Book of Common Prayer
कोरिन्थॉस के विश्वासियों के लिए पौलॉस की हितचिन्ता
11 यह करते हुए मैंने स्वयं को मूर्ख बना लिया है. तुमने ही मुझे इसके लिए मजबूर किया है. होना तो यह था कि तुम मेरी प्रशंसा करते. यद्यपि मैं तुच्छ हूँ फिर भी मैं उन बड़े-बड़े प्रेरितों की तुलना में कम नहीं हूँ. 12 मैंने तुम्हारे बीच रहते हुए प्रेरिताई प्रमाणस्वरूप धीरज, चमत्कार चिह्न, अद्भुत काम तथा सामर्थ्य भरे काम दिखाए. 13 भला तुम किस क्षेत्र में अन्य कलीसियाओं की तुलना में कम रहे, सिवाय इसके कि मैं कभी भी तुम्हारे लिए बोझ नहीं बना? क्षमा कर दो. मुझसे भूल हो गई.
14 मैं तीसरी बार वहाँ आने के लिए तैयार हूँ. मैं तुम्हारे लिए बोझ नहीं बनूँगा. मेरी रुचि तुम्हारी सम्पत्ति में नहीं, स्वयं तुममें है. सन्तान से यह आशा नहीं की जाती कि वे माता-पिता के लिए कमाएं—सन्तान के लिए माता-पिता कमाते हैं. 15 तुम्हारी आत्माओं के भले के लिए मैं निश्चित ही अपना सब कुछ तथा खुद को खर्च करने के लिए तैयार हूँ. क्या तुम्हें बढ़कर प्रेम करने का बदला तुम मुझे कम प्रेम करने के द्वारा दोगे? 16 कुछ भी हो, मैं तुम पर बोझ नहीं बना. फिर भी कोई न कोई मुझ पर यह दोष ज़रूर लगा सकता है, “बड़ा धूर्त है वह! छल कर गया है तुमसे!” 17 तुम्हीं बताओ, क्या वास्तव में इन व्यक्तियों को तुम्हारे पास भेजकर मैंने तुम्हारा गलत फायदा उठाया है? 18 तीतॉस को तुम्हारे पास भेजने की विनती मैंने की थी. उसके साथ अपने इस भाई को भी मैंने ही भेजा था. क्या तीतॉस ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया? क्या हमारा स्वभाव एक ही भाव से प्रेरित न था? क्या हम उन्हीं पदचिह्नों पर न चले?
19 यह सम्भव है तुम अपने मन में यह विचार कर रहे हो कि हम यह सब अपने बचाव में कह रहे हैं. प्रिय मित्रो, हम यह सब परमेश्वर के सामने मसीह येशु में तुम्हें उन्नत करने के उद्धेश्य से कह रहे हैं. 20 मुझे यह डर है कि मेरे वहाँ आने पर मैं तुम्हें अपनी उम्मीद के अनुसार न पाऊँ और तुम भी मुझे अपनी उम्मीद के अनुसार न पाओ. मुझे डर है कि वहाँ झगड़ा, जलन, क्रोध, उदासी, बदनामी, बकवाद, अहंकार तथा व्यवस्था ठीक से न हो. 21 मुझे डर है कि मेरे वहाँ दोबारा आने पर कहीं मेरे परमेश्वर तुम्हारे सामने मेरी प्रतिष्ठा भंग न कर दें और मुझे तुममें से अनेक के अतीत में किए गए पापों तथा उनके अशुद्धता, गैर-कानूनी तथा कामुकता भरे स्वभाव के लिए पश्चाताप न करने के कारण शोक करना पड़े.
दो मार्ग
13 “सकेत द्वार में से प्रवेश करो क्योंकि विशाल है वह द्वार और चौड़ा है वह मार्ग, जो विनाश तक ले जाता है और अनेक हैं, जो इसमें से प्रवेश करते हैं 14 क्योंकि सकेत है वह द्वार तथा कठिन है वह मार्ग, जो जीवन तक ले जाता है और थोड़े ही हैं, जो इसे प्राप्त करते हैं.
फलदायी जीवन के विषय में शिक्षा
(लूकॉ 6:43-45)
15 “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के वेश में तुम्हारे बीच आ जाते हैं किन्तु वास्तव में वे भूखे भेड़िये होते हैं. 16 उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान जाओगे. न तो कँटीली झाड़ियों में से अंगूर और न ही भटकटैया से अंजीर इकट्ठे किए जाते हैं. 17 वस्तुतः हर एक उत्तम पेड़ उत्तम फल ही फलता है और बुरा पेड़ बुरा फल. 18 यह सम्भव ही नहीं कि उत्तम पेड़ बुरा फल दे और बुरा पेड़ उत्तम फल. 19 जो पेड़ उत्तम फल नहीं देता, उसे काट कर आग में झोंक दिया जाता है. 20 इसलिए उनके स्वभाव से तुम उन्हें पहचान लोगे.
वास्तविक शिष्य
(लूकॉ 6:46-49)
21 “मुझे प्रभु, प्रभु सम्बोधित करता हुआ हर एक व्यक्ति स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं पाएगा परन्तु प्रवेश केवल वह पाएगा, जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है.
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