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जकरयाह और इलीशिबा के पास मरियम का जाना

39 उन्हीं दिनों मरियम तैयार होकर तुरन्त यहूदिया के पहाड़ी प्रदेश में स्थित एक नगर को चल दी। 40 फिर वह जकरयाह के घर पहुँची और उसने इलीशिबा को अभिवादन किया। 41 हुआ यह कि जब इलीशिबा ने मरियम का अभिवादन सुना तो जो बच्चा उसके पेट में था, उछल पड़ा और इलीशिबा पवित्र आत्मा से अभिभूत हो उठी।

42 ऊँची आवाज में पुकारते हुए वह बोली, “तू सभी स्त्रियों में सबसे अधिक भाग्यशाली है और जिस बच्चे को तू जन्म देगी, वह धन्य है। 43 किन्तु यह इतनी बड़ी बात मेरे साथ क्यों घटी कि मेरे प्रभु की माँ मेरे पास आयी! 44 क्योंकि तेरे अभिवादन का शब्द जैसे ही मेरे कानों में पहुँचा, मेरे पेट में बच्चा खुशी से उछल पड़ा। 45 तू धन्य है, जिसने यह विश्वास किया कि प्रभु ने जो कुछ कहा है वह हो कर रहेगा।”

मरियम द्वारा परमेश्वर की स्तुति

46 तब मरियम ने कहा,

47 “मेरी आत्मा प्रभु की स्तुति करती है;
    मेरी आत्मा मेरे रखवाले परमेश्वर में आनन्दित है।
48 उसने अपनी दीन दासी की सुधि ली,
हाँ आज के बाद
    सभी मुझे धन्य कहेंगे।
49 क्योंकि उस शक्तिशाली ने मेरे लिये महान कार्य किये।
    उसका नाम पवित्र है।
50 जो उससे डरते हैं वह उन पर पीढ़ी दर पीढ़ी दया करता है।
51 उसने अपने हाथों की शक्ति दिखाई।
    उसने अहंकारी लोगों को उनके अभिमानपूर्ण विचारों के साथ तितर-बितर कर दिया।
52 उसने सम्राटों को उनके सिंहासनों से नीचे उतार दिया।
    और उसने विनम्र लोगों को ऊँचा उठाया।
53 उसने भूखे लोगों को अच्छी वस्तुओं से भरपूर कर दिया,
    और धनी लोगों को खाली हाथों लौटा दिया।
54 वह अपने दास इस्राएल की सहायता करने आया
    हमारे पुरखों को दिये वचन के अनुसार
55 उसे इब्राहीम और उसके वंशजों पर सदा सदा दया दिखाने की याद रही।”

56 मरियम लगभग तीन महीने तक इलीशिबा के साथ ठहरी और फिर अपने घर लौट आयी।

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