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यीशु हमारा सहायक है

मेरे प्यारे पुत्र-पुत्रियों, ये बातें मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करता है तो परमेश्वर के सामने हमारे पापों का बचाव करने वाला एक है और वह है धर्मी यीशु मसीह। वह एक बलिदान है जो हमारे पापों का हरण करता है न केवल हमारे पापों का बल्कि समूचे संसार के पापों का।

यदि हम परमेश्वर के आदेशों का पालन करते हैं तो यही वह मार्ग है जिससे हम निश्चय करते हैं कि हमने सचमुच उसे जान लिया है। यदि कोई कहता है कि, “मैं परमेश्वर को जानता हूँ!” और उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता तो वह झूठा है। उसके मन में सत्य नहीं है। किन्तु यदि कोई परमेश्वर के उपदेश का पालन करता है तो उसमें परमेश्वर के प्रेम ने परिपूर्णता पा ली है। यही वह मार्ग है जिससे हमें निश्चय होता है कि हम परमेश्वर में स्थित हैं: जो यह कहता है कि वह परमेश्वर में स्थित है, उसे यीशु के जैसा जीवन जीना चाहिए।

सबसे प्रेम करो

हे प्यारे मित्रों, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं लिख रहा हूँ बल्कि यह एक सनातन आज्ञा है, जो तुम्हें प्रारम्भ में ही दे दी गयी थी। यह पुरानी आज्ञा वह सुसंदेश है जिसे तुम सुन चुके हो। मैं तुम्हें एक और दूसरी नयी आज्ञा लिख रहा हूँ। इस तथ्य का सत्य मसीह के जीवन में और तुम्हारे जीवनों में उजागर हुआ है क्योंकि अन्धकार विलीन हो रहा है और सच्चा प्रकाश तो चमक ही रहा है।

जो कहता है, वह प्रकाश में स्थित है और फिर भी अपने भाई से घृणा करता है, तो वह अब तक अंधकार में बना हुआ है। 10 जो अपने भाई को प्रेम करता है, प्रकाश में स्थित रहता है। उसके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे कोई पाप में न पड़े। 11 किन्तु जो अपने भाई से घृणा करता है, अँधेरे में है। वह अन्धकारपूर्ण जीवन जी रहा है। वह नहीं जानता, वह कहाँ जा रहा है। क्योंकि अँधेरे ने उसे अंधा बना दिया है।

12 हे प्यारे बच्चों, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ,
    क्योंकि यीशु मसीह के कारण तुम्हारे पाप क्षमा किए गए हैं।
13 हे पिताओं, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ,
    क्योंकि तुम, जो अनादि काल से स्थित है उसे जानते हो।
हे युवको, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ,
    क्योंकि तुमने उस दुष्ट पर विजय पा ली है।
14 हे बच्चों, मैं तुम्हें लिख रहा हूँ,
    क्योंकि तुम पिता को पहचान चुके हो।
हे पिताओ, मैं तुम्हें लिख रहा हूँ,
    क्योंकि तुम जो सृष्टि के अनादि काल से
स्थित है, उसे जान गए हो।
    हे नौजवानों, मैं तुम्हें लिख रहा हूँ, क्योंकि तुम शक्तिशाली हो,
परमेश्वर का वचन तुम्हारे भीतर निवास करता है
    और तुमने उस दुष्ट आत्मा पर विजय पा ली है।

15 संसार को अथवा सांसारिक वस्तुओं को प्रेम मत करते रहो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है तो उसके हृदय में परमेश्वर के प्रति प्रेम नहीं है। 16 क्योंकि इस संसार की हर वस्तु: जो तुम्हारे पापपूर्ण स्वभाव को आकर्षित करती है, तुम्हारी आँखों को भाती है और इस संसार की प्रत्येक वह वस्तु, जिस पर लोग इतना गर्व करते हैं। परम पिता की ओर से नहीं है बल्कि वह तो सांसारिक है। 17 यह संसार अपनी लालसाओं और इच्छाओं समेत विलीन होता जा रहा है किन्तु वह जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करता है, अमर हो जाता है।

मसीह के विरोधियों का अनुसरण मत करो

18 हे प्रिय बच्चों, अन्तिम घड़ी आ पहुँची है! और जैसा कि तुमने सुना है कि मसीह का विरोधी आ रहा है। इसलिए अब अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हो गए हैं। इसी से हम जानते हैं कि अन्तिम घड़ी आ पहुँची है। 19 मसीह के विरोधी हमारे ही भीतर से निकले हैं पर वास्तव में वे हमारे नहीं हैं क्योंकि यदि वे सचमुच हमारे होते तो हमारे साथ ही रहते। किन्तु वे हमें छोड़ गए ताकि वे यह दिखा सकें कि उनमें से कोई भी वास्तव में हमारा नहीं है।

