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यीशु के अनुयायी ही उसका परिवार

(मरकुस 3:31-35; लूका 8:19-21)

46 वह अभी भीड़ के लोगों से बातें कर ही रहा था कि उसकी माता और भाई-बन्धु वहाँ आकर बाहर खड़े हो गये। वे उससे बातें करने को बाट जोह रहे थे। 47 किसी ने यीशु से कहा, “सुन तेरी माँ और तेरे भाई-बन्धु बाहर खड़े हैं और तुझसे बात करना चाहते हैं।”

48 उत्तर में यीशु ने बात करने वाले से कहा, “कौन है मेरी माँ? कौन हैं मेरे भाई-बन्धु?” 49 फिर उसने हाथ से अपने अनुयायिओं की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये हैं मेरी माँ और मेरे भाई-बन्धु। 50 हाँ स्वर्ग में स्थित मेरे पिता की इच्छा पर जो कोई चलता है, वही मेरा भाई, बहन और माँ है।”

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यीशु के अनुयायी ही उसका सच्चा परिवार

(मत्ती 12:46-50; लूका 8:19-21)

31 तभी उसकी माँ और भाई वहाँ आये और बाहर खड़े हो कर उसे भीतर से बुलवाया। 32 यीशु के चारों ओर भीड़ बैठी थी। उन्होंने उससे कहा, “देख तेरी माता, तेरे भाई और तेरी बहनें तुझे बाहर बुला रहे हैं।”

33 यीशु नें उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माँ और मेरे भाई कौन हैं?” 34 उसे घेर कर चारों ओर बैठे लोगों पर उसने दृष्टि डाली और कहा, “ये है मेरी माँ और मेरे भाई! 35 जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वही मेरा भाई, बहन और माँ है।”

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यीशु के अनुयायी ही उसका सच्चा परिवार है

(मत्ती 12:46-50; मरकुस 3:31-35)

19 तभी यीशु की माँ और उसके भाई उसके पास आये किन्तु वे भीड़ के कारण उसके निकट नहीं जा सके। 20 इसलिये यीशु से यह कहा गया, “तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं। वे तुझसे मिलना चाहते हैं।”

21 किन्तु यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माँ और मेरे भाई तो ये हैं जो परमेश्वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं।”

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