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सूक्ति संग्रह

सुजस, अच्छी सुगन्धि स उत्तिम अहइ।
    अउर उ दिन जब मनई मरी, इ दिन उ दिन स उत्तिम होइ जब उ पइदा होइ।
उत्सव मँ जाइ स जाब, सदा उत्तिम हुआ करत ह।
    काहेकि सबहिं लोगन क मउत तउ निहचित अहइ। हर जिअत मनई क सोचइ चाही एका।
हँसी क ठहाके स सोक उत्तिम अहइ।
    काहेकि जब हमारे मुखे पइ उदासी क वास होत ह, तउ हमार हिरदय सुद्ध होत हीं।
विवेकी मनई तउ सोचत ह मउत क
    किन्तु मूरख जन तउ बस सोचत रहत हीं कि गुजरइ समय नीक।
विवेकी स निन्दित होब उत्तिम होत ह,
    बनिस्बत एकरे कि मूरख स तारीफ कीन्ह जाइ।
मूरख क ठहाका तउ बेकार होत ह।
    इ वइसे ही होत ह जइसे बर्तन क नीचे काँटे दरदराई।
अत्याचार विवेकी क भी मूरख बनाइ देत ह,
    अउर घूस मँ मिला धन ओकर मति क हर लेत ह।
बात क सुरू करइ स अच्छा ओकर अन्त करब अहइ।
    नम्रता अउर धीरज, गुस्सा दिखावइ अउर अहंकार स उत्तिम अहइ।
किरोध मँ हाली स जिन आवा।
    काहेकि किरोध मँ आउब मूर्खता अहइ।
10 जिन कहा, “अच्छे दिनन क का भएन, तब सबकछू ‘ठीक-ठाक रहेन।’
    इ सवाल बुद्धि स नाहीं आवत हीं।”

11 जइसे वसीयतनामा मँ सम्पत्ति क पाउब अच्छा अहइ वइसे ही बुद्धि क पाउब भी उत्तिम अहइ। जिन्नगी बरे इ लाभदायक अहइ। 12 धने क समान बुद्धि भी रच्छा करत ह। बुद्धि क गियान मनई क जिन्नगी क रच्छा करत ही।

13 परमेस्सर क रचना क लखा। जेका परमेस्सर टेढ़ा कइ देइहीं ओका तू सीधा कर सकत्या। 14 जब जिन्नगी उत्तिम अहइ तउ ओकर रस ल्या मुला जब जिन्नगी कठिन अहइ तउ याद राखा कि परमेस्सर हमका कठिन समय देत अहइ अउर अच्छा समय भी देत अहइ इसलिए भियान का होइ इ तउ कउनो नाहीं जानत।

लोग फुरइ नीक नाहीं होइ सकतेन

15 आपन छोटी स जिन्नगी मँ मइँ सब कछू लखेउँ ह। मइँ लखेउँ ह अच्छे लोग जवानी मँ ही मरि जात हीं। मइँ लखेउँ ह कि बुरे लोग लम्बी आयु तलक जिअत रहत हीं। 16-17 तउ अपने क हलाकान काहे करत अहा? न तउ बहोत जियादा धर्मी बना अउर न ही बुद्धिमान इ तोहका नास करब। न तउ बहोत जियादा दुट्ठ बना अउर न ही मूरख अन्यथा समय स पहिले तू मरि जाब्या।

18 तनिक इ बना अउर तनिक उ। हिआँ तलक कि परमेस्सर क मनवइयन भी कछू अच्छा करिहीं तउ पाप भी। 19-20 निहचय ही इ धरती पइ कउनो अइसा नीक मनई नाहीं अहइ जउन सदा अच्छा ही अच्छा करत ह अउर बुरा कबहुँ नाहीं करत। बुद्धि मनई क सक्ति देत ह। कउनो सहर क दस मूरख सासकन स एक साधारण बुद्धिमान मनई जियादा सक्तीसाली होत ह।

21 लोग जउन बातन कहत रहत हीं ओन सब पइ कान जिन द्या। होइ सकत ह तू आपन सेवक क ही तोहरे बारे मँ बुरी बातन कहत सुना। 22 अउर तू जानत अहा कि तू भी अनेक अवसरन पइ दूसर लोगन क बारे मँ बुरी बातन कहया ह।

23 एन सब बातन क बारे मँ मइँ आपन बुद्धि अउर विचारन क प्रयोग किहा ह। मइँ फुरइ बुद्धिमान बनइ चाहेउँ ह मुला इ तउ असंभव रहा। 24 मइँ समुझ नाहीं पावत कि बातन वइसी काहे अहइँ जइसी उ सबइ अहइँ। कउनो क बरे इ समुझब बड़ा मुस्किल अहइ। 25 मइँ अध्ययन किहेउँ अउर सच्ची बुद्धि क पावइ बरे बहुत कठिन मेहनत किहेउँ। मइँ हर चीज क कउनो कारण हेरइ क प्रयास किहेउँ किन्तु मइँ जानेउँ का?

मइँ जानेउँ कि बुरा होब बेवकूफी बाटइ मूरखपन पागलपन अहइ। 26 मइँ इ भी पाएउँ कि कछू मेहररूअन एक फन्दा क नाई खतरनाक होत हीं। ओनकर हिरदय जाल जइसे होत हीं अउर ओनकर बाहन जंजीरन क तरह होत हीं। जउन लोग परमेस्सर क खुस करत हीं, अइसी मेहररूअन स बच निकरत हीं मुला उ सबइ लोग जउन परमेस्सर क नाखुस करत हीं ओनके जरिये फाँस लीन्ह जात हीं।

27 उपदेसक कहत ह, “इ सब कछू एकत्र कइके इहइ अहइ जउन मइँ पाएस। 28 मोर पूरा खोज बिचार क पाछा इहइ मइँ पाएउँ। हजारन मँ एक ठु मनई रहा जेका एकर छूट रही, कउनो मेहरारु क नाहीं।

29 “इहइ अहइ जउन मइँ पाएन, परमेस्सर लोगन क इमान्दार अउर सीधा बनावत ह, किन्तु लोग जल्द ही आपन राह पावइ बरे जोजना बनावत ह।”