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विवेकशील प्रबन्धक का दृष्टान्त

45 “कौन है वह विश्वासयोग्य और समझदार सेवक, जिसे घर का मालिक अपने परिवार की ज़िम्मेदारी सौंप दे कि वह समय के अनुसार सबके लिए भोजन-व्यवस्था करे? 46 धन्य है वह सेवक, जिसे घर का स्वामी लौटने पर यही करते हुए पाए. 47 सच्चाई तो यह है कि घर का स्वामी उस सेवक के हाथों में अपनी सारी सम्पत्ति की ज़िम्मेदारी सौंप देगा. 48 किन्तु यदि वह सेवक बुरा हो और अपने मन में यह विचार करने लगे: ‘स्वामी के लौटने में तो बड़ी देरी हो रही है’ 49 और वह सहसेवकों के साथ मार-पीट आरम्भ कर दे, पियक्कड़ों की संगति में जा कर खाए-पिए और 50 घर का स्वामी ऐसे दिन लौट आए, जिस दिन की उस सेवक ने आशा भी न की हो—ऐसे समय पर जिसके विषय में उसे कोई ज्ञान न हो, 51 —तो स्वामी उसके टुकड़े-टुकड़े कर उसे उस स्थान पर फेंक देगा, जो कपट करने वालों के लिए निर्धारित है: जहाँ हमेशा रोना तथा दाँत पीसना होता रहेगा.”

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