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पवित्र तम्बू का आँगन

“तम्बू के चारों ओर कनातों की एक दीवार बनाओ। यह तम्बू के लिए एक आँगन बनाएगी। दक्षिण की ओर कनातों की यह दीवार पचास गज[a] लम्बी होनी चाहिए। ये कनातें सन के उत्तम रेशों से बनी होनी चाहिए। 10 बीस खम्भों और उनके नीचे बीस काँसे के आधारों का उपयोग करो। खम्भों के छल्ले और पर्दे की छड़ें[b] चाँदी की बननी चाहिए। 11 उत्तर की ओर लम्बाई उतनी ही होनी चाहिए जितनी दक्षिण की ओर थी। इसमें पचास गज़ लम्बी पर्दो की दीवार, बीस खम्भे और बीस काँसे के आधार होने चाहिए। खम्भे और उनके पर्दो की छड़ों के छल्ले चाँदी के बनने चाहिए।”

12 “आँगन के पश्चिमी सिरे पर कनातों की एक दीवार पच्चीस गज लम्बी होनी चाहिए। वहाँ उस दीवार के साथ दस खम्भे और दस आधार होने चाहिए। 13 आँगन का पूर्वी सिरा भी पच्चीस गज लम्बा होना चाहिए। 14 यह पूर्वी सिरा आँगन का प्रवेश द्वार है। 15 प्रवेश द्वार की हर एक ओर की कनातें साढ़े सात गज लम्बी होनी चाहिए। उस ओर तीन खम्भे और तीन आधार होने चाहिए।”

16 “एक कनात दस गज[c] लम्बी आँगन के प्रवेश द्वार को ढ़कने के लिए बनाओ। इस कनात को सन के उत्तम रेशों और नीले, लाल और बैंगनी कपड़े से बनाओ। इन कनातों पर चित्रों को काढ़ो। उस पर्दे के लिए चार खम्भे और चार आधार होने चाहिए। 17 आँगन के चारों ओर के सभी खम्भे चाँदी की छड़ों से ही जोड़े जाने चाहिए।[d] खम्भों के छल्ले चाँदी के बनाने चाहिए और खम्भों के आधार काँसे के होने चाहिए। 18 आँगन पचास गज लम्बा और पच्चीस गज[e] चौड़ा होना चाहिए। आँगन के चारों ओर की दीवार साढ़े सात फुट ऊँची होनी चाहिए। पर्दा सन के उत्तम रेशों का बना होना चाहिए। सभी खम्भों के नीचे के आधार काँसे के होने चाहिए।

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Footnotes

  1. 27:9 पचास गज़ शाब्दिक, “सौ हाथ।”
  2. 27:10 छड़ें ये या तो खम्भों को एक साथ जोड़ने वाली छड़ें थीं या पर्दे में सिले कड़े थे।
  3. 27:16 दस गज शाब्दिक, “बीस हाथ।”
  4. 27:17 आँगन … चाहिए ये सम्भवत: पर्दे की छड़ें हैं जिनका वर्णन संख्या दस में हुआ है।
  5. 27:18 पच्चीस गज शाब्दिक, “पचास हाथ।”