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犹太人的长处

这样说来,犹太人有什么长处,割礼有什么益处呢? 凡事大有好处,第一是神的圣言交托他们。 即便有不信的,这有何妨呢?难道他们的不信就废掉神的信吗? 断乎不能!不如说,神是真实的,人都是虚谎的。如经上所记:“你责备人的时候显为公义,被人议论的时候可以得胜。” 我且照着人的常话说,我们的不义若显出神的义来,我们可以怎么说呢?神降怒是他不义吗? 断乎不是!若是这样,神怎能审判世界呢? 若神的真实因我的虚谎越发显出他的荣耀,为什么我还受审判,好像罪人呢? 为什么不说“我们可以作恶以成善”呢?这是毁谤我们的人说我们有这话。这等人定罪是该当的。

引证犹太和外邦都在罪恶之下

这却怎么样呢?我们比他们强吗?决不是的!因我们已经证明:犹太人和希腊人都在罪恶之下。 10 就如经上所记:“没有义人,连一个也没有。 11 没有明白的,没有寻求神的。 12 都是偏离正路,一同变为无用;没有行善的,连一个也没有。 13 他们的喉咙是敞开的坟墓,他们用舌头弄诡诈,嘴唇里有虺蛇的毒气, 14 满口是咒骂苦毒。 15 杀人流血,他们的脚飞跑; 16 所经过的路,便行残害暴虐的事; 17 平安的路,他们未曾知道。 18 他们眼中不怕神。” 19 我们晓得律法上的话都是对律法以下之人说的,好塞住各人的口,叫普世的人都伏在神审判之下。 20 所以凡有血气的,没有一个因行律法能在神面前称义,因为律法本是叫人知罪。

信靠耶稣乃得称义

21 但如今,神的义在律法以外已经显明出来,有律法和先知为证, 22 就是神的义因信耶稣基督加给一切相信的人,并没有分别。 23 因为世人都犯了罪,亏缺了神的荣耀, 24 如今却蒙神的恩典,因基督耶稣的救赎,就白白地称义。 25 神设立耶稣做挽回祭,是凭着耶稣的血,借着人的信,要显明神的义。因为他用忍耐的心宽容人先时所犯的罪, 26 好在今时显明他的义,使人知道他自己为义,也称信耶稣的人为义。 27 既是这样,哪里能夸口呢?没有可夸的了。用何法没有的呢?是用立功之法吗?不是,乃用信主之法。 28 所以[a]我们看定了,人称义是因着信,不在乎遵行律法。 29 难道神只做犹太人的神吗?不也是做外邦人的神吗?是的,也做外邦人的神。 30 神既是一位,他就要因信称那受割礼的为义,也要因信称那未受割礼的为义。 31 这样,我们因信废了律法吗?断乎不是,更是坚固律法。

Footnotes

  1. 罗马书 3:28 有古卷作:因为。

犹太人独特的地方

这样说来,犹太人独特的地方在哪里呢?割礼又有甚么益处呢? 从各方面来说,的确很多。最重要的,是 神的圣言已经托付了他们。 即使有人不信,又有甚么关系呢?难道他们的不信会使 神的信实无效吗? 绝不可能! 神总是诚实的,人却是虚谎的,正如经上所记:

“你在话语上,显为公义;

你被论断时,必然得胜。”

我且照着人的见解来说,我们的不义若彰显 神的义,我们可以说甚么呢?难道降怒的 神是不义的吗? 绝对不是!如果是这样, 神怎能审判世界呢? 但是 神的诚实,如果因我的虚谎而更加显出他的荣耀来,为甚么我还要像罪人一样受审判呢? 为甚么不说:“我们去作恶以成善吧!”(有人毁谤我们,说我们讲过这话。)这种人被定罪是理所当然的。

世上一个义人也没有

那又怎么样呢?我们比他们强吗?绝不是的。因为我们已经控诉过,无论是犹太人或是希腊人,都在罪恶之下, 10 正如经上所说:

