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प्रभु का वह दिन

प्रियजन, इसकी कोई ज़रूरत नहीं कि तुम्हें समयों और कालों के विषय में लिखा जाए. तुम्हें यह भली प्रकार मालूम है कि प्रभु के दिन का आगमन ठीक वैसा ही अचानक होगा जैसा रात में एक चोर का. लोग कह रहे होंगे, “सब कुशल है, कोई संकट है ही नहीं!” उसी समय बिना किसी पहले से जानकारी के उन पर विनाश टूट पड़ेगा—गर्भवती की प्रसव-पीड़ा के समान. उनका भाग निकलना असम्भव होगा.

किन्तु तुम, प्रियजन, इस विषय में अन्धकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर एकाएक एक चोर के समान अचानक से आ पड़े. तुम सभी ज्योति की सन्तान हो—दिन के वंशज. हम न तो रात के हैं और न अन्धकार के, इसलिए हम बाकियों के समान सोए हुए नहीं परन्तु सावधान और व्यवस्थित रहें क्योंकि वे, जो सोते हैं, रात में सोते हैं और वे, जो मतवाले होते हैं, रात में ही मतवाले होते हैं. अब इसलिए कि हम दिन के बने हुए हैं, हम विश्वास और प्रेम का कवच तथा उद्धार की आशा का टोप धारण कर व्यवस्थित हो जाएँ. परमेश्वर द्वारा हम क्रोध के लिए नहीं परन्तु हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा उद्धार पाने के लिए ठहराए गए हैं, 10 जिन्होंने हमारे लिए प्राण त्याग दिया कि चाहे हम जागते हों या सोते हों, उनके साथ निवास करें. 11 इसलिए तुम, जैसा इस समय कर ही रहे हो, एक-दूसरे को आपस में प्रोत्साहित तथा उन्नत करने में लगे रहो.

मसीही स्वभाव

12 प्रियजन, तुमसे हमारी विनती है कि तुम उनकी सराहना करो, जो तुम्हारे बीच लगन से परिश्रम कर रहे हैं, जो प्रभु में तुम्हारे लिए ज़िम्मेदार हैं तथा तुम्हें शिक्षा देते हैं. 13 उनके परिश्रम को ध्यान में रखते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक ऊँचा सम्मान दो. आपस में मेल-मिलाप बनाए रखो. 14 प्रियजन, हम तुमसे विनती करते हैं कि जो बिगड़े हुए हैं, उन्हें फटकार लगाओ; जो डरे हुए हैं, उन्हें ढ़ांढ़स दो, दुर्बलों की सहायता करो तथा सभी के साथ धीरजवान बने रहो. 15 यह ध्यान रखो कि कोई भी बुराई का बदला बुराई से न लेने पाए किन्तु हमेशा वही करने का प्रयास करो, जिसमें पारस्परिक और सभी का भला हो.

16 हमेशा आनन्दित रहो, 17 प्रार्थना लगातार की जाए. 18 हर एक परिस्थिति में धन्यवाद प्रकट किया जाए क्योंकि मसीह येशु में तुमसे परमेश्वर की यही आशा है.

19 पवित्रात्मा को न बुझाओ. 20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न समझो 21 परन्तु हर एक को सावधानीपूर्वक बारीकी से जाँचो तथा उसे, जो अच्छा है, थामे रहो. 22 बुराई का उसके हर एक रूप में बहिष्कार करो.

समापन प्रार्थना और आशीर्वचन

23 अन्ततः: परमेश्वर, जो शांति के स्त्रोत हैं, तुम्हें पूरी तरह अपने लिए बुराई से अलग करने तथा तुम्हारी आत्मा, प्राण तथा शरीर को पूरी तरह से हमारे प्रभु मसीह येशु के दोबारा आगमन के अवसर तक निर्दोष रूप में सुरक्षित रखें. 24 सच्चे हैं वह, जिन्होंने तुम्हें बुलाया है. वही इसको पूरा भी करेंगे.

25 प्रियजन, हमारे लिए प्रार्थना करते रहना. 26 पवित्र चुम्बन से एक दूसरे को नमस्कार करो. 27 प्रभु में हमारी यह आज्ञा है कि यह पत्र सबके सामने पढ़ा जाए.

28 तुम पर हमारे प्रभु मसीह येशु की कृपा बनी रहे.