20 किन्तु तुम्हारा तो उस परम पवित्र ने आत्मा के द्वारा अभिषेक कराया है। इसलिए तुम सब सत्य को जानते हो। 21 मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा है कि तुम सत्य को नहीं जानते हो? बल्कि तुम तो उसे जानते हो और इसलिए भी कि सत्य से कोई झूठ नहीं निकलता।

22 किन्तु जो यह कहता है कि यीशु मसीह नहीं है, वह झूठा है। ऐसा व्यक्ति मसीह का शत्रु है। वह तो पिता और पुत्र दोनों को नकारता है। 23 वह जो पुत्र को नकारता है, उसके पास पिता भी नहीं है किन्तु जो पुत्र को मानता है, वह पिता को भी मानता है।

24 जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुमने अनादि काल से जो सुना है, उसे अपने भीतर बनाए रखो। जो तुमने अनादि काल से सुना है, यदि तुममें बना रहता है तो तुम पुत्र और पिता दोनों में स्थित रहोगे। 25 उसने हमें अनन्त जीवन प्रदान करने का वचन दिया है।

26 मैं ये बातें तुम्हॆं उन लोगों के सम्बन्ध में लिख रहा हूँ, जो तुम्हें छलने का जतन कर रहे हैं। 27 किन्तु जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुममें तो उस परम पवित्र से प्राप्त अभिषेक वर्तमान है, इसलिए तुम्हें तो आवश्यकता ही नहीं है कि कोई तुम्हें उपदेश दे, बल्कि तुम्हें तो वह आत्मा जिससे उस परम पवित्र ने तुम्हारा अभिषेक किया है, तुम्हें सब कुछ सिखाती है। (और याद रखो, वही सत्य है, वह मिथ्या नहीं है।) उसने तुम्हें जैसे सिखाया है, तुम मसीह में वैसे ही बने रहो।

28 इसलिए प्यारे बच्चों, उसी में बने रहो ताकि जब हमें उसका ज्ञान हो तो हम आत्मविश्वास पा सकें। और उसके पुनः आगमन के समय हमें लज्जित न होना पड़े। 29 यदि तुम यह जानते हो कि वह नेक है तो तुम यह भी जान लो कि वह जो धार्मिकता पर चलता है परमेश्वर की ही सन्तान है।

मेरे बच्चों, मैं यह सब तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो किन्तु यदि किसी से पाप हो ही जाए तो पिता के पास हमारे लिए एक सहायक है मसीह येशु, जो धर्मी हैं. वही हमारे पापों के लिए प्रायश्चित-बलि हैं—मात्र हमारे ही पापों के लिए नहीं परन्तु सारे संसार के पापों के लिए.

दूसरी ज़रूरत: आदेशों का पालन

परमेश्वर के आदेशों का पालन करना इस बात का प्रमाण है कि हमने परमेश्वर को जान लिया है. वह, जो यह कहता तो रहता है, “मैं परमेश्वर को जानता हूँ”, किन्तु उनके आदेशों और आज्ञाओं के पालन नहीं करता, झूठा है और उसमें सच है ही नहीं परन्तु जो कोई उनकी आज्ञा का पालन करता है, उसमें परमेश्वर का प्रेम वास्तव में सिद्धता तक पहुँचा दिया गया है. परमेश्वर में हमारे स्थिर बने रहने का प्रमाण यह है: जो कोई यह दावा करता है कि वह मसीह येशु में स्थिर है, तो वह उन्हीं के समान चाल-चलन भी करे.

प्रियजन, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं परन्तु वही आज्ञा लिख रहा हूँ, जो प्रारम्भ ही से थी; यह वही समाचार है, जो तुम सुन चुके हो. फिर भी मैं तुम्हें एक नईं आज्ञा लिख रहा हूँ, जो मसीह में सच था तथा तुममें भी सच है. अन्धकार मिट रहा है तथा वास्तविक ज्योति चमकी है.

वह, जो यह दावा करता है कि वह ज्योति में है, फिर भी अपने भाई से घृणा करता है, अब तक अन्धकार में है. 10 जो साथी विश्वासी से प्रेम करता है, उसका वास ज्योति में है, तथा उसमें ऐसा कुछ भी नहीं जिससे वह ठोकर खाए. 11 परन्तु वह, जो साथी विश्वासी से घृणा करता है, अन्धकार में है, अन्धकार में ही चलता है तथा नहीं जानता कि वह किस दिशा में बढ़ रहा है क्योंकि अन्धकार ने उसे अंधा बना दिया है.

तीसरी ज़रूरत: संसार में मन न लगाना

12 बच्चों, यह सब मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि मसीह येशु के नाम के लिए
    तुम्हारे पाप-क्षमा किए गए हैं.
13 तुम्हें, जो पिता हो,
    मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उन्हें जानते हो, जो आदि से हैं.
    तुम्हें, जो युवा हो, इसलिए कि तुमने उस दुष्ट को हरा दिया है.
14 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, तुम्हें इसलिए कि तुम पिता को जानते हो.
तुम्हें, जो पिता हो, मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उन्हें जानते हो,
जो आदि से हैं.
    तुम्हें, जो नौजवान हो, इसलिए कि तुम बलवन्त हो,
    तुम में परमेश्वर के शब्द का वास है
    और तुमने उस दुष्ट को हरा दिया है.

संसार से प्रेम मत करो

15 न तो संसार से प्रेम रखो और न ही सांसारिक वस्तुओं से. यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, उसमें पिता का प्रेम होता ही नहीं. 16 वह सब, जो संसार में समाया हुआ है—शरीर की अभिलाषा, आँखों की लालसा तथा जीवनशैली का घमण्ड़—पिता की ओर से नहीं परन्तु संसार की ओर से है. 17 संसार अपनी अभिलाषाओं के साथ मिट रहा है, किन्तु वह, जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है, सर्वदा बना रहता है.

चौथी ज़रूरत: मसीह-विरोधियों से सावधानी

18 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, यह अन्तिम समय है और ठीक जैसा तुमने सुना ही है कि मसीह-विरोधी प्रकट होने पर है, इस समय भी अनेक मसीह-विरोधी उठ खड़े हुए हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह अन्तिम समय है. 19 वे हमारे बीच ही से बाहर चले गए—वास्तव में वे हमारे थे ही नहीं—यदि वे हमारे होते तो हमें छोड़ कर न जाते. उनका हमें छोड़ कर जाना ही यह स्पष्ट कर देता है कि उनमें से कोई भी हमारा न था 20 किन्तु तुम्हारा अभिषेक उन पवित्र मसीह येशु से है, इसका तुम्हें अहसास भी है.

21 मेरा यह सब लिखने का उद्धेश्य यह नहीं कि तुम सच्चाई से अनजान हो परन्तु यह कि तुम इससे परिचित हो. किसी भी झूठ का जन्म सच से नहीं होता. 22 झूठा कौन है, सिवाय उसके, जो येशु के मसीह होने की बात को अस्वीकार करता है? यही मसीह-विरोधी है, जो पिता और पुत्र को अस्वीकार करता है. 23 हर एक, जो पुत्र को अस्वीकार करता है, पिता भी उसके नहीं हो सकते. जो पुत्र का अंगीकार करता है, पिता परमेश्वर भी उसके हैं. 24 इसका ध्यान रखो कि तुम में वही शिक्षा स्थिर रहे, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है. यदि वह शिक्षा, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है, तुम में स्थिर है तो तुम भी पुत्र और पिता में बने रहोगे. 25 अनन्त जीवन ही उनके द्वारा हमसे की गई प्रतिज्ञा है. 26 यह सब मैंने तुम्हें उनके विषय में लिखा है, जो तुम्हें मार्ग से भटकाने का प्रयास कर रहे हैं.

27 तुम्हारी स्थिति में प्रभु के द्वारा किया गया वह अभिषेक का तुममें स्थिर होने के प्रभाव से यह ज़रूरी ही नहीं कि कोई तुम्हें शिक्षा दे. उनके द्वारा किया गया अभिषेक ही तुम्हें सभी विषयों की शिक्षा देता है. यह शिक्षा सच है, झूठ नहीं. ठीक जैसी शिक्षा तुम्हें दी गई है, तुम उसी के अनुसार मसीह में स्थिर बने रहो.

परमेश्वर में स्थिर रहना

28 बच्चों, उनमें स्थिर रहो कि जब वह प्रकट हों तो हम निड़र पाए जाएँ तथा उनके आगमन पर हमें लज्जित न होना पड़े. 29 यदि तुम्हें यह अहसास है कि वह धर्मी हैं तो यह जान लो कि हर एक धर्मी व्यक्ति भी उन्हीं से उत्पन्न हुआ है.