Add parallel Print Page Options

सबसे प्रेम करो

हे मेरे भाइयों, हमारे महिमावान प्रभु यीशु मसीह में जो तुम्हारा विश्वास है, वह पक्षपातपूर्ण न हो। कल्पना करो तुम्हारी सभा में कोई व्यक्ति सोने की अँगूठी और भव्य वस्त्र धारण किए हुए आता है। और तभी मैले कुचैले कपड़े पहने एक निर्धन व्यक्ति भी आता है। और तुम जिसने भव्य वस्त्र धारण किए हैं, उसको विशेष महत्त्व देते हुए कहते हो, “यहाँ इस उत्तम स्थान पर बैठो”, जबकि उस निर्धन व्यक्ति से कहते हो, “वहाँ खड़ा रह” या “मेरे पैरों के पास बैठ जा।” ऐसा करते हुए क्या तुमने अपने बीच कोई भेद-भाव नहीं किया और बुरे विचारों के साथ न्यायकर्ता नहीं बन गए?

हे मेरे प्यारे भाईयों, सुनो क्या परमेश्वर ने संसार की आँखों में उन निर्धनों को विश्वास में धनी और उस राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में नहीं चुना, जिसका उसने, जो उसे प्रेम करते हैं, देने का वचन दिया है। किन्तु तुमने तो उस निर्धन व्यक्ति के प्रति घृणा दर्शायी है। क्या ये धनिक व्यक्ति वे ही नहीं हैं, जो तुम्हारा शोषण करते हैं और तुम्हें कचहरियों में घसीट ले जाते हैं? क्या ये वे ही नहीं हैं, जो मसीह के उस उत्तम नाम की निन्दा करते हैं, जो तुम्हें दिया गया है?

यदि तुम शास्त्र में प्राप्त होने वाली इस उच्चतम व्यवस्था का सचमुच पालन करते हो, “अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो, जैसे तुम अपने आप से करते हो” (A) तो तुम अच्छा ही करते हो। किन्तु यदि तुम पक्षपात दिखाते हो तो तुम पाप कर रहे हो। फिर तुम्हें व्यवस्था के विधान को तोड़ने वाला ठहराया जाएगा।

10 क्योंकि कोई भी यदि समग्र व्यवस्था का पालन करता है और एक बात में चूक जाता है तो वह समूची व्यवस्था के उल्लंघन का दोषी हो जाता है। 11 क्योंकि जिसने यह कहा था, “व्यभिचार मत करो”(B) उस ही ने यह भी कहा था, “हत्या मत करो।”(C) सो यदि तुम व्यभिचार नहीं करते किन्तु हत्या करते हो तो तुम व्यवस्था को तोड़ने वाले हो।

12 तुम उन्हीं लोगों के समान बोलो और उन ही के जैसा आचरण करो जिनका उस व्यवस्था के अनुसार न्याय होने जा रहा है, जिससे छुटकारा मिलता है। 13 जो दयालु नहीं है, उसके लिए परमेश्वर का न्याय भी बिना दया के ही होगा। किन्तु दया न्याय पर विजयी है।

विश्वास और सत् कर्म

14 हे मेरे भाईयों, यदि कोई व्यक्ति कहता है कि वह विश्वासी है तो इसका क्या लाभ जब तक कि उसके कर्म विश्वास के अनुकूल न हों? ऐसा विश्वास क्या उसका उद्धार कर सकता है? 15 यदि भाइयों और बहनों को वस्त्रों की आवश्यकता हो, उनके पास खाने तक को न हो 16 और तुममें से ही कोई उनसे कहे, “शांति से जाओ, परमेश्वर तुम्हारा कल्याण करे, अपने को गरमाओ तथा अच्छी प्रकार भोजन करो” और तुम उनकी देह की आवश्यकताओं की वस्तुएँ उन्हें न दो तो फिर इसका क्या मूल्य है? 17 इसी प्रकार यदि विश्वास के साथ कर्म नहीं है तो वह अपने आप में निष्प्राण है।

18 किन्तु कोई कह सकता है, “तुम्हारे पास विश्वास है, जबकि मेरे पास कर्म है अब तुम बिना कर्मों के अपना विश्वास दिखाओ और मैं तुम्हें अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा दिखाऊँगा।” 19 क्या तुम विश्वास करते हो कि परमेश्वर केवल एक है? अदभुत! दुष्टात्माएँ यह विश्वास करती हैं कि परमेश्वर है और वे काँपती रहती हैं।

20 अरे मूर्ख! क्या तुझे प्रमाण चाहिए कि कर्म रहित विश्वास व्यर्थ है? 21 क्या हमारा पिता इब्राहीम अपने कर्मों के आधार पर ही उस समय धर्मी नहीं ठहराया गया था जब उसने अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर अर्पित कर दिया था? 22 तू देख कि उसका वह विश्वास उसके कर्मों के साथ ही सक्रिय हो रहा था। और उसके कर्मों से ही उसका विश्वास परिपूर्ण किया गया था। 23 इस प्रकार शास्त्र का यह कहा पूरा हुआ था, “इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया और विश्वास के आधार पर ही वह धर्मी ठहरा”(D) और इसी से वह “परमेश्वर का मित्र”(E) कहलाया। 24 तुम देखो कि केवल विश्वास से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से ही व्यक्ति धर्मी ठहरता है।

25 इसी प्रकार राहब वेश्या भी क्या उस समय अपने कर्मों से धर्मी नहीं ठहरायी गयी, जब उसने दूतों को अपने घर में शरण दी और फिर उन्हें दूसरे मार्ग से कहीं भेज दिया।

26 इस प्रकार जैसे बिना आत्मा का देह मरा हुआ है, वैसे ही कर्म विहीन विश्वास भी निर्जीव है!

पक्षपात वर्जन

प्रियजन, तुम हमारे महिमामय प्रभु मसीह येशु के शिष्य हो इसलिए तुम में पक्षपात का भाव न हो. तुम्हारी सभा में यदि कोई व्यक्ति सोने के छल्ले तथा ऊँचे स्तर के कपड़े पहने हुए प्रवेश करे और वहीं एक निर्धन व्यक्ति भी मैले कपड़ों में आए, तुम ऊँचे स्तर के वस्त्र धारण किए हुए व्यक्ति का तो विशेष आदर करते हुए उससे कहो, “आप इस आसन पर विराजिए” तथा उस निर्धन से कहो, “तू जा कर वहाँ खड़ा रह” या “यहाँ मेरे पैरों के पास नीचे बैठ जा,” क्या तुमने यहाँ भेदभाव प्रकट नहीं किया? क्या तुम बुरे विचार से न्याय करने वाले न हुए?

सुनो! मेरे प्रियों, क्या परमेश्वर ने संसार के निर्धनों को विश्वास में सम्पन्न होने तथा उस राज्य के वारिस होने के लिए नहीं चुन लिया, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनसे की है, जो उनसे प्रेम करते हैं? किन्तु तुमने उस निर्धन व्यक्ति का अपमान किया है. क्या धनी ही वे नहीं, जो तुम्हारा शोषण कर रहे हैं? क्या ये ही वे नहीं, जो तुम्हें न्यायालय में घसीट ले जाते हैं? क्या ये ही उस सम्मान योग्य नाम की निन्दा नहीं कर रहे, जो नाम तुम्हारी पहचान है?

यदि तुम पवित्रशास्त्र के अनुसार इस राजसी व्यवस्था को पूरा कर रहे हो: अपने पड़ोसी से तुम इस प्रकार प्रेम करो, जिस प्रकार तