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स्त्री ने फिर कहा

मैं अपने प्रियतम की आवाज़ सुनती हूँ।
    यह पहाड़ों से उछलती हुई
    और पहाड़ियों से कूदती हुई आती है।
मेरा प्रियतम सुन्दर कुरंग
    अथवा हरिण जैसा है।
देखो वह हमारी दीवार के उस पार खड़ा है,
    वह झंझरी से देखते हुए
    खिड़कियों को ताक रहा है।
10 मेरा प्रियतम बोला और उसने मुझसे कहा,
“उठो, मेरी प्रिये, हे मेरी सुन्दरी,
    आओ कहीं दूर चलें!
11 देखो, शीत ऋतु बीत गई है,
    वर्षा समाप्त हो गई और चली गई है।
12 धरती पर फूल खिलें हुए हैं।
    चिड़ियों के गाने का समय आ गया है!
    धरती पर कपोत की ध्वनि गुंजित है।
13 अंजीर के पेड़ों पर अंजीर पकने लगे हैं।
    अंगूर की बेलें फूल रही हैं, और उनकी भीनी गन्ध फैल रही है।
मेरे प्रिय उठ, हे मेरे सुन्दर,
    आओ कहीं दूर चलें!”

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