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32 मसीह येशु के पास पहुँच मरियम उनके चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी, “प्रभु, यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु न होती.”

33 मसीह येशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते हुए देखा तो उनका हृदय व्याकुल हो उठा. उन्होंने उदास शब्द में पूछा, 34 “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उनसे कहा.

“आइए, प्रभु, देख लीजिए.”

35 मसीह येशु के आँसू बहने लगे.

36 यह देख यहूदी कहने लगे, “देखो वह इन्हें कितना प्रिय था!”

37 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “क्या यह, जिन्होंने अंधे को आँखों की रोशनी दी, इस व्यक्ति को मृत्यु से बचा न सकते थे?”

मृत लाज़रॉस का उज्जीवन

38 दोबारा बहुत उदास हो मसीह येशु क़ब्र पर आए, जो वस्तुत: एक कन्दरा थी, जिसके प्रवेश द्वार पर एक पत्थर रखा हुआ था. 39 मसीह येशु ने वह पत्थर हटाने को कहा. मृतक की बहन मार्था ने आपत्ति प्रकट करते हुए उनसे कहा, “प्रभु, उसे मरे हुए चार दिन हो चुके हैं. अब तो उसमें से दुर्गन्ध आ रही होगी.”

40 मसीह येशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि यदि तुम विश्वास करोगी तो परमेश्वर की महिमा को देखोगी?”

41 इसलिए उन्होंने पत्थर हटा दिया. मसीह येशु ने अपनी आँखें ऊपर उठाईं और कहा, “पिता, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरी सुन ली. 42 मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मेरी सुनते हैं किन्तु यहाँ उपस्थित भीड़ के कारण मैंने ऐसा कहा है कि वे सब विश्वास करें कि आप ने ही मुझे भेजा है.” 43 तब उन्होंने ऊँचे शब्द में पुकारा, “लाज़रॉस, बाहर आ जाओ!” 44 वह, जो चार दिन से मरा हुआ था, बाहर आ गया. उसका सारा शरीर पट्टियों में और उसका मुख कपड़े में लिपटा हुआ था. मसीह येशु ने उनसे कहा, “इसे खोल दो और जाने दो.”

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