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खोए हुए को पाने के आनन्द की दृष्टान्त-कथाएँ

(मत्ती 18:12-14)

15 अब जब कर वसूलने वाले और पापी सभी उसे सुनने उसके पास आने लगे थे। तो फ़रीसी और यहूदी धर्मशास्त्री बड़बड़ाते हुए कहने लगे, “यह व्यक्ति तो पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता है।”

इस पर यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त कथा सुनाई: “मानों तुममें से किसी के पास सौ भेड़ें हैं और उनमें से कोई एक खो जाये तो क्या वह निन्यानबे भेड़ों को खुले में छोड़ कर खोई हुई भेड़ का पीछा तब तक नहीं करेगा, जब तक कि वह उसे पा न ले। फिर जब उसे भेड़ मिल जाती है तो वह उसे प्रसन्नता के साथ अपने कन्धों पर उठा लेता है। और जब घर लौटता है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुलाकर उनसे कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओ क्योंकि मुझे मेरी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’ मैं तुमसे कहता हूँ, इसी प्रकार किसी एक मन फिराने वाले पापी के लिये, उन निन्यानबे धर्मी पुरुषों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं है, स्वर्ग में कहीं अधिक आनन्द मनाया जाएगा।

“या सोचो कोई औरत है जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हैं और उसका एक सिक्का खो जाता है तो क्या वह दीपक जला कर घर को तब तक नहीं बुहारती रहेगी और सावधानी से नहीं खोजती रहेगी जब तक कि वह उसे मिल न जाये? और जब वह उसे पा लेती है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुला कर कहती है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओ क्योंकि मेरा सिक्का जो खो गया था, मिल गया है।’ 10 मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिये भी परमेश्वर के दूतों की उपस्थिति में वहाँ आनन्द मनाया जायेगा।”

भटके पुत्र को पाने की दृष्टान्त-कथा

11 फिर यीशु ने कहा: “एक व्यक्ति के दो बेटे थे। 12 सो छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘जो सम्पत्ति मेरे बाँटे में आती है, उसे मुझे दे दे।’ तो पिता ने उन दोनों को अपना धन बाँट दिया।

13 “अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था, कि छोटे बेटे ने अपनी समूची सम्पत्ति समेंटी और किसी दूर देश को चल पड़ा। और वहाँ जँगलियों सा उद्दण्ड जीवन जीते हुए उसने अपना सारा धन बर्बाद कर डाला। 14 जब उसका सारा धन समाप्त हो चुका था तभी उस देश में सभी ओर व्यापक भयानक अकाल पड़ा। सो वह अभाव में रहने लगा। 15 इसलिये वह उस देश के किसी व्यक्ति के यहाँ जाकर मज़दूरी करने लगा उसने उसे अपने खेतों में सुअर चराने भेज दिया। 16 वहाँ उसने सोचा कि उसे वे फलियाँ ही पेट भरने को मिल जायें जिन्हें सुअर खाते थे। पर किसी ने उसे एक फली तक नहीं दी।

17 “फिर जब उसके होश ठिकाने आये तो वह बोला, ‘मेरे पिता के पास कितने ही ऐसे मज़दूर हैं जिनके पास खाने के बाद भी बचा रहता है, और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ। 18 सो मैं यहाँ से उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: पिताजी, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर और तेरे विरुद्ध पाप किया है। 19 अब आगे मैं तेरा बेटा कहलाने योग्य नहीं रहा हूँ। मुझे अपना एक मज़दूर समझकर रख ले।’ 20 सो वह उठकर अपने पिता के पास चल दिया।

छोटे पुत्र का लौटना

“अभी वह पर्याप्त दूरी पर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और उसके पिता को उस पर बहुत दया आयी। सो दौड़ कर उसने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और चूमा। 21 पुत्र ने पिता से कहा, ‘पिताजी, मैंने तुम्हारी दृष्टि में और स्वर्ग के विरुद्ध पाप किया है, मैं अब और अधिक तुम्हारा पुत्र कहलाने योग्य नहीं हूँ।’

22 “किन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, ‘जल्दी से उत्तम वस्त्र निकाल लाओ और उन्हें इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पैरों में चप्पल पहनाओ। 23 कोई मोटा ताजा बछड़ा लाकर मारो और आओ उसे खाकर हम आनन्द मनायें। 24 क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था अब जैसे फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, पर अब यह मिल गया है।’ सो वे आनन्द मनाने लगे।

बड़े बेटे की शिकायत

25 “अब उसका बड़ा बेटा जो खेत में था, जब आया और घर के पास पहुँचा तो उसने गाने नाचने के स्वर सुने। 26 उसने अपने एक सेवक को बुलाकर पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है?’ 27 सेवक ने उससे कहा, ‘तेरा भाई आ गया है और तेरे पिता ने उसे सुरक्षित और स्वस्थ पाकर एक मोटा सा बछड़ा कटवाया है!’

