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प्रेरितों पर मसीह येशु का स्वयं को प्रकट करना

(योहन 20:19-23)

36 जब वे इस बारे में बातें कर ही रहे थे, स्वयं मसीह येशु उनके बीच आ खड़े हुएहुए और उनसे बोला, “तुम्हें शान्ति मिले.”

37 वे अचम्भित और भयभीत हो गए और उन्हें लगा कि वे किसी प्रेत को देख रहे हैं. 38 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम घबरा क्यों हो रहे हो? क्यों उठ रहे हैं तुम्हारे मन में ये सन्देह? 39 देखो, ये मेरे हाथ और पांव. यह मैं ही हूँ. मुझे स्पर्श करके देख लो क्योंकि प्रेत के हाड़-मांस नहीं होता, जैसा तुम देख रहे हो कि मेरे हैं.”

40 यह कह कर उन्होंने उन्हें अपने हाथ और पांव दिखाए 41 और जब वे आश्चर्य और आनन्द की स्थिति में विश्वास नहीं कर पा रहे थे, मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या यहाँ कुछ भोजन है?” 42 उन्होंने मसीह येशु को भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया 43 और मसीह येशु ने उसे ले कर उनके सामने खाया.

44 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे साथ रहते हुए मैंने तुम लोगों से यही कहा था: वह सब पूरा होना ज़रूरी है, जो मेरे विषय में मोशेह की व्यवस्था, भविष्यद्वक्ताओं के लेख तथा भजन की पुस्तकों में लिखा गया है.”

45 तब मसीह येशु ने उनकी समझ खोल दी कि वे पवित्रशास्त्र को समझ सकें 46 और उनसे कहा, “यह लिखा है कि मसीह यातनाएँ सहे और तीसरे दिन मरे हुओं में से दोबारा जीवित किया जाए, 47 और येरूशालेम से प्रारम्भ कर सभी राष्ट्रों में उसके नाम में पाप-क्षमा के लिए पश्चाताप की घोषणा की जाए. 48 तुम सभी इन घटनाओं के गवाह हो. 49 जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, उसे मैं तुम्हारे लिए भेजूँगा किन्तु आवश्यक यह है कि तुम येरूशालेम में उस समय तक ठहरे रहो, जब तक स्वर्ग से भेजी गई सामर्थ्य से परिपूर्ण न हो जाओ.”

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