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किन्तु यदि किसी विधवा के पुत्र-पुत्री अथवा नाती-पोते हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने धर्म पर चलते हुए अपने परिवार की देखभाल करना सीखना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिताओं के पालन-पोषण का बदला चुकायें क्योंकि इससे परमेश्वर प्रसन्न होता है।

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16 यदि किसी विश्वासी महिला के घर में विधवाएँ हैं तो उसे उनकी सहायता स्वयं करनी चाहिए और कलीसिया पर कोई भार नहीं डालना चाहिए ताकि कलीसिया सच्ची विधवाओं की सहायता कर सके।[a]

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Footnotes

  1. 5:16 महिला … उनकी कुछ यूनानी प्रतियों में है “महिला या पुरुष …”।