1 कुरिन्थियों 1:18-31
Hindi Bible: Easy-to-Read Version
परमेश्वर की शक्ति और ज्ञान-स्वरूप मसीह
18 वे जो भटक रहे हैं, उनके लिए क्रूस का संदेश एक निरी मूर्खता है। किन्तु जो उद्धार पा रहे हैं उनके लिये वह परमेश्वर की शक्ति है। 19 शास्त्रों में लिखा है:
“ज्ञानियों के ज्ञान को मैं नष्ट कर दूँगा;
और सारी चतुर की चतुरता मैं कुंठित करूँगा।”(A)
20 कहाँ है ज्ञानी व्यक्ति? कहाँ है विद्वान? और इस युग का षास्त्रर्थी कहाँ है? क्या परमेश्वर ने सांसारिक बुद्धिमानी को मूर्खता नहीं सिद्ध किया? 21 इसलिए क्योंकि परमेश्वरीय ज्ञान के द्वारा यह संसार अपने बुद्धि बल से परमेश्वर को नहीं पहचान सका तो हम संदेश की तथाकथित मूर्खता का प्रचार करते हैं।
22 यहूदी लोग तो चमत्कारपूर्ण संकेतों की माँग करते हैं और ग़ैर यहूदी विवेक की खोज में हैं। 23 किन्तु हम तो बस क्रूस पर चढ़ाये गये मसीह का ही उपदेश देते हैं। एक ऐसा उपदेश जो यहूदियों के लिये विरोध का कारण है और ग़ैर यहूदियों के लिये निरी मूर्खता। 24 किन्तु उनके लिये जिन्हें बुला लिया गया है, फिर चाहे वे यहूदी हैं या ग़ैर यहूदी, यह उपदेश मसीह है जो परमेश्वर की शक्ति है, और परमेश्वर का विवेक है। 25 क्योंकि परमेश्वर की तथाकथित मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से कहीं अधिक विवेकपूर्ण है। और परमेश्वर की तथाकथित दुर्बलता मनुष्य की शक्ति से कहीं अधिक सक्षम है।
26 हे भाइयो, अब तनिक सोचो कि जब परमेश्वर ने तुम्हें बुलाया था तो तुममें से बहुतेरे न तो सांसारिक दृष्टि से बुद्धिमान थे और न ही शक्तिशाली। तुममें से अनेक का सामाजिक स्तर भी कोई ऊँचा नहीं था। 27 बल्कि परमेश्वर ने तो संसार में जो तथाकथित मूर्खतापूर्ण था, उसे चुना ताकि बुद्धिमान लोग लज्जित हों। परमेश्वर ने संसार में दुर्बलों को चुना ताकि जो शक्तिशाली हैं, वे लज्जित हों।
28 परमेश्वर ने संसार में उन्हीं को चुना जो नीच थे, जिनसे घृणा की जाती थी और जो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर ने इन्हें चुना ताकि संसार जिसे कुछ समझता है, उसे वह नष्ट कर सके। 29 ताकि परमेश्वर के सामने कोई भी व्यक्ति अभिमान न कर पाये। 30 किन्तु तुम यीशू मसीह में उसी के कारण स्थित हो। वही परमेश्वर के वरदान के रूप में हमारी बुद्धि बन गया है। उसी के द्वारा हम निर्दोष ठहराये गये ताकि परमेश्वर को समर्पित हो सकें और हमें पापों से छुटकारे मिल पाये 31 जैसा कि शास्त्र में लिखा है: “यदि किसी को कोई गर्व करना है तो वह प्रभु में अपनी स्थिति का गर्व करे।”(B)
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1 कुरिन्थियों 1:18-31
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परमेश्वर की शक्ति और ज्ञान-स्वरूप मसीह
18 वे जो भटक रहे हैं, उनके लिए क्रूस का संदेश एक निरी मूर्खता है। किन्तु जो उद्धार पा रहे हैं उनके लिये वह परमेश्वर की शक्ति है। 19 शास्त्रों में लिखा है:
“ज्ञानियों के ज्ञान को मैं नष्ट कर दूँगा;
और सारी चतुर की चतुरता मैं कुंठित करूँगा।”(A)
20 कहाँ है ज्ञानी व्यक्ति? कहाँ है विद्वान? और इस युग का षास्त्रर्थी कहाँ है? क्या परमेश्वर ने सांसारिक बुद्धिमानी को मूर्खता नहीं सिद्ध किया? 21 इसलिए क्योंकि परमेश्वरीय ज्ञान के द्वारा यह संसार अपने बुद्धि बल से परमेश्वर को नहीं पहचान सका तो हम संदेश की तथाकथित मूर्खता का प्रचार करते हैं।
22 यहूदी लोग तो चमत्कारपूर्ण संकेतों की माँग करते हैं और ग़ैर यहूदी विवेक की खोज में हैं। 23 किन्तु हम तो बस क्रूस पर चढ़ाये गये मसीह का ही उपदेश देते हैं। एक ऐसा उपदेश जो यहूदियों के लिये विरोध का कारण है और ग़ैर यहूदियों के लिये निरी मूर्खता। 24 किन्तु उनके लिये जिन्हें बुला लिया गया है, फिर चाहे वे यहूदी हैं या ग़ैर यहूदी, यह उपदेश मसीह है जो परमेश्वर की शक्ति है, और परमेश्वर का विवेक है। 25 क्योंकि परमेश्वर की तथाकथित मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से कहीं अधिक विवेकपूर्ण है। और परमेश्वर की तथाकथित दुर्बलता मनुष्य की शक्ति से कहीं अधिक सक्षम है।
26 हे भाइयो, अब तनिक सोचो कि जब परमेश्वर ने तुम्हें बुलाया था तो तुममें से बहुतेरे न तो सांसारिक दृष्टि से बुद्धिमान थे और न ही शक्तिशाली। तुममें से अनेक का सामाजिक स्तर भी कोई ऊँचा नहीं था। 27 बल्कि परमेश्वर ने तो संसार में जो तथाकथित मूर्खतापूर्ण था, उसे चुना ताकि बुद्धिमान लोग लज्जित हों। परमेश्वर ने संसार में दुर्बलों को चुना ताकि जो शक्तिशाली हैं, वे लज्जित हों।
28 परमेश्वर ने संसार में उन्हीं को चुना जो नीच थे, जिनसे घृणा की जाती थी और जो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर ने इन्हें चुना ताकि संसार जिसे कुछ समझता है, उसे वह नष्ट कर सके। 29 ताकि परमेश्वर के सामने कोई भी व्यक्ति अभिमान न कर पाये। 30 किन्तु तुम यीशू मसीह में उसी के कारण स्थित हो। वही परमेश्वर के वरदान के रूप में हमारी बुद्धि बन गया है। उसी के द्वारा हम निर्दोष ठहराये गये ताकि परमेश्वर को समर्पित हो सकें और हमें पापों से छुटकारे मिल पाये 31 जैसा कि शास्त्र में लिखा है: “यदि किसी को कोई गर्व करना है तो वह प्रभु में अपनी स्थिति का गर्व करे।”(B)
Read full chapter© 1995, 2010 Bible League International