“没有义人,连一个也没有,

11 没有明白的,没有寻求 神的;

12 人人都偏离了正道,一同变成污秽;

没有行善的,连一个也没有。

13 他们的喉咙是敞开的坟墓,

他们用舌头弄诡诈,

他们嘴里有虺蛇的毒,

14 满口是咒骂和恶毒;

15 为了杀人流血,他们的脚步飞快,

16 在经过的路上留下毁灭和悲惨。

17 和睦之道,他们不晓得,

18 他们的眼中也不怕 神。”

19 然而我们晓得,凡律法所说的,都是对在律法之下的人说的,好让每一个人都没有话可讲,使全世界的人都伏在 神的审判之下。 20 没有一个人可以靠行律法,在 神面前得称为义,因为借着律法,人对于罪才有充分的认识。

因信基督白白称义

21 现在,有律法和先知的话可以证明: 神的义在律法之外已经显明出来, 22 就是 神的义,因着信耶稣基督,毫无区别地临到所有信的人。 23 因为人人都犯了罪,亏缺了 神的荣耀, 24 但他们却因着 神的恩典,借着在基督耶稣里的救赎,就白白地称义。 25  神设立了耶稣为赎罪祭(“赎罪祭”直译作“赎罪或使 神息怒之法”),是凭着他的血,借着人的信,为的是要显明 神的义;因为 神用忍耐的心宽容了人从前所犯的罪, 26 好在现今显明他的义,使人知道他自己为义,又称信耶稣的人为义。

27 这样,有甚么可夸的呢?没有可夸的了。凭甚么准则说没有的呢?凭行为吗?不是的,而是以信心为准则说的。 28 因为我们认定,人称义是由于信,并不是靠行律法。 29 难道 神只是犹太人的 神吗?不也是外族人的 神吗?是的,他也是外族人的 神。 30  神既然只有一位,他就以信为准则称受割礼的为义,也要以信为准则称没有受割礼的为义。 31 这样说来,我们以信废掉了律法吗?绝对不是,倒是巩固了律法。

सो यहूदी होने का क्या लाभ या ख़तने का क्या मूल्य? हर प्रकार से बहुत कुछ। क्योंकि सबसे पहले परमेश्वर का उपदेश तो उन्हें ही सौंपा गया। यदि उनमें से कुछ विश्वासघाती हो भी गये तो क्या है? क्या उनका विश्वासघातीपन परमेश्वर की विश्वासपूर्णता को बेकार कर देगा? निश्चय ही नहीं, यदि हर कोई झूठा भी है तो भी परमेश्वर सच्चा ठहरेगा। जैसा कि शास्त्र में लिखा है:

“ताकि जब तू कहे तू उचित सिद्ध हो
    और जब तेरा न्याय हो, तू विजय पाये।”(A)

सो यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता सिद्ध करे तो हम क्या कहें? क्या यह कि वह अपना कोप हम पर प्रकट करके अन्याय नहीं करता? (मैं एक मनुष्य के रूप में अपनी बात कह रहा हूँ।) निश्चय ही नहीं, नहीं तो वह जगत का न्याय कैसे करेगा।

किन्तु तुम कह सकते हो: “जब मेरी मिथ्यापूर्णता से परमेश्वर की सत्यपूर्णता और अधिक उजागर होती है तो इससे उसकी महिमा ही होती है, फिर भी मैं दोषी करार क्यों दिया जाता हूँ?” और फिर क्यों न कहे: “आओ! बुरे काम करें ताकि भलाई प्रकट हो।” जैसा कि हमारे बारे में निन्दा करते हुए कुछ लोग हम पर आरोप लगाते हैं कि हम ऐसा कहते हैं। ऐसे लोग दोषी करार दिये जाने योग्य है। वे सभी दोषी हैं।

कोई भी धर्मी नहीं

तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं। 10 शास्त्र कहता है:

