मत्तियाह 28:11-15
Saral Hindi Bible
यहूदी अगुवों का प्रहरियों को घूस देना
11 वे जब मार्ग में ही थीं, कुछ प्रहरियों ने नगर में जा कर प्रधान पुरोहितों को इस घटना की सूचना दी. 12 उन्होंने पुरनियों को इकट्ठा कर उनसे विचार-विमर्श किया और पहरुओं को बड़ी धनराशि देते हुए उन्हें यह आज्ञा दी, 13 “तुम्हें यह कहना होगा, ‘रात में जब हम सो रहे थे, उसके शिष्य उसे चुरा ले गए.’ 14 यदि राज्यपाल को इसके विषय में कुछ मालूम हो जाए, हम उन्हें समझा लेंगे और तुम पर कोई आँच न आने देंगे.” 15 धनराशि ले कर पहरुओं ने वही किया जो उनसे कहा गया था. यहूदियों में यही धारणा आज तक प्रचलित है.
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मारक 16:12-15
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मसीह येशु का दो यात्रियों को दिखाई देना
(लूकॉ 24:13-34)
12 इसके बाद मसीह येशु दो अन्यों पर भी, जब वे अपने गाँव की ओर जा रहे थे, प्रकट हुए. 13 इन्होंने जा कर अन्यों को भी इस विषय में बताया किन्तु उन्होंने भी इस पर विश्वास न किया.
14 तब वह ग्यारह शिष्यों पर भी प्रकट हुए. वे सब चौकी पर बैठे हुए थे. उन्होंने शिष्यों के अविश्वास तथा मन की कठोरता की उल्लाहना की क्योंकि उन्होंने उनके जीवित होने के बाद देखनेवालों का विश्वास नहीं किया था.
सर्वोच्च आयोग
(मत्ति 28:16-20)
15 मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिया, “सारे जगत में जा कर सारी सृष्टि में सुसमाचार का प्रचार करो.
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लूकॉ 24:13-35
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मसीह येशु का दो यात्रियों को दिखाई देना
(मारक 16:12-13)
13 उसी दिन दो शिष्य इम्माउस नामक गाँव की ओर जा रहे थे, जो येरूशालेम नगर से लगभग ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर था. 14 सारा घटनाक्रम ही उनकी आपस की बातों का विषय था. 15 जब वे विचार-विमर्श और बातचीत में मग्न ही थे, स्वयं मसीह येशु उनके पास पहुँच कर उनके साथ-साथ चलने लगे.
16 किन्तु उनकी आँखें ऐसी बंद कर दी गई थीं कि वे मसीह येशु को पहचानने न पाएँ.
17 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “आप लोग किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे रुक गए. उनके मुख पर उदासी छायी हुई थी.
18 उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लोपस था, इसके उत्तर में उनसे यह प्रश्न किया, “आप येरूशालेम में आए अकेले ऐसे परदेसी हैं कि आपको यह मालूम नहीं कि यहाँ इन दिनों में क्या-क्या हुआ है!”
19 “क्या-क्या हुआ है?” मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया.
उन्होंने उत्तर दिया, “नाज़रेथवासी मसीह येशु से सम्बन्धित घटनाएँ—मसीह येशु, जो वास्तव में परमेश्वर और सभी जनसाधारण की नज़र में और काम में सामर्थी भविष्यद्वक्ता थे. 20 उन्हें प्रधान पुरोहितों और हमारे सरदारों ने मृत्युदण्ड दिया और क्रूस पर चढ़ा दिया. 21 हमारी आशा यह थी कि मसीह येशु इस्राएल राष्ट्र को स्वतन्त्र करवा देंगे. यह आज से तीन दिन पूर्व की घटना है. 22 किन्तु हमारे समुदाय की कुछ स्त्रियों ने हमें आश्चर्य में डाल दिया है. पौ फटते ही वे क़ब्र पर गई थीं 23 किन्तु उन्हें वहाँ मसीह येशु का शव नहीं मिला. उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने वहाँ स्वर्गदूतों को देखा है; जिन्होंने उन्हें सूचना दी कि मसीह येशु जीवित हैं. 24 हमारे कुछ साथी भी क़ब्र पर गए थे और उन्होंने ठीक वैसा ही पाया जैसा स्त्रियों ने बताया था किन्तु मसीह येशु को उन्होंने नहीं देखा.”
25 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “ओ मूर्खो! भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दबुद्धियो! 26 क्या मसीह के लिए यह ज़रूरी न था कि वह सभी यन्त्रणाएँ सह कर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 तब मसीह येशु ने पवित्रशास्त्र में स्वयं से सम्बन्धित उन सभी लिखी बातों का अर्थ उन्हें समझा दिया—मोशेह से प्रारम्भ कर सभी भविष्यद्वक्ताओं तक.
28 तब वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ उनको जाना था. मसीह येशु के व्यवहार से ऐसा भास हुआ मानो वह आगे बढ़ना चाह रहे हों 29 किन्तु उन शिष्यों ने विनती की, “हमारे साथ ही ठहर जाइए क्योंकि दिन ढल चला है और शाम होने को है.” इसलिए मसीह येशु उनके साथ भीतर चले गए.
30 जब वे सब भोजन के लिए बैठे, मसीह येशु ने रोटी ले कर आशीर्वाद के साथ उसे तोड़ा और उन्हें दे दिया. 31 तब उनकी आँखों को देखने लायक बना दिया गया और वे मसीह येशु को पहचान गए किन्तु उसी क्षण मसीह येशु उनकी आँखों से ओझल हो गए. 32 वे आपस में विचार करने लगे, “मार्ग में जब वह हमसे बातचीत कर रहे थे और पवित्रशास्त्र की व्याख्या कर रहे थे तो हमारे मन में उत्तेजना हुई थी न!”
33 तत्काल ही वे उठे और येरूशालेम को लौट गए. वहाँ उन्होंने ग्यारह शिष्यों और अन्यों को, जो वहाँ इकट्ठा थे, यह कहते पाया, 34 “हाँ, यह सच है! प्रभु मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं और शिमोन को दिखाई भी दिए हैं.” 35 तब इन दो शिष्यों ने भी मार्ग में हुई घटना का ब्यौरा सुनाया कि किस प्रकार भोजन करते समय वे मसीह येशु को पहचानने में समर्थ हो गए थे.
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