Book of Common Prayer
अन्तिम चेतावनियाँ
13 तुम्हारे पास मैं तीसरी बार आ रहा हूँ. हर एक सच की पुष्टि के लिए दो या तीन गवाहों की ज़रूरत होती है. 2 वहाँ अपने दूसरी बार ठहरने के अवसर पर मैंने तुमसे कहा था और अब वहाँ अनुपस्थित होने पर भी वहाँ आने से पहले मैं उन सब से यह कह रहा हूँ: जिन्होंने अतीत में पाप किया है तथा बाकी लोगों से भी, यदि मैं फिर आऊँगा तो किसी पर दया न करूँगा 3 क्योंकि तुम यह सबूत चाहते हो कि जो मेरे द्वारा बातें करते हैं, वह मसीह हैं और वह तुम्हारे प्रति निर्बल नहीं परन्तु तुम्हारे मध्य सामर्थी हैं. 4 वास्तव में वह दुर्बलता की अवस्था में ही क्रूसित किए गए, फिर भी वह परमेश्वर के सामर्थ्य में जीवित हैं. निस्सन्देह हम उनमें कमज़ोर हैं, फिर भी हम तुम्हारे लिए परमेश्वर के सक्रिय सामर्थ्य के कारण उनके साथ जीवित रहेंगे.
5 स्वयं को परखो कि तुम विश्वास में हो या नहीं. अपने आप को जाँचो! क्या तुम्हें यह अहसास नहीं होता कि मसीह येशु तुममें हैं. यदि नहीं तो तुम कसौटी पर खरे नहीं उतरे. 6 मुझे भरोसा है कि तुम यह जान जाओगे कि हम कसौटी पर खोटे नहीं उतरे. 7 हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुमसे कोई गलती न हो. इसलिए नहीं कि हम भले दिखाई दें परन्तु इसलिए कि तुम वही करो, जो उचित है, फिर हम भले ही खोटे दिखाई दें. 8 सच्चाई के विरोध में हम कुछ भी नहीं कर सकते. हम सच के पक्षधर ही रह सकते हैं. 9 हम अपने कमज़ोर होने तथा तुम्हारे समर्थ होने पर आनन्दित होते हैं और यह प्रार्थना भी करते हैं कि तुम सिद्ध बन जाओ. 10 इस कारण दूर होते हुए भी मैं तुम्हें यह सब लिख रहा हूँ कि वहाँ उपस्थिति होने पर मुझे प्रभु द्वारा दिए गए अधिकार का प्रयोग कठोर भाव में न करना पढ़े. इस अधिकार का उद्धेश्य है उन्नत करना, न कि नाश करना.
आशीर्वचन
11 अन्त में, प्रियजन, आनन्दित रहो, अपना स्वभाव साफ़ रखो, एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, एकमत रहो, शान्ति बनाए रखो और प्रेम और शान्ति के परमेश्वर तुम्हारे साथ होंगे.
12 पवित्र चुम्बन से एक दूसरे का नमस्कार करो. 13 सभी पवित्र लोगों की ओर से नमस्कार.
14 प्रभु मसीह येशु का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्रात्मा की सहभागिता तुम सभी के साथ बनी रहे.
22 उस अवसर पर अनेक मुझसे प्रश्न करेंगे, ‘प्रभु, क्या हमने आपके नाम में भविष्यवाणी न की, क्या हमने आपके ही नाम में प्रेतों को न निकाला और क्या हमने आपके नाम में अनेक आश्चर्यकाम न किए?’ 23 मैं उनसे स्पष्ट कहूँगा, ‘मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं. दुष्टो! चले जाओ मेरे सामने से!’
24 “इसलिए हर एक की तुलना, जो मेरी इन शिक्षाओं को सुन कर उनका पालन करता है, उस बुद्धिमान व्यक्ति से की जा सकती है, जिसने अपने भवन का निर्माण चट्टान पर किया. 25 आँधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई और उस भवन पर थपेड़े पड़े, फिर भी वह भवन स्थिर खड़ा रहा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर थी. 26 इसके विपरीत हर एक जो, मेरी इन शिक्षाओं को सुनता तो है किन्तु उनका पालन नहीं करता, वह उस निर्बुद्धि के समान होगा जिसने अपने भवन का निर्माण रेत पर किया. 27 आँधी उठी, वर्षा हुई, बाढ़ आई, उस भवन पर थपेड़े पड़े और वह धराशायी हो गया—भयावह था उसका विनाश!”
28 जब येशु ने यह शिक्षाएं दीं, भीड़ आश्चर्यचकित रह गई 29 क्योंकि येशु की शिक्षा-शैली अधिकारपूर्ण थी, न कि शास्त्रियों के समान.
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.