प्रभु का वह दिन

प्रियजन, इसकी कोई ज़रूरत नहीं कि तुम्हें समयों और कालों के विषय में लिखा जाए. तुम्हें यह भली प्रकार मालूम है कि प्रभु के दिन का आगमन ठीक वैसा ही अचानक होगा जैसा रात में एक चोर का. लोग कह रहे होंगे, “सब कुशल है, कोई संकट है ही नहीं!” उसी समय बिना किसी पहले से जानकारी के उन पर विनाश टूट पड़ेगा—गर्भवती की प्रसव-पीड़ा के समान. उनका भाग निकलना असम्भव होगा.

किन्तु तुम, प्रियजन, इस विषय में अन्धकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर एकाएक एक चोर के समान अचानक से आ पड़े. तुम सभी ज्योति की सन्तान हो—दिन के वंशज. हम न तो रात के हैं और न अन्धकार के, इसलिए हम बाकियों के समान सोए हुए नहीं परन्तु सावधान और व्यवस्थित रहें क्योंकि वे, जो सोते हैं, रात में सोते हैं और वे, जो मतवाले होते हैं, रात में ही मतवाले होते हैं. अब इसलिए कि हम दिन के बने हुए हैं, हम विश्वास और प्रेम का कवच तथा उद्धार की आशा का टोप धारण कर व्यवस्थित हो जाएँ. परमेश्वर द्वारा हम क्रोध के लिए नहीं परन्तु हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा उद्धार पाने के लिए ठहराए गए हैं, 10 जिन्होंने हमारे लिए प्राण त्याग दिया कि चाहे हम जागते हों या सोते हों, उनके साथ निवास करें. 11 इसलिए तुम, जैसा इस समय कर ही रहे हो, एक-दूसरे को आपस में प्रोत्साहित तथा उन्नत करने में लगे रहो.

मसीही स्वभाव

12 प्रियजन, तुमसे हमारी विनती है कि तुम उनकी सराहना करो, जो तुम्हारे बीच लगन से परिश्रम कर रहे हैं, जो प्रभु में तुम्हारे लिए ज़िम्मेदार हैं तथा तुम्हें शिक्षा देते हैं. 13 उनके परिश्रम को ध्यान में रखते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक ऊँचा सम्मान दो. आपस में मेल-मिलाप बनाए रखो. 14 प्रियजन, हम तुमसे विनती करते हैं कि जो बिगड़े हुए हैं, उन्हें फटकार लगाओ; जो डरे हुए हैं, उन्हें ढ़ांढ़स दो, दुर्बलों की सहायता करो तथा सभी के साथ धीरजवान बने रहो. 15 यह ध्यान रखो कि कोई भी बुराई का बदला बुराई से न लेने पाए किन्तु हमेशा वही करने का प्रयास करो, जिसमें पारस्परिक और सभी का भला हो.

16 हमेशा आनन्दित रहो, 17 प्रार्थना लगातार की जाए. 18 हर एक परिस्थिति में धन्यवाद प्रकट किया जाए क्योंकि मसीह येशु में तुमसे परमेश्वर की यही आशा है.

19 पवित्रात्मा को न बुझाओ. 20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न समझो 21 परन्तु हर एक को सावधानीपूर्वक बारीकी से जाँचो तथा उसे, जो अच्छा है, थामे रहो. 22 बुराई का उसके हर एक रूप में बहिष्कार करो.

समापन प्रार्थना और आशीर्वचन

23 अन्ततः: परमेश्वर, जो शांति के स्त्रोत हैं, तुम्हें पूरी तरह अपने लिए बुराई से अलग करने तथा तुम्हारी आत्मा, प्राण तथा शरीर को पूरी तरह से हमारे प्रभु मसीह येशु के दोबारा आगमन के अवसर तक निर्दोष रूप में सुरक्षित रखें. 24 सच्चे हैं वह, जिन्होंने तुम्हें बुलाया है. वही इसको पूरा भी करेंगे.

25 प्रियजन, हमारे लिए प्रार्थना करते रहना. 26 पवित्र चुम्बन से एक दूसरे को नमस्कार करो. 27 प्रभु में हमारी यह आज्ञा है कि यह पत्र सबके सामने पढ़ा जाए.

28 तुम पर हमारे प्रभु मसीह येशु की कृपा बनी रहे.

प्रभु का वह दिन

प्रियजन, इसकी कोई ज़रूरत नहीं कि तुम्हें समयों और कालों के विषय में लिखा जाए. तुम्हें यह भली प्रकार मालूम है कि प्रभु के दिन का आगमन ठीक वैसा ही अचानक होगा जैसा रात में एक चोर का. लोग कह रहे होंगे, “सब कुशल है, कोई संकट है ही नहीं!” उसी समय बिना किसी पहले से जानकारी के उन पर विनाश टूट पड़ेगा—गर्भवती की प्रसव-पीड़ा के समान. उनका भाग निकलना असम्भव होगा.

किन्तु तुम, प्रियजन, इस विषय में अन्धकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर एकाएक एक चोर के समान अचानक से आ पड़े. तुम सभी ज्योति की सन्तान हो—दिन के वंशज. हम न तो रात के हैं और न अन्धकार के, इसलिए हम बाकियों के समान सोए हुए नहीं परन्तु सावधान और व्यवस्थित रहें क्योंकि वे, जो सोते हैं, रात में सोते हैं और वे, जो मतवाले होते हैं, रात में ही मतवाले होते हैं. अब इसलिए कि हम दिन के बने हुए हैं, हम विश्वास और प्रेम का कवच तथा उद्धार की आशा का टोप धारण कर व्यवस्थित हो जाएँ. परमेश्वर द्वारा हम क्रोध के लिए नहीं परन्तु हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा उद्धार पाने के लिए ठहराए गए हैं, 10 जिन्होंने हमारे लिए प्राण त्याग दिया कि चाहे हम जागते हों या सोते हों, उनके साथ निवास करें. 11 इसलिए तुम, जैसा इस समय कर ही रहे हो, एक-दूसरे को आपस में प्रोत्साहित तथा उन्नत करने में लगे रहो.

मसीही स्वभाव

12 प्रियजन, तुमसे हमारी विनती है कि तुम उनकी सराहना करो, जो तुम्हारे बीच लगन से परिश्रम कर रहे हैं, जो प्रभु में तुम्हारे लिए ज़िम्मेदार हैं तथा तुम्हें शिक्षा देते हैं. 13 उनके परिश्रम को ध्यान में रखते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक ऊँचा सम्मान दो. आपस में मेल-मिलाप बनाए रखो. 14 प्रियजन, हम तुमसे विनती करते हैं कि जो बिगड़े हुए हैं, उन्हें फटकार लगाओ; जो डरे हुए हैं, उन्हें ढ़ांढ़स दो, दुर्बलों की सहायता करो तथा सभी के साथ धीरजवान बने रहो. 15 यह ध्यान रखो कि कोई भी बुराई का बदला बुराई से न लेने पाए किन्तु हमेशा वही करने का प्रयास करो, जिसमें पारस्परिक और सभी का भला हो.

16 हमेशा आनन्दित रहो, 17 प्रार्थना लगातार की जाए. 18 हर एक परिस्थिति में धन्यवाद प्रकट किया जाए क्योंकि मसीह येशु में तुमसे परमेश्वर की यही आशा है.

19 पवित्रात्मा को न बुझाओ. 20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न समझो 21 परन्तु हर एक को सावधानीपूर्वक बारीकी से जाँचो तथा उसे, जो अच्छा है, थामे रहो. 22 बुराई का उसके हर एक रूप में बहिष्कार करो.

समापन प्रार्थना और आशीर्वचन

23 अन्ततः: परमेश्वर, जो शांति के स्त्रोत हैं, तुम्हें पूरी तरह अपने लिए बुराई से अलग करने तथा तुम्हारी आत्मा, प्राण तथा शरीर को पूरी तरह से हमारे प्रभु मसीह येशु के दोबारा आगमन के अवसर तक निर्दोष रूप में सुरक्षित रखें. 24 सच्चे हैं वह, जिन्होंने तुम्हें बुलाया है. वही इसको पूरा भी करेंगे.

25 प्रियजन, हमारे लिए प्रार्थना करते रहना. 26 पवित्र चुम्बन से एक दूसरे को नमस्कार करो. 27 प्रभु में हमारी यह आज्ञा है कि यह पत्र सबके सामने पढ़ा जाए.

28 तुम पर हमारे प्रभु मसीह येशु की कृपा बनी रहे.