अय्यूब 19-21
Hindi Bible: Easy-to-Read Version
अय्यूब का उत्तर
19 तब अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “कब तक तुम मुझे सताते रहोगे
और शब्दों से मुझको तोड़ते रहोगे?
3 अब देखों, तुमने दसियों बार मुझे अपमानित किया है।
मुझ पर वार करते तुम्हें शर्म नहीं आती है।
4 यदि मैंने पाप किया तो यह मेरी समस्या है।
यह तुम्हें हानि नहीं पहुँचाता।
5 तुम बस यह चाहते हो कि तुम मुझसे उत्तम दिखो।
तुम कहते हो कि मेरे कष्ट मुझ को दोषी प्रमाणित करते हैं।
6 किन्तु वह तो परमेश्वर है जिसने मेरे साथ बुरा किया है
और जिसने मेरे चारों तरफ अपना फंदा फैलाया है।
7 मैं पुकारा करता हूँ, ‘मेरे संग बुरा किया है।’
लेकिन मुझे कोई उत्तर नहीं मिलता हूँ।
चाहे मैं न्याय की पुकार पुकारा करुँ मेरी कोई नहीं सुनता है।
8 मेरा मार्ग परमेश्वर ने रोका है, इसलिये उसको मैं पार नहीं कर सकता।
उसने अंधकार में मेरा मार्ग छुपा दिया है।
9 मेरा सम्मान परमेश्वर ने छीना है।
उसने मेरे सिर से मुकुट छीन लिया है।
10 जब तक मेरा प्राण नहीं निकल जाता, परमेश्वर मुझ को करवट दर करवट पटकियाँ देता है।
वह मेरी आशा को ऐसे उखाड़ता है
जैसे कोई जड़ से वृक्ष को उखाड़ दे।
11 मेरे विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध भड़क रहा है।
वह मुझे अपना शत्रु कहता है।
12 परमेश्वर अपनी सेना मुझ पर प्रहार करने को भेजता है।
वे मेरे चारों और बुर्जियाँ बनाते हैं।
मेरे तम्बू के चारों ओर वे आक्रमण करने के लिये छावनी बनाते हैं।
13 “मेरे बन्धुओं को परमेश्वर ने बैरी बनाया।
अपने मित्रों के लिये मैं पराया हो गया।
14 मेरे सम्बन्धियों ने मुझको त्याग दिया।
मेरे मित्रों ने मुझको भुला दिया।
15 मेरे घर के अतिथि और मेरी दासियाँ
मुझे ऐसे दिखते हैं मानों अन्जाना या परदेशी हूँ।
16 मैं अपने दास को बुलाता हूँ पर वह मेरी नहीं सुनता है।
यहाँ तक कि यदि मैं सहायता माँगू तो मेरा दास मुझको उत्तर नहीं देता।
17 मेरी ही पत्नी मेरे श्वास की गंध से घृणा करती है।
मेरे अपनी ही भाई मुझ से घृणा करते हैं।
18 छोटे बच्चे तक मेरी हँसी उड़ाते है।
जब मैं उनके पास जाता हूँ तो वे मेरे विरुद्ध बातें करते हैं।
19 मेरे अपने मित्र मुझ से घृणा करते हैं।
यहाँ तक कि ऐसे लोग जो मेरे प्रिय हैं, मेरे विरोधी बन गये हैं।
20 “मैं इतना दुर्बल हूँ कि मेरी खाल मेरी हड्डियों पर लटक गई।
अब मुझ में कुछ भी प्राण नहीं बचा है।
21 “हे मेरे मित्रों मुझ पर दया करो, दया करो मुझ पर
क्योंकि परमेश्वर का हाथ मुझ को छू गया है।
22 क्यों मुझे तुम भी सताते हो जैसे मुझको परमेश्वर ने सताया है?
क्यों मुझ को तुम दु:ख देते और कभी तृप्त नहीं होते हो?
