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यीशु की अपने शिष्यों से बातचीत

(मरकुस 16:14-18; लूका 24:36-49; यूहन्ना 20:19-23; प्रेरितों के काम 1:6-8)

16 फिर ग्यारह शिष्य गलील में उस पहाड़ी पर पहुँचे जहाँ जाने को उनसे यीशु ने कहा था। 17 जब उन्होंने यीशु को देखा तो उसकी उपासना की। यद्यपि कुछ के मन में संदेह था। 18 फिर यीशु ने उनके पास जाकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी अधिकार मुझे सौंपे गये हैं। 19 सो, जाओ और सभी देशों के लोगों को मेरा अनुयायी बनाओ। तुम्हें यह काम परम पिता के नाम में, पुत्र के नाम में और पवित्र आत्मा के नाम में, उन्हें बपतिस्मा देकर पूरा करना है। 20 वे सभी आदेश जो मैंने तुम्हें दिये हैं, उन्हें उन पर चलना सिखाओ। और याद रखो इस सृष्टि के अंत तक मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा।”

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लूका द्वारा लिखी गयी दूसरी पुस्तक का परिचय

हे थियुफिलुस,

मैंने अपनी पहली पुस्तक में उन सब कार्यों के बारे में लिखा जिन्हें प्रारंम्भ से ही यीशु ने किया और उस दिन तक उपदेश दिया जब तक पवित्र आत्मा के द्वारा अपने चुने हुए प्रेरितों को निर्देश दिए जाने के बाद उसे ऊपर स्वर्ग में उठा न लिया गया। अपनी मृत्यु के बाद उसने अपने आपको बहुत से ठोस प्रमाणों के साथ उनके सामने प्रकट किया कि वह जीवित है। वह चालीस दिनों तक उनके सामने प्रकट होता रहा तथा परमेश्वर के राज्य के विषय में उन्हें बताता रहा। फिर एक बार जब वह उनके साथ भोजन कर रहा था तो उसने उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम को मत छोड़ना बल्कि जिसके बारे में तुमने मुझसे सुना है, परम पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरा होने की प्रतीक्षा करना। क्योंकि यूहन्ना ने तो जल से बपतिस्मा दिया था, किन्तु तुम्हें अब थोड़े ही दिनों बाद पवित्र आत्मा से बपतिस्मा दिया जायेगा।”

यीशु का स्वर्ग में ले जाया जाना

सो जब वे आपस में मिले तो उन्होंने उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल के राज्य की फिर से स्थापना कर देगा?”

उसने उनसे कहा, “उन अवसरों या तिथियों को जानना तुम्हारा काम नहीं है, जिन्हें परम पिता ने स्वयं अपने अधिकार से निश्चित किया है। बल्कि जब पवित्र आत्मा तुम पर आयेगा, तुम्हें शक्ति प्राप्त हो जायेगी, और यरूशलेम में, समूचे यहूदिया और सामरिया में और धरती के छोरों तक तुम मेरे साक्षी बनोगे।”

इतना कहने के बाद उनके देखते देखते उसे स्वर्ग में ऊपर उठा लिया गया और फिर एक बादल ने उसे उनकी आँखों से ओझल कर दिया। 10 जब वह जा रहा था तो वे आकाश में उसके लिये आँखें बिछाये थे। तभी तत्काल श्वेत वस्त्र धारण किये हुए दो पुरुष उनके बराबर आ खड़े हुए 11 और कहा, “हे गलीली लोगों, तुम वहाँ खड़े-खड़े आकाश में टकटकी क्यों लगाये हो? यह यीशु जिसे तुम्हारे बीच से स्वर्ग में ऊपर उठा लिया गया, जैसे तुमने उसे स्वर्ग में जाते देखा, वैसे ही वह फिर वापस लौटेगा।”

एक नये प्रेरित का चुनाव

12 फिर वे जैतून नाम के पर्वत से, जो यरूशलेम से कोई एक किलोमीटर[a] की दूरी पर स्थित है, यरूशलेम लौट आये।

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Footnotes

  1. 1:12 किलोमीटर शाब्दिक, सब्त के एक दिन की दूरी पर यानी सब्त के दिन विधान के द्वारा कितनी दूर चलना वैध था।