“कोई भी धर्मी नहीं, एक भी!
11     कोई समझदार नहीं, एक भी!
कोई ऐसा नहीं, जो प्रभु को खोजता!
12 सब भटक गए,
    वे सब ही निकम्मे बन गए,
साथ-साथ सब के सब, कोई भी यहाँ पर दया तो दिखाता नहीं, एक भी नहीं!”(B)

13 “उनके मुँह खुली कब्र से बने हैं,
    वे अपनी जीभ से छल करते हैं।”(C)

“उनके होठों पर नाग विष रहता हैं।”(D)

14 “शाप से कटुता से मुँह भरे रहते है।”(E)

15 “हत्या करने को वे हरदम उतावले रहते है।
16     वे जहाँ कहीं जाते नाश ही करते हैं, संताप देते हैं।
17 उनको शांति के मार्ग का पता नहीं।”(F)

18 “उनकी आँखों में प्रभु का भय नहीं है।”(G)

19 अब हम यह जानते हैं कि व्यवस्था में जो कुछ कहा गया है, वह उन को सम्बोधित है जो व्यवस्था के अधीन हैं। ताकि हर मुँह को बन्द किया जा सके और सारा जगत परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे। 20 व्यवस्था के कामों से कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के सामने धर्मी सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि व्यवस्था से जो कुछ मिलता है, वह है पाप की पहचान करना।

परमेश्वर मनुष्यों को धर्मी कैसे बनाता है

21 किन्तु अब वास्तव में मनुष्य के लिये यह दर्शाया गया है कि परमेश्वर व्यवस्था के बिना ही उसे अपने प्रति सही कैसे बनाता है। निश्चय ही व्यवस्था और नबियों ने इसकी साक्षी दी है। 22 सभी विश्वासियों के लिये यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता प्रकट की गयी है बिना किसी भेदभाव के। 23 क्योंकि सभी ने पाप किये है और सभी परमेश्वर की महिमा से रहित है। 24 किन्तु यीशु मसीह में सम्पन्न किए गए अनुग्रह के छुटकारे के द्वारा उसके अनुग्रह से वे एक सेंतमेत के उपहार के रूप में धर्मी ठहराये गये हैं। 25 परमेश्वर ने यीशु मसीह को, उसमें विश्वास के द्वारा पापों से छुटकारा दिलाने के लिये, लोगों को दिया। उसने यह काम यीशु मसीह के बलिदान के रूप में किया। ऐसा यह प्रमाणित करने के लिए किया गया कि परमेश्वर सहनशील है क्योंकि उसने पहले उन्हें उनके पापों का दण्ड दिये बिना छोड़ दिया था। 26 आज भी अपना न्याय दर्शाने के लिए कि वह न्यायपूर्ण है और न्यायकर्ता भी है, उनका जो यीशु मसीह में विश्वास रखते हैं।

27 तो फिर घमण्ड करना कहाँ रहा? वह तो समाप्त हो गया। भला कैसे? क्या उस विधि से जिसमें व्यवस्था जिन कर्मों की अपेक्षा करती है, उन्हें किया जाता है? नहीं, बल्कि उस विधि से जिसमें विश्वास समाया है। 28 कोई व्यक्ति व्यवस्था के कामों के अनुसार चल कर नहीं बल्कि विश्वास के द्वारा ही धर्मी बन सकता है। 29 या परमेश्वर क्या बस यहूदियों का है? क्या वह ग़ैर यहूदियों का नहीं है? हाँ वह ग़ैर यहूदियों का भी है। 30 क्योंकि परमेश्वर एक है। वही उनको जिनका उनके विश्वास के आधार पर ख़तना हुआ है, और उनको जिनका ख़तना नहीं हुआ है उसी विश्वास के द्वारा, धर्मी ठहरायेगा। 31 सो क्या, हम विश्वास के आधार पर व्यवस्था को व्यर्थ ठहरा रहे है? निश्चय ही नहीं। बल्कि हम तो व्यवस्था को और अधिक शक्तिशाली बना रहे हैं।