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क्या हमने दोबारा अपनी बड़ाई करनी शुरु कर दी? या कुछ अन्य व्यक्तियों के समान हमें भी तुमसे या तुम्हारे लिए सिफारिश के पत्रों की ज़रूरत है? हमारे पत्र तो तुम स्वयं हो—हमारे हृदयों पर लिखे हुए—जो सबके द्वारा पहचाने तथा पढ़े जा सकते हो. यह साफ़ ही है कि मसीह का पत्र तुम हो—हमारी सेवकाई का परिणाम—जिसे स्याही से नहीं परन्तु जीवित परमेश्वर की आत्मा से पत्थर की पटिया पर नहीं परन्तु मनुष्य के हृदय की पटिया पर लिखा गया है. हमें मसीह के द्वारा परमेश्वर में ऐसा ही विश्वास है. स्थिति यह नहीं कि हम यह दावा करें कि हम अपने आप में कुछ कर सकने के योग्य हैं—परमेश्वर हमारी योग्यता का स्त्रोत हैं, जिन्होंने हमें नई वाचा का काम करने योग्य सेवक बनाया. यह वाचा लिखी हुई व्यवस्था की नहीं परन्तु आत्मा की है. लिखी हुई व्यवस्था मृत्यु को जन्म देती है मगर आत्मा जीवन देती है.

नई वाचा का वैभव

यदि पत्थर की पटिया पर खोदे गए अक्षरों में अंकित मृत्यु की वाचा इतनी तेजोमय थी कि इस्राएल के वंशज मोशेह के मुख पर अपनी दृष्टि स्थिर रख पाने में असमर्थ थे—यद्यपि यह तेज धीरे-धीरे कम होता जा रहा था. तो फिर आत्मा की वाचा और कितनी अधिक तेजोमय न होगी? यदि दण्ड-आज्ञा की वाचा का प्रताप ऐसा है तो धार्मिकता की वाचा का प्रताप और कितना अधिक बढ़कर न होगा? 10 सच तो यह है कि इस वर्तमान प्रताप के सामने वह पहले का प्रताप, प्रताप रह ही नहीं गया. 11 यदि उसका तेज ऐसा था, जो लगातार कम हो रहा था, तो उसका तेज, जो हमेशा स्थिर है, और कितना अधिक बढ़कर न होगा!

12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है. 13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिए ढ़का रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे-धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएँ. 14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मन्द हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है. 15 हाँ, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रन्थ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है. 16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है. 17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहाँ स्वतंत्रता है 18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, उनके स्वरूप में धीरे-धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है.