Add parallel Print Page Options

27 यदि किसी अविश्वासी के आमन्त्रण पर उसके यहाँ भोजन के लिए जाना ज़रूरी हो जाए तो अपनी अन्तरात्मा की भलाई के लिए, बिना कोई भी प्रश्न किए वह खा लो, जो तुम्हें परोसा जाए.

Read full chapter