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पुरुष का वचन

मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, मैंने अपने उपवन में
    अपनी सुगध सामग्री के साथ प्रवेश किया। मैंने अपना रसगंध एकत्र किया है।
मैं अपना मधु छत्ता समेत खा चुका।
    मैं अपना दाखमधु और अपना दूध पी चुका।

स्त्रियों का वचन प्रेमियों के प्रति

हे मित्रों, खाओ, हाँ प्रेमियों, पियो!
    प्रेम के दाखमधु से मस्त हो जाओ!

स्त्री का वचन

मैं सोती हूँ
    किन्तु मेरा हृदय जागता है।
मैं अपने हृदय—धन को द्वार पर दस्तक देते हुए सुनती हूँ।
    “मेरे लिये द्वार खोलो मेरी संगिनी, ओ मेरी प्रिये! मेरी कबूतरी, ओ मेरी निर्मल!
    मेरे सिर पर ओस पड़ी है
    मेरे केश रात की नमी से भीगें हैं।”

“मैंने निज वस्त्र उतार दिया है।
    मैं इसे फिर से नहीं पहनना चाहती हूँ।
मैं अपने पाँव धो चुकी हूँ,
    फिर से मैं इसे मैला नहीं करना चाहती हूँ।”

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