23 “मेरी यह कामना है, कि जो मैं कहता हूँ उसे कोई याद रखे और किसी पुस्तक में लिखे।
मेरी यह कामना है, कि काश! मेरे शब्द किसी गोल पत्रक पर लिखी जाती।
24 मेरी यह कामना है काश! मैं जिन बातों को कहता उन्हें किसी लोहे की टाँकी से सीसे पर लिखा जाता,
अथवा उनको चट्टान पर खोद दिया जाता, ताकि वे सदा के लिये अमर हो जाती।
25 मुझको यह पता है कि कोई एक ऐसा है, जो मुझको बचाता है।
मैं जानता हूँ अंत में वह धरती पर खड़ा होगा और मुझे बचायेगा।
26 यहाँ तक कि मेरी चमड़ी नष्ट हो जाये, किन्तु काश,
मैं अपने जीते जी परमेश्वर को देख सकूँ।
27 अपने लिये मैं परमेश्वर को स्वयं देखना चाहता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि स्वयं उसको अपनी आँखों से देखूँ न कि किसी दूसरे की आँखों से।
मेरा मन मुझ में ही उतावला हो रहा है।
28 “सम्भव है तुम कहो, ‘हम अय्यूब को तंग करेंगे।
उस पर दोष मढ़ने का हम को कोई कारण मिल जायेगा।’
29 किन्तु तुम्हें स्वयं तलवार से डरना चाहिये क्योंकि पापी के विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध दण्ड लायेगा।
तुम्हें दण्ड देने को परमेश्वर तलवार काम में लायेगा
तभी तुम समझोगे कि वहाँ न्याय का एक समय है।”
20 इस पर नामात प्रदेश के सोपर ने उत्तर दिया:
2 “अय्यूब, तेरे विचार विकल है, सो मैं तुझे निश्चय ही उत्तर दूँगा।
मुझे निश्चय ही जल्दी करनी चाहिये तुझको बताने को कि मैं क्या सोच रहा हूँ।
3 तेरे सुधान भरे उत्तर हमारा अपमान करते हैं।
किन्तु मैं विवेकी हूँ और जानता हूँ कि तुझे कैसे उत्तर दिया जाना चाहिये।
4-5 “इसे तू तब से जानता है जब बहुत पहले आदम को धरती पर भेजा गया था, दुष्ट जन का आनन्द बहुत दिनों नहीं टिकता हैं।
ऐसा व्यक्ति जिसे परमेश्वर की चिन्ता नहीं है
वह थोड़े समय के लिये आनन्दित होता है।
6 चाहे दुष्ट व्यक्ति का अभिमान नभ छू जाये,
और उसका सिर बादलों को छू जाये,
7 किन्तु वह सदा के लिये नष्ट हो जायेगा जैसे स्वयं उसका देहमल नष्ट होगा।
वे लोग जो उसको जानते हैं कहेंगे, ‘वह कहाँ है’
8 वह ऐसे विलुप्त होगा जैसे स्वप्न शीघ्र ही कहीं उड़ जाता है। फिर कभी कोई उसको देख नहीं सकेगा,
वह नष्ट हो जायेगा, उसे रात के स्वप्न की तरह हाँक दिया जायेगा।
9 वे व्यक्ति जिन्होंने उसे देखा था फिर कभी नहीं देखेंगे।
उसका परिवार फिर कभी उसको नहीं देख पायेगा।
10 जो कुछ भी उसने (दुष्ट) गरीबों से लिया था उसकी संताने चुकायेंगी।
उनको अपने ही हाथों से अपना धन लौटाना होगा।
11 जब वह जवान था, उसकी काया मजबूत थी,
किन्तु वह शीघ्र ही मिट्टी हो जायेगी।
12 “दुष्ट के मुख को दुष्टता बड़ी मीठी लगती है,
वह उसको अपनी जीभ के नीचे छुपा लेगा।
13 बुरा व्यक्ति उस बुराई को थामे हुये रहेगा,
उसका दूर हो जाना उसको कभी नहीं भायेगा,
सो वह उसे अपने मुँह में ही थामे रहेगा।
14 किन्तु उसके पेट में उसका भोजन जहर बन जायेगा,
वह उसके भीतर ऐसे बन जायेगा जैसे किसी नाग के विष सा कड़वा जहर।
15 दुष्ट सम्पत्तियों को निगल जाता है किन्तु वह उन्हें बाहर ही उगलेगा।
परमेश्वर दुष्ट के पेट से उनको उगलवायेगा।
16 दुष्ट जन साँपों के विष को चूस लेगा
किन्तु साँपों के विषैले दाँत उसे मार डालेंगे।
17 फिर दुष्ट जन देखने का आनन्द नहीं लेंगे