28 “बड़ा भाई आग बबूला हो उठा, वह भीतर जाना तक नहीं चाहता था। सो उसके पिता ने बाहर आकर उसे समझाया बुझाया। 29 पर उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख मैं बरसों से तेरी सेवा करता आ रहा हूँ। मैंने तेरी किसी भी आज्ञा का विरोध नहीं किया, पर तूने मुझे तो कभी एक बकरी तक नहीं दी कि मैं अपने मित्रों के साथ कोई आनन्द मना सकता। 30 पर जब तेरा यह बेटा आया जिसने वेश्याओं में तेरा धन उड़ा दिया, उसके लिये तूने मोटा ताजा बछड़ा मरवाया।’

31 “पिता ने उससे कहा, ‘मेरे पुत्र, तू सदा ही मेरे पास है और जो कुछ मेरे पास है, सब तेरा है। 32 किन्तु हमें प्रसन्न होना चाहिए और उत्सव मनाना चाहिये क्योंकि तेरा यह भाई, जो मर गया था, अब फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, जो फिर अब मिल गया है।’”

सच्चा धन

16 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “एक धनी पुरुष था। उसका एक प्रबन्धक था उस प्रबन्धक पर लांछन लगाया गया कि वह उसकी सम्पत्ति को नष्ट कर रहा है। सो उसने उसे बुलाया और कहा, ‘तेरे विषय में मैं यह क्या सुन रहा हूँ? अपने प्रबन्ध का लेखा जोखा दे क्योंकि अब आगे तू प्रबन्धक नहीं रह सकता।’

“इस पर प्रबन्धक ने मन ही मन कहा, ‘मेरा स्वामी मुझसे मेरा प्रबन्धक का काम छीन रहा है, सो अब मैं क्या करूँ? मुझमें अब इतनी शक्ति भी नहीं रही कि मैं खेतों में खुदाई-गुड़ाई का काम तक कर सकूँ और माँगने में मुझे लाज आती है। ठीक, मुझे समझ आ गया कि मुझे क्या करना चाहिये, जिससे जब मैं प्रबन्धक के पद से हटा दिया जाऊँ तो लोग अपने घरों में मेरा स्वागत सत्कार करें।’

“सो उसने स्वामी के हर देनदार को बुलाया। पहले व्यक्ति से उसने पूछा, ‘तुझे मेरे स्वामी का कितना देना है?’ उसने कहा, ‘एक सौ माप जैतून का तेल।’ इस पर वह उससे बोला, ‘यह ले अपनी बही और बैठ कर जल्दी से इसे पचास कर दे।’

“फिर उसने दूसरे से कहा, ‘और तुझ पर कितनी देनदारी है?’ उसने बताया, ‘एक सौ भार गेहूँ।’ वह उससे बोला, ‘यह ले अपनी बही और सौ का अस्सी कर दे।’

“इस पर उसके स्वामी ने उस बेईमान प्रबन्धक की प्रशंसा की क्योंकि उसने चतुराई से काम लिया था। सांसारिक व्यक्ति अपने जैसे व्यक्तियों से व्यवहार करने में आध्यात्मिक व्यक्तियों से अधिक चतुर है।

“मैं तुमसे कहता हूँ सांसारिक धन-सम्पत्ति से अपने लिये ‘मित्र’ बनाओ। क्योंकि जब धन-सम्पत्ति समाप्त हो जायेगी, वे अनन्त निवास में तुम्हारा स्वागत करेंगे। 10 वे लोग जिन पर थोड़े से के लिये विश्वास किया जायेगा और इसी तरह जो थोड़े से के लिए बेईमान हो सकता है वह अधिक के लिए भी बेईमान होगा। 11 इस प्रकार यदि तुम सांसारिक सम्पत्ति के लिये ही भरोसे योग्य नहीं रहे तो सच्चे धन के विषय में तुम पर कौन भरोसा करेगा? 12 जो किसी दूसरे का है, यदि तुम उसके लिये विश्वास के पात्र नहीं रहे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा?

13 “कोई भी दास दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से घृणा करेगा और दूसरे से प्रेम या वह एक के प्रति समर्पित रहेगा और दूसरे को तिरस्कार करेगा। तुम धन और परमेश्वर दोनों की उपासना एक साथ नहीं कर सकते।”

प्रभु की विधि अटल है

(मत्ती 11:12-13)

14 अब जब पैसे के पुजारी फरीसियों ने यह सब सुना तो उन्होंने यीशु की बहुत खिल्ली उड़ाई। 15 इस पर उसने उनसे कहा, “तुम वो हो जो लोगों को यह जताना चाहते हो कि तुम बहुत अच्छे हो किन्तु परमेश्वर तुम्हारे मनों को जानता है। लोग जिसे बहुत मूल्यवान समझते हैं, परमेश्वर के लिए वह तुच्छ है।

16 “यूहन्ना तक व्यवस्था की विधि और नबियों की प्रमुखता रही। उसके बाद परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचारित किया जा रहा है और हर कोई बड़ी तीव्रता से इसकी ओर खिंचा चला आ रहा है। 17 फिर भी स्वर्ग और धरती का डिग जाना तो सरल है किन्तु व्यवस्था के विधि के एक-एक बिंदु की शक्ति सदा अटल है।

तलाक और पुर्नविवाह

18 “वह हर कोई जो अपनी पत्नी को त्यागता है और दूसरी को ब्याहता है, व्यभिचार करता है। ऐसे ही जो अपने पति द्वारा त्यागी गयी, किसी स्त्री से ब्याह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।”

धनी पुरुष और लाज़र

19 “अब देखो, एक व्यक्ति था जो बहुत धनी था। वह बैंगनी रंग के उत्तम मलमल के वस्त्र पहनता था और हर दिन विलासिता के जीवन का आनन्द लेता था। 20 वहीं लाजर नाम का एक दीन दुखी उसके द्वार पर पड़ा रहता था। उसका शरीर घावों से भरा हुआ था। 21 उस धनी पुरुष की जूठन से ही वह अपना पेट भरने को तरसता रहता था। यहाँ तक कि कुत्ते भी आते और उसके घावों को चाट जाते।

22 “और फिर ऐसा हुआ कि वह दीन-हीन व्यक्ति मर गया। सो स्वर्गदूतों ने ले जाकर उसे इब्राहीम की गोद में बैठा दिया। फिर वह धनी पुरुष भी मर गया और उसे दफ़ना दिया गया। 23 नरक में तड़पते हुए उसने जब आँखें उठा कर देखा तो इब्राहीम उसे बहुत दूर दिखाई दिया किन्तु उसने लाज़र को उसकी गोद में देखा। 24 तब उसने पुकार कर कहा, ‘पिता इब्राहीम, मुझ पर दया कर और लाजर को भेज कि वह पानी में अपनी उँगली डुबो कर मेरी जीभ ठंडी कर दे, क्योंकि मैं इस आग में तड़प रहा हूँ।’

25 “किन्तु इब्राहीम ने कहा, ‘हे मेरे पुत्र, याद रख, तूने तेरे जीवन काल में अपनी अच्छी वस्तुएँ पा लीं जबकि लाज़र को बुरी वस्तुएँ ही मिलीं। सो अब वह यहाँ आनन्द भोग रहा है और तू यातना। 26 और इस सब कुछ के अतिरिक्त हमारे और तुम्हारे बीच एक बड़ी खाई डाल दी गयी है ताकि यहाँ से यदि कोई तेरे पास जाना चाहे, वह जा न सके और वहाँ से कोई यहाँ आ न सके।’

27 “उस सेठ ने कहा, ‘तो फिर हे पिता, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू लाज़र को मेरे पिता के घर भेज दे 28 क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं, वह उन्हें चेतावनी देगा ताकि उन्हें तो इस यातना के स्थान पर न आना पडे।’

29 “किन्तु इब्राहीम ने कहा, ‘उनके पास मूसा है और नबी हैं। उन्हें उनकी सुनने दे।’

30 “सेठ ने कहा, ‘नहीं, पिता इब्राहीम, यदि कोई मरे हुओं में से उनके पास जाये तो वे मन फिराएंगे।’

31 “इब्राहीम ने उससे कहा, ‘यदि वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते तो, यदि कोई मरे हुओं में से उठकर उनके पास जाये तो भी वे नहीं मानेंगे।’”

पाप और क्षमा

(मत्ती 18:6-7, 21-22; मरकुस 9:42)

17 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जिनसे लोग भटकते हैं, ऐसी बातें तो होंगी ही किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति को जिसके द्वारा वे बातें हों। उसके लिये अधिक अच्छा यह होता कि बजाय इसके कि वह इन छोटों में से किसी को पाप करने को प्रेरित कर सके, उसके गले में चक्की का पाट लटका कर उसे सागर में धकेल दिया जाता। सावधान रहो!

“यदि तुम्हारा भाई पाप करे तो उसे डाँटो और यदि वह अपने किये पर पछताये तो उसे क्षमा कर दो। यदि हर दिन वह तेरे विरुद्ध सात बार पाप करे और सातों बार लौटकर तुझसे कहे कि मुझे पछतावा है तो तू उसे क्षमा कर दे।”

तुम्हारा विश्वास कितना बड़ा है?

इस पर शिष्यों ने प्रभु से कहा, “हमारे विश्वास की बढ़ोतरी करा।”

प्रभु ने कहा, “यदि तुममें सरसों के दाने जितना भी विश्वास होता तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कह सकते ‘उखड़ जा और समुद्र में जा लग।’ और वह तुम्हारी बात मान लेता।

उत्तम सेवक बनो

“मान लो तुममें से किसी के पास एक दास है जो हल चलाता या भेड़ों को चराता है। वह जब खेत से लौट कर आये तो क्या उसका स्वामी उससे कहेगा, ‘तुरन्त आ और खाना खाने को बैठ जा?’ किन्तु बजाय इसके क्या वह उससे यह नहीं कहेगा, ‘मेरा भोजन तैयार कर, अपने वस्त्र पहन और जब तक मैं खा-पी न लूँ, मेरी सेवा कर; तब इसके बाद तू भी खा पी सकता है?’ अपनी आज्ञा पूरी करने पर क्या वह उस सेवक का धन्यवाद करता है। 10 तुम्हारे साथ भी ऐसा ही है। जो कुछ तुमसे करने को कहा गया है, उसे कर चुकने के बाद तुम्हें कहना चाहिये, ‘हम दास हैं, हम किसी बड़ाई के अधिकारी नहीं हैं। हमने तो बस अपना कर्तव्य किया है।’”

आभारी रहो

11 फिर जब यीशु यरूशलेम जा रहा था तो वह सामरिया और गलील के बीच की सीमा के पास से निकला। 12 जब वह एक गाँव में जा रहा था तभी उसे दस कोढ़ी मिले। वे कुछ दूरी पर खड़े थे। 13 वे ऊँचे स्वर में पुकार कर बोले, “हे यीशु! हे स्वामी! हम पर दया कर!”

14 फिर जब उसने उन्हें देखा तो वह बोला, “जाओ और अपने आप को याजकों को दिखाओ।”

वे अभी जा ही रहे थे कि वे कोढ़ से मुक्त हो गये। 15 किन्तु उनमें से एक ने जब यह देखा कि वह शुद्ध हो गया है, तो वह वापस लौटा और ऊँचे स्वर में परमेश्वर की स्तुति करने लगा। 16 वह मुँह के बल यीशु के चरणों में गिर पड़ा और उसका आभार व्यक्त किया। (और देखो, वह एक सामरी था।) 17 यीशु ने उससे पूछा, “क्या सभी दस के दस कोढ़ से मुक्त नहीं हो गये? फिर वे नौ कहाँ हैं? 18 क्या इस परदेसी को छोड़ कर उनमें से कोई भी परमेश्वर की स्तुति करने वापस नहीं लौटा।” 19 फिर यीशु ने उससे कहा, “खड़ा हो और चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा किया है।”

परमेश्वर का राज्य तुम्हारे भीतर ही है

(मत्ती 24:23-28, 37-41)

20 एक बार जब फरीसियों ने यीशु से पूछा, “परमेश्वर का राज्य कब आयेगा?”

तो उसने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्वर का राज्य ऐसे प्रत्यक्ष रूप में नहीं आता। 21 लोग यह नहीं कहेंगे, ‘वह यहाँ है’, या ‘वह वहाँ है’, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तो तुम्हारे भीतर ही है।”

22 किन्तु उसने शिष्यों को बताया, “ऐसा समय आयेगा जब तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को भी देखने को तरसोगे किन्तु, उसे देख नहीं पाओगे। 23 और लोग तुमसे कहेंगे, ‘देखो, यहाँ!’ या ‘देखो, वहाँ!’ तुम वहाँ मत जाना या उनका अनुसरण मत करना।

जब यीशु लौटेगा

24 “वैसे ही जैसे बिजली चमक कर एक छोर से दूसरे छोर तक आकाश को चमका देती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन होगा। 25 किन्तु पहले उसे बहुत सी यातनाएँ भोगनी होंगी और इस पीढ़ी द्वारा वह निश्चय ही नकार दिया जायेगा।

26 “वैसे ही जैसे नूह के दिनों में हुआ था, मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। 27 उस दिन तक जब नूह ने नौका में प्रवेश किया, लोग खाते-पीते रहे, ब्याह रचाते और विवाह में दिये जाते रहे। फिर जल प्रलय आया और उसने सबको नष्ट कर दिया।

28 “इसी प्रकार लूत के दिनों में भी ठीक ऐसे ही हुआ था। लोग खाते-पीते, मोल लेते, बेचते खेती करते और घर बनाते रहे। 29 किन्तु उस दिन जब लूत सदोम से बाहर निकला तो आकाश से अग्नि और गंधक बरसने लगे और वे सब नष्ट हो गये। 30 उस दिन भी जब मनुष्य का पुत्र प्रकट होगा, ठीक ऐसा ही होगा।

31 “उस दिन यदि कोई व्यक्ति छत पर हो और उसका सामान घर के भीतर हो तो उसे लेने वह नीचे न उतरे। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति खेत में हो तो वह पीछे न लौटे। 32 लूत की पत्नी को याद करो,

33 “जो कोई अपना जीवन बचाने का प्रयत्न करेगा, वह उसे खो देगा और जो अपना जीवन खोयेगा, वह उसे बचा लेगा। 34 मैं तुम्हें बताता हूँ, उस रात एक चारपाई पर जो दो मनुष्य होंगे, उनमें से एक उठा लिया जायेगा और दूसरा छोड़ दिया जायेगा। 35 दो स्त्रियाँ जो एक साथ चक्की पीसती होंगी, उनमें से एक उठा ली जायेगी और दूसरी छोड़ दी जायेगी।” 36 [a]

37 फिर यीशु के शिष्यों ने उससे पूछा, “हे प्रभु, ऐसा कहाँ होगा?”

उसने उनसे कहा, “जहाँ लाश पड़ी होगी, गिद्ध भी वहीं इकट्ठे होंगे।”

Footnotes

  1. 17:36 कुछ यूनानी प्रतियों में पद 36 जोड़ा गया है: “दो पुरुष जो खेत में होंगे, उनमें से एक को उठा लिया जायेगा और दूसरे को छोड़ दिया जायेगा।”

परमेश्वर की दयालुता के विषय में तीन दृष्टान्त

15 सभी चुँगी लेने वाले और पापी लोग मसीह येशु के प्रवचन सुनने उनके पास आए किन्तु फ़रीसी और शास्त्री बड़बड़ाने लगे, “यह व्यक्ति पापियों से मित्रता रखते हुए उनके साथ संगति करता है.”

इसलिए मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “तुम में से ऐसा कौन होगा, जिसके पास सौ भेड़ें हों और उनमें से एक खो जाए तो वह निन्यानबे को जंगल में छोड़ कर उस खोई हुई को तब तक खोजता न रहेगा, जब तक वह मिल न जाए? और जब वह उसे मिल जाती है, उसे आनन्दपूर्वक कन्धों पर लाद लेता है. घर लौटने पर वह अपने मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठा कर कहता है, ‘मेरे आनन्द में सम्मिलित हो जाओ क्योंकि मुझे मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है!’” “यह बात याद रखो: पश्चाताप करते हुए एक पापी के लिए उन निन्यानबे धर्मियों की तुलना में स्वर्ग में कहीं अधिक आनन्द मनाया जाता है, जिन्हें मन फिराने की ज़रूरत नहीं है.”

खोया हुआ सिक्का

“या कौन ऐसी स्त्री होगी, जिसके पास चांदी के दस सिक्के हों और उनमें से एक खो जाए तो वह घर में रोशनी कर घर को बुहारते हुए उस सिक्के को तब तक खोजती न रहेगी जब तक वह मिल नहीं जाता? सिक्का मिलने पर वह अपनी पड़ोसिनों और सहेलियों से कहती है, ‘मेरे आनन्द में शामिल हो जाओ क्योंकि मेरा खोया हुआ सिक्का मिल गया है.’

10 “मैं तुमसे कहता हूँ कि स्वर्ग में इसी प्रकार परमेश्वर के दूतों के सामने उस पापी के लिए आनन्द मनाया जाता है, जिसने मन फिराया है.”

खोया हुआ पुत्र

11 मसीह येशु ने आगे कहा, “किसी व्यक्ति के दो पुत्र थे. 12 छोटे पुत्र ने पिता से विनती की, ‘पिताजी, सम्पत्ति में से मेरा भाग मुझे दे दीजिए.’ इसलिए पिता ने दोनों पुत्रों में अपनी सम्पत्ति बांट दी.

13 “शीघ्र ही छोटे पुत्र ने अपने भाग में आई सारी सम्पत्ति ली और एक दूर देश की ओर चला गया. वहाँ उसने अपना सारा धन मनमानी जीवनशैली में उड़ा दिया. 14 और अब, जब उसका सब कुछ समाप्त हो गया था, सारे देश में भीषण अकाल पड़ा किन्तु उसके पास अब कुछ भी बाकी न रह गया था. 15 इसलिए वह उसी देश के एक नागरिक के यहाँ चला गया जिसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने भेज दिया. 16 वह सूअरों के चारे से ही अपना पेट भरने के लिए तरस जाता था. कोई भी उसे खाने के लिए कुछ नहीं देता था.

17 “अपनी परिस्थिति के बारे में होश में आने पर वह विचार करने लगा: ‘मेरे पिता के कितने ही सेवकों को अधिक मात्रा में भोजन उपलब्ध है और यहाँ मैं भूखा मर रहा हूँ! 18 मैं लौट कर अपने पिता के पास जाऊँगा और उनसे कहूँगा: पिताजी! मैंने वह, जो स्वर्ग में हैं, उनके विरुद्ध तथा आपके विरुद्ध पाप किया है. 19 इसके बाद मैं इस योग्य नहीं रह गया कि आपका पुत्र कहलाऊँ. अब आप मुझे अपने यहाँ मज़दूर ही रख लीजिए’. 20 इसलिए वह अपने पिता के पास लौट गया.

“वह दूर ही था कि पिता ने उसे देख लिया और वह दया से भर गया. वह दौड़ कर अपने पुत्र के पास गया और उसे गले लगा कर चूमता रहा.

21 “पुत्र ने पिता से कहा, ‘पिताजी! मैंने परमेश्वर के विरुद्ध तथा आपके प्रति पाप किया है, मैं अब इस योग्य नहीं रहा कि मैं आपका पुत्र कहलाऊँ.’

22 “किन्तु पिता ने अपने सेवकों को आज्ञा दी, ‘बिना देर किए सबसे अच्छे वस्त्र ला कर इसे पहनाओ और इसकी उँगली में अंगूठी और पाँवों में जूतियाँ भी पहनाओ; 23 जा कर एक सबसे अच्छे बछड़े से भोजन तैयार करो. चलो, हम सब आनन्द मनाएँ 24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, अब जीवित हो गया है; यह खो गया था किन्तु अब मिल गया है.’ इसलिए वे सभी आनन्द से भर गए.

25 “उस समय बड़ा बेटा अपने खेतों में काम कर रहा था. जब वह लौट कर घर आ रहा था, पास आने पर उसे संगीत और नाचने की आवाज़ सुनाई दी. 26 उसने एक सेवक को बुला कर उससे पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है?’ 27 ‘आपका भाई लौट आया है,’ उस सेवक ने उत्तर दिया, ‘और आपके पिता ने सबसे अच्छा बछड़ा ले कर भोज तैयार करवाया है क्योंकि उनका पुत्र उन्हें सकुशल और सुरक्षित मिल गया है.’

28 “गुस्से में बड़े भाई ने घर के भीतर तक जाना न चाहा. इसलिए उसके पिता ने ही बाहर आ कर उससे विनती की. 29 उसने अपने पिता को उत्तर दिया, ‘देखिए, इन सभी वर्षों में मैं दास जैसे आपकी सेवा करता रहा हूँ और कभी भी आपकी आज्ञा नहीं टाली फिर भी आपने कभी मुझे एक मेमना तक न दिया कि मैं अपने मित्रों के साथ मिल कर आनन्द मना सकूँ. 30 किन्तु जब आपका यह पुत्र, जिसने आपकी सम्पत्ति वेश्याओं पर उड़ा दी, घर लौट आया, तो आपने उसके लिए सबसे अच्छे बछड़े का भोजन बनवाया है!’

31 “‘मेरे पुत्र!’ पिता ने कहा, ‘तुम तो सदा से ही मेरे साथ हो. वह सब, जो मेरा है, तुम्हारा ही है. 32 हमारे लिए आनन्द मनाना और हर्षित होना सही ही है क्योंकि तुम्हारा यह भाई, जो मर गया था, अब जीवित हो गया है; वह, जो खो गया था, अब मिल गया है.’”

बुद्धिमान भण्ड़ारी

16 मसीह येशु ने अपने शिष्यों को यह वृत्तान्त भी सुनाया: “किसी धनी व्यक्ति का एक भण्ड़ारी था, जिसके विषय में उसे यह सूचना दी गई कि वह उसकी सम्पत्ति का दुरुपयोग कर रहा है. इसलिए स्वामी ने उसे बुला कर उससे पूछताछ की: ‘तुम्हारे विषय में मैं यह क्या सुन रहा हूँ? अपने प्रबन्धन का हिसाब दे दो क्योंकि अब तुम भण्ड़ारी के पद पर नहीं रह सकते.’

“भण्ड़ारी मन में विचार करने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? मेरा पद मुझसे छीना जा रहा है. मेरा शरीर इतना बलवान नहीं कि मैं भूमि खोदने का काम करूँ और लज्जा के कारण मैं भीख भी न माँग सकूँगा. अब मेरे सामने क्या रास्ता बचा रह गया है, मैं समझ गया कि मेरे लिए क्या करना सही है कि मुझे पद से हटा दिए जाने के बाद भी लोगों की मित्रता मेरे साथ बनी रहे.’

“उसने अपने स्वामी के हर एक कर्ज़दार को बुलवाया. पहिले कर्ज़दार से उसने प्रश्न किया, ‘तुम पर मेरे स्वामी का कितना कर्ज़ है?’

“‘3,000 लीटर तेल,’ उसने उत्तर दिया. भण्ड़ारी ने उससे कहा, ‘लो, यह है तुम्हारा बही खाता. तुरन्त बैठ कर इसमें 1,500 लिख दो.’

“तब उसने दूसरे को बुलाया उससे पूछा, ‘तुम पर कितना कर्ज़ है?’

“‘30 टन गेहूं.’ भण्ड़ारी ने कहा, ‘अपना बही खाता ले कर उसमें 24 लिख दो.’

“स्वामी ने इस ठग भण्ड़ारी की इस चतुराई भरी योजना की सराहना की: सांसारिक लोग ज्योति की सन्तान की तुलना में अपने जैसे लोगों के साथ अपने आचार-व्यवहार में कितने अधिक चतुर हैं!

“मैं तुमसे कहता हूँ कि सांसारिक सम्पत्ति का उपयोग अपने मित्र बनाने के लिए करो कि जब यह सम्पत्ति न रहे तो अनन्त काल के घर में तुम्हारा स्वागत हो.

10 “वह, जो थोड़े में विश्वासयोग्य है, वह उस ज़्यादा में भी विश्वासयोग्य होता है; वह, जो थोड़े में भ्रष्ट है, ज़्यादा में भी भ्रष्ट होगा. 11 इसलिए यदि तुम सांसारिक सम्पत्ति के प्रति विश्वासयोग्य न पाए गए तो तुम्हें सच्चा धन कौन सौंपेगा? 12 यदि तुम किसी अन्य की सम्पत्ति के प्रति विश्वासयोग्य प्रमाणित न हुए तो कौन तुम्हें वह सौंपेगा, जो तुम्हारा ही है?

13 “किसी भी दास के लिए दो स्वामियों की सेवा करना सम्भव नहीं है. वह एक से प्रेम तथा दूसरे से घृणा करेगा या वह एक के प्रति समर्पित रहेगा तथा दूसरे को तुच्छ दृष्टि से देखेगा. तुम परमेश्वर तथा धन दोनों ही की सेवा नहीं कर सकते.”

14 वे फ़रीसी, जिन्हें धन से लगाव था, ये सब सुन कर मसीह येशु का उपहास करने लगे. 15 उन्हें सम्बोधित करते हुए मसीह येशु ने कहा, “तुम स्वयं को अन्यों के सामने धर्मी रूप में प्रस्तुत करते हो किन्तु परमेश्वर तुम्हारे हृदय को जानते हैं. वह, जो मनुष्यों के सामने महान है, परमेश्वर की दृष्टि में घृणित है.

परमेश्वर के राज्य का वर्णनीय प्रसार

16 “व्यवस्था और भविष्यवाणियां बपतिस्मा देने वाले योहन तक प्रभाव में थीं. उसके बाद से परमेश्वर के राज्य का प्रचार किया जा रहा है और हर एक इसमें प्रबलता से प्रवेश करता जा रहा है.

17 “स्वर्ग और पृथ्वी का खत्म हो जाना सरल है बजाय इसके कि व्यवस्था का एक भी बिन्दु व्यर्थ प्रमाणित हो.

18 “वह, जो अपनी पत्नी से तलाक ले कर अन्य स्त्री से विवाह करता है, व्यभिचार करता है; और वह पुरुष, जो इस त्यागी हुई स्त्री से विवाह करता है, व्यभिचार करता है.”

धनी व्यक्ति तथा लाज़रॉस

19 मसीह येशु ने आगे कहा, “एक धनवान व्यक्ति था, जो हमेशा कीमती तथा अच्छे वस्त्र ही पहनता था. उसकी जीवनशैली विलासिता से भरी थी. 20 उसके द्वार पर लाज़रॉस नामक एक गरीब व्यक्ति को, जिसका सारा शरीर घावों से भरा था, ला कर छोड़ दिया जाता था. 21 वह धनवान व्यक्ति की मेज़ से नीचे गिरे हुए चूर-चार को खाने के लिए तरसता रहता था; ऊपर से कुत्ते आ-आ कर उसके घावों को चाटते रहते थे.

22 “एक तय समय पर उस गरीब व्यक्ति की मृत्यु हुई और स्वर्गदूत उसे अब्राहाम के सामने ले गए. कुछ समय बाद धनी व्यक्ति की भी मृत्यु हुई और उसे भूमि में गाड़ दिया गया.

23 “अधोलोक की ताड़ना में पड़े हुए धनवान व्यक्ति ने दूर से ही अब्राहाम को देखा, जिनके सामने लाज़रॉस बैठा हुआ था. 24 उसने अब्राहाम को पुकारा और उनसे कहा, ‘पिता अब्राहाम, मुझ पर कृपा कीजिए और लाज़रॉस को मेरे पास भेज दीजिए कि वह अपनी उँगली को जल में डुबो कर उससे मेरी जीभ को ठण्डक प्रदान करे क्योंकि मैं यहाँ इस आग की ताड़ना में पड़ा हुआ हूँ.’

25 “किन्तु अब्राहाम ने उसे उत्तर दिया, ‘मेरे पुत्र, यह न भूलो कि अपने शारीरिक जीवन में तुमने अच्छी से अच्छी वस्तुएं प्राप्त कीं जबकि लाज़रॉस ने तुच्छ वस्तुएं किन्तु वह अब यहाँ सुख और संतोष में है; 26 और फिर इन सबके अलावा तुम्हारे और हमारे बीच में एक बड़ा गड्ढा बनाया गया है, जिससे कि यहाँ से वहाँ जाने के इच्छुक वहाँ न जा सकें और न ही वहाँ से कोई यहाँ आ सके.’

27 “इस पर उस धनवान व्यक्ति ने विनती की, ‘तो पिता, मेरी विनती है कि आप उसे मेरे परिजनों के पास भेज दें; 28 वहाँ मेरे पाँच भाई हैं—कि वह उन्हें सावधान कर दे, ऐसा न हो कि वे भी इस ताड़ना के स्थान में आ जाएँ.’

29 “अब्राहाम ने उत्तर दिया, ‘उनके पास मोशेह और भविष्यद्वक्ताओं के लेख हैं. सही होगा कि वे उनका पालन करें.’

30 “‘नहीं पिता अब्राहाम,’ उसने विरोध करते हुए कहा, ‘वे मन तभी फिराएँगे जब कोई मृत व्यक्ति पुनर्जीवित हो कर उनके पास जाएगा.’

31 “अब्राहाम ने इसके उत्तर में कहा, ‘जब वे मोशेह और भविष्यद्वक्ताओं के आदेशों का पालन नहीं करते तो वे किसी दोबारा जीवित हुए व्यक्ति का भी विश्वास न करेंगे.’”

अन्यों को भटकाने पर

17 इसके बाद अपने शिष्यों से मसीह येशु ने कहा, “यह असम्भव है कि ठोकरें न लगें किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो ठोकर का कारण है. इसके बजाय कि वह निर्बलों के लिए ठोकर का कारण बने, उत्तम यह होता कि उसके गले में चक्की का पाट बान्ध कर उसे गहरे समुद्र में फेंक दिया जाता. इसलिए तुम स्वयं के प्रति सावधान रहो.

“यदि तुम्हारा भाई अपराध करे तो उसे डाँटो और यदि वह मन फिराए तो उसे क्षमा कर दो. यदि वह एक दिन में तुम्हारे विरुद्ध सात बार भी अपराध करे और सातों बार तुमसे आ कर कहे, ‘मुझे इसका पछतावा है,’ तो उसे क्षमा कर दो.”

प्रेरितों ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमारे विश्वास को बढ़ा दीजिए.”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के बीज के बराबर भी हो, तो तुम इस शहतूत के पेड़ को यह आज्ञा देते, ‘उखड़ जा और जा कर समुद्र में लग जा!’ तो यह तुम्हारी आज्ञा का पालन करता.

विनम्र सेवा

“क्या तुममें से कोई ऐसा है, जिसके खेत में काम करने या भेड़ों की रखवाली के लिए एक दास हो और जब वह दास खेत से लौटे तो वह दास से कहे, ‘आओ, मेरे साथ भोजन करो’? क्या वह अपने दास को यह आज्ञा न देगा, ‘मेरे लिए भोजन तैयार करो और मुझे भोजन परोसने के लिए तैयार हो जाओ. मैं भोजन के लिए बैठ रहा हूँ. तुम मेरे भोजन समाप्त करने के बाद भोजन कर लेना?’ क्या वह अपने दास का आभार इसलिए मानेगा कि उसने उसे दिए गए आदेशों का पालन किया है? नहीं! 10 यही तुम सबके लिए भी सही है: जब तुम वह सब कर लो, जिसकी तुम्हें आज्ञा दी गई थी, यह कहो: ‘हम अयोग्य सेवक हैं. हमने केवल अपना कर्तव्य पूरा किया है.’”

एक अकेला आभारी कोढ़ रोगी

11 येरूशालेम नगर की ओर बढ़ते हुए मसीह येशु शोमरोन और गलील प्रदेश के बीच से होते हुए जा रहे थे. 12 जब वह गाँव में प्रवेश कर ही रहे थे, उनकी भेंट दस कोढ़ रोगियों से हुई, जो दूर ही खड़े रहे. 13 उन्होंने दूर ही से पुकारते हुए मसीह येशु से कहा, “स्वामी! मसीह येशु! हम पर कृपा कीजिए!” 14 उन्हें देख मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “जा कर पुरोहितों द्वारा स्वयं का निरीक्षण करवाओ.” जब वे जा ही रहे थे, वे शुद्ध हो गए. 15 उनमें से एक, यह अहसास होते ही कि वह शुद्ध हो गया है, मसीह येशु के पास लौट आया और ऊँचे शब्द में परमेश्वर की वंदना करने लगा. 16 मसीह येशु के चरणों पर गिर कर उसने उनके प्रति धन्यवाद प्रकट किया—वह शोमरोनवासी था. 17 मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या सभी दस शुद्ध नहीं हुए? कहाँ हैं वे अन्य नौ? 18 क्या इस परदेशी के अतिरिक्त किसी अन्य ने परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करना सही न समझा?” 19 तब मसीह येशु ने उससे कहा, “उठो और जाओ. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें हर तरह से स्वस्थ किया है.”

परमेश्वर के राज्य के दिन का प्रश्न

20 एक अवसर पर, जब फ़रीसियों ने उनसे यह जानना चाहा कि परमेश्वर के राज्य का आगमन कब होगा, तो मसीह येशु ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के राज्य का आगमन दिखनेवाले संकेतों के साथ नहीं होगा 21 और न ही इसके विषय में कोई यह कह सकता है, ‘देखो-देखो! यह है परमेश्वर का राज्य!’ क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे ही बीच में है.”

22 तब अपने शिष्यों से उन्मुख हो मसीह येशु ने कहा, “वह समय आ रहा है जब तुम मनुष्य के पुत्र के राज्य का एक दिन देखने के लिए तरस जाओगे और देख न पाओगे. 23 लोग आ कर तुम्हें सूचना देंगे, ‘देखो, वह वहाँ है!’ या, ‘देखो, वह यहाँ है!’ यह सुन कर तुम चले न जाना और न ही उनके पीछे भागना 24 क्योंकि मनुष्य के पुत्र का दोबारा आना बिजली कौन्धने के समान होगा—आकाश में एक छोर से दूसरे छोर तक; 25 किन्तु उसके पूर्व उसका अनेक यातनाएँ सहना और इस पीढ़ी द्वारा तिरस्कार किया जाना अवश्य है. 26 ठीक जिस प्रकार नोहा के युग में हुआ था, मनुष्य के पुत्र के समय में भी होगा, 27 तब भी लोगों में उस समय तक खाना-पीना, विवाह उत्सव होते रहे जब तक नूह ने जलयान में प्रवेश न किया, तब पानी की बाढ़ आई और सब कुछ नाश हो गया. 28 ठीक यही स्थिति थी लोत के समय में—लोग उत्सव, लेन देन, खेती और निर्माण का काम करते रहे 29 किन्तु जैसे ही लोत ने सोदोम नगर से प्रस्थान किया, आकाश से आग और गंधक की बारिश हुई और सब कुछ नाश हो गया. 30 यही सब होगा उस दिन, जब मनुष्य का पुत्र प्रकट होगा.

31 “उस समय सही यह होगा कि वह, जो छत पर हो और उसकी वस्तुएं घर में हों, वह उन्हें लेने नीचे न उतरे. इसी प्रकार वह, जो खेत में काम कर रहा है, वह भी लौट कर न आए. 32 याद है लोत की पत्नी! 33 वह, जो अपने प्राणों को बचाना चाहता है, उन्हें खो देता है और वह, जो अपने जीवन से मोह नहीं रखता, उसे बचा पाता है. 34 उस रात एक बिछौने पर सोए हुए दो व्यक्तियों में से एक उठा लिया जाएगा, दूसरा छोड़ दिया जाएगा. 35 दो स्त्रियाँ एक साथ अनाज पीस रही होंगी, एक उठा ली जाएगी, दूसरी छोड़ दी जाएगी. 36 खेत में दो व्यक्ति काम कर रहे होंगे एक उठा लिया जाएगा, दूसरा छोड़ दिया जाएगा.”

37 उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “कब प्रभु?”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “गिद्ध वहीं इकट्ठा होंगे, जहाँ शव होता है.”