Add parallel Print Page Options

“जैसे परम पिता ने मुझे प्रेम किया है, मैंने भी तुम्हें वैसे ही प्रेम किया है। मेरे प्रेम में बने रहो। 10 यदि तुम मेरे आदेशों का पालन करोगे तो तुम मेरे प्रेम में बने रहोगे। वैसे ही जैसे मैं अपने परम पिता के आदेशों को पालते हुए उसके प्रेम में बना रहता हूँ। 11 मैंने ये बातें तुमसे इसलिये कहीं हैं कि मेरा आनन्द तुम में रहे और तुम्हारा आनन्द परिपूर्ण हो जाये। यह मेरा आदेश है 12 कि तुम आपस में प्रेम करो, वैसे ही जैसे मैंने तुम से प्रेम किया है। 13 बड़े से बड़ा प्रेम जिसे कोई व्यक्ति कर सकता है, वह है अपने मित्रों के लिए प्राण न्योछावर कर देना। 14 जो आदेश तुम्हें मैं देता हूँ, यदि तुम उन पर चलते रहो तो तुम मेरे मित्र हो। 15 अब से मैं तुम्हें दास नहीं कहूँगा क्योंकि कोई दास नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या कर रहा है बल्कि मैं तुम्हें मित्र कहता हूँ। क्योंकि मैंने तुम्हें वह हर बात बता दी है, जो मैंने अपने परम पिता से सुनी है।

16 “तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें चुना है और नियत किया है कि तुम जाओ और सफल बनो। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी सफलता बनी रहे ताकि मेरे नाम में जो कुछ तुम चाहो, परम पिता तुम्हें दे। 17 मैं तुम्हें यह आदेश दे रहा हूँ कि तुम एक दूसरे से प्रेम करो।

Read full chapter