ऐसी उन नदियों का जो शहद और मलाई लिये बहा करती हैं।
18 दुष्ट को उसका लाभ वापस करने को दबाया जायेगा।
उसको उन वस्तुओं का आनन्द नहीं लेने दिया जायेगा जिनके लिये उसने परिश्रम किया है।
19 क्योंकि उस दुष्ट जन ने दीन जन से उचित व्यवहार नहीं किया।
उसने उनकी परवाह नहीं की और उसने उनकी वस्तुऐं छीन ली थी,
जो घर किसी और ने बनाये थे उसने वे हथियाये थे।
20 “दुष्ट जन कभी भी तृप्त नहीं होता है,
उसका धन उसको नहीं बचा सकता है।
21 जब वह खाता है तो कुछ नहीं छोड़ता है,
सो उसकी सफलता बनी नहीं रहेगी।
22 जब दुष्ट जन के पास भरपूर होगा
तभी दु:खों का पहाड़ उस पर टूटेगा।
23 दुष्ट जन वह सब कुछ खा चुकेगा जिसे वह खाना चाहता है।
परमेश्वर अपना धधकता क्रोध उस पर डालेगा।
उस दुष्ट व्यक्ति पर परमेश्वर दण्ड बरसायेगा।
24 सम्भव है कि वह दुष्ट लोहे की तलवार से बच निकले,
किन्तु कहीं से काँसे का बाण उसको मार गिरायेगा।
25 वह काँसे का बाण उसके शरीर के आर पार होगा और उसकी पीठ भेद कर निकल जायेगा।
उस बाण की चमचमाती हुई नोंक उसके जिगर को भेद जायेगी
और वह भय से आतंकित हो जायेगा।
26 उसके सब खजाने नष्ट हो जायेंगे,
एक ऐसी आग जिसे किसी ने नहीं जलाया उसको नष्ट करेगी,
वह आग उनको जो उसके घर में बचे हैं नष्ट कर डालेगी।
27 स्वर्ग प्रमाणित करेगा कि वह दुष्ट अपराधी है,
यह गवाही धरती उसके विरुद्ध देगी।
28 जो कुछ भी उसके घर में है,
वह परमेश्वर के क्रोध की बाढ़ में बह जायेगा।
29 यह वही है जिसे परमेश्वर दुष्टों के साथ करने की योजना रचता है।
यह वही है जैसा परमेश्वर उन्हें देने की योजना रचता है।”
अय्यूब का उत्तर
21 इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “तू कान दे उस पर जो मैं कहता हूँ,
तेरे सुनने को तू चैन बनने दे जो तू मुझे देता है।
3 जब मैं बोलता हूँ तो तू धीरज रख,
फिर जब मैं बोल चुकूँ तब तू मेरी हँसी उड़ा सकता है।
4 “मेरी शिकायत लोगों के विरुद्ध नहीं है,
मैं क्यों सहनशील हूँ इसका एक कारण नहीं है।
5 तू मुझ को देख और तू स्तंभित हो जा,
अपना हाथ अपने मुख पर रख और मुझे देख और स्तब्ध हो।
6 जब मैं सोचता हूँ उन सब को जो कुछ मेरे साथ घटा तो
मुझको डर लगता है और मेरी देह थर थर काँपती है।
7 क्यों बुरे लोगों की उम्र लम्बी होती है?
क्यों वे वृद्ध और सफल होते हैं?
8 बुरे लोग अपनी संतानों को अपने साथ बढ़ते हुए देखते हैं।
बुरे लोग अपनी नाती—पोतों को देखने को जीवित रहा करते हैं।
9 उनके घर सुरक्षित रहते हैं और वे नहीं डरते हैं।
परमेश्वर दुष्टों को सजा देने के लिये अपना दण्ड काम में नहीं लाता है।
10 उनके सांड कभी भी बिना जोड़ा बांधे नहीं रहे,
उनकी गायों के बछेरें होते हैं और उनके गर्भ कभी नहीं गिरते हैं।
11 बुरे लोग बच्चों को बाहर खेलने भेजते हैं मेमनों के जैसे,
उनके बच्चें नाचते हैं चारों ओर।
12 वीणा और बाँसुरी के स्वर पर वे गाते और नाचते हैं।
13 बुरे लोग अपने जीवन भर सफलता का आनन्द लेते हैं।
फिर बिना दु:ख भोगे वे मर जाते हैं और अपनी कब्रों के बीच चले जाते हैं।
14 किन्तु बुरे लोग परमेश्वर से कहा करते है, ‘हमें अकेला छोड़ दे।
और इसकी हमें परवाह नहीं कि
तू हमसे कैसा जीवन जीना चाहता है।’
15 “दुष्ट लोग कहा करते हैं, ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर कौन है?
हमको उसकी सेवा की जरूरत नहीं है।
उसकी प्रार्थना करने का कोई लाभ नहीं।’
16 “दुष्ट जन सोचते है कि उनको अपने ही कारण सफलताऐं मिलती हैं,
किन्तु मैं उनको विचारों को नहीं अपना सकता हूँ।
17 किन्तु क्या प्राय: ऐसा होता है कि दुष्ट जन का प्रकाश बुझ जाया करता है?
कितनी बार दुष्टों को दु:ख घेरा करते हैं?
क्या परमेश्वर उनसे कुपित हुआ करता है, और उन्हें दण्ड देता है?
18 क्या परमेश्वर दुष्ट लोगों को ऐसे उड़ाता है जैसे हवा तिनके को उड़ाती है
और तेज हवायें अन्न का भूसा उड़ा देती हैं?
19 किन्तु तू कहता है: ‘परमेश्वर एक बच्चे को उसके पिता के पापों का दण्ड देता है।’
नहीं, परमेश्वर को चाहिये कि बुरे जन को दण्डित करें। तब वह बुरा व्यक्ति जानेगा कि उसे उसके निज पापों के लिये दण्ड मिल रहा है।
20 तू पापी को उसके अपने दण्ड को दिखा दे,
तब वह सर्वशक्तिशाली परमेश्वर के कोप का अनुभव करेगा।
21 जब बुरे व्यक्ति की आयु के महीने समाप्त हो जाते हैं और वह मर जाता है;
वह उस परिवार की परवाह नहीं करता जिसे वह पीछे छोड़ जाता है।
22 “कोई व्यक्ति परमेश्वर को ज्ञान नहीं दे सकता,
वह ऊँचे पदों के जनों का भी न्याय करता है।
23 एक पूरे और सफल जीवन के जीने के बाद एक व्यक्ति मरता है,
उसने एक सुरक्षित और सुखी जीवन जिया है।
24 उसकी काया को भरपूर भोजन मिला था
अब तक उस की हड्डियाँ स्वस्थ थीं।
25 किन्तु कोई एक और व्यक्ति कठिन जीवन के बाद दु:ख भरे मन से मरता है,
उसने जीवन का कभी कोई रस नहीं चखा।
26 ये दोनो व्यक्ति एक साथ माटी में गड़े सोते हैं,
कीड़े दोनों को एक जैसे ढक लेंगे।
27 “किन्तु मैं जानता हूँ कि तू क्या सोच रहा है,
और मुझको पता है कि तेरे पास मेरा बुरा करने को कुचक्र है।
28 मेरे लिये तू यह कहा करता है कि ‘अब कहाँ है उस महाव्यक्ति का घर?
कहाँ है वह घर जिसमें वह दुष्ट रहता था?’
29 “किन्तु तूने कभी बटोहियों से नहीं पूछा
और उनकी कहानियों को नहीं माना।
30 कि उस दिन जब परमेश्वर कुपित हो कर दण्ड देता है
दुष्ट जन सदा बच जाता है।
31 ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो उसके मुख पर ही उसके कर्मों की बुराई करे,
उसके बुरे कर्मों का दण्ड कोई व्यक्ति उसे नहीं देता।
32 जब कोई दुष्ट व्यक्ति कब्र में ले जाया जाता है,
तो उसके कब्र के पास एक पहरेदार खड़ा रहता है।
33 उस दुष्ट जन के लिये उस घाटी की मिट्टी मधुर होगी,
उसकी शव—यात्रा में हजारों लोग होंगे।
34 “सो अपने कोरे शब्दों से तू मुझे चैन नहीं दे सकता,
तेरे उत्तर केवल झूठे हैं।”
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