टि को हताशा के अधीन कर दिया गया है. यह उसकी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं परन्तु उनकी इच्छा के अनुसार हुआ है, जिन्होंने उसे इस आशा में अधीन किया है 21 कि स्वयं सृष्टि भी विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर परमेश्वर की सन्तान की महिमामय स्वतंत्रता प्राप्त करे.
22 हमें यह मालूम है कि सारी सृष्टि आज तक मानो प्रसव पीड़ा में कराह रही है. 23 इतना ही नहीं, हम भी, जिनमें होनेवाली महिमा के पहले से स्वाद चखने के रूप में पवित्रात्मा का निवास है, अपने भीतरी मनुष्यत्व में कराहते हुए आशा भरी दृष्टि से लेपालकपन प्राप्त करने अर्थात् अपने शरीर के छुटकारे की प्रतीक्षा में हैं. 24 हम इसी आशा में छुड़ाए गए हैं. जब आशा का विषय दृश्य हो जाता है तो आशा का अस्तित्व ही नहीं रह जाता. भला कोई उस वस्तु की आशा क्यों करेगा, जो सामने है? 25 यदि हमारी आशा का विषय वह है, जिसे हमने देखा नहीं है, तब हम धीरज से और अधिक आशा में उसकी प्रतीक्षा करते हैं. 26 इसी प्रकार पवित्रात्मा भी हमारी दुर्बलता की स्थिति में हमारी सहायता के लिए हमसे जुड़ जाते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस प्रकार करना सही है किन्तु पवित्रात्मा स्वयं हमारे लिए मध्यस्थ होकर ऐसी आहों के साथ जो बयान से बाहर है प्रार्थना करते रहते हैं 27 तथा मनों को जाँचनेवाले परमेश्वर यह जानते हैं कि पवित्रात्मा का उद्धेश्य क्या है क्योंकि पवित्रात्मा परमेश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं.
41 मसीह येशु का यह दावा सुन कर: “स्वर्ग से उतरी रोटी मैं ही हूँ,” यहूदी कुड़कुड़ाने लगे 42 और आपस में मन्त्रणा करने लगे, “क्या यह योसेफ़ का पुत्र येशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो अब यह कैसे कह रहा है कि यह स्वर्ग से आया है?”
43 यह जान कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “कुड़कुड़ाओ मत,” 44 “कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक मेरे भेजने वाले—पिता—उसे अपनी ओर खींच न लें. मैं उसे अन्तिम दिन में फिर से जीवित करूँगा. 45 भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में यह लिखा हुआ है: वे सब परमेश्वर द्वारा सिखाए हुए होंगे, अतः हर एक, जिसने पिता परमेश्वर को सुना और उनसे सीखा है, मेरे पास आता है. 46 किसी ने पिता परमेश्वर को नहीं देखा सिवाय उसके, जो पिता परमेश्वर से है, केवल उसी ने उन्हें देखा है. 47 मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: अनन्त काल का जीवन उसी का है, जो विश्वास करता है. 48 मैं ही हूँ जीवन की रोटी. 49 जंगल में तुम्हारे पूर्वजों ने मन्ना खाया फिर भी उनकी मृत्यु हो गई. 50 मैं ही स्वर्ग से उतरी रोटी हूँ कि जो कोई इसे खाए, उसकी मृत्यु न हो. 51 मैं ही स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी हूँ. जो कोई यह रोटी खाता है, वह हमेशा जीवित रहेगा. जो रोटी मैं दूँगा, वह संसार के जीवन के लिए भेंट मेरा शरीर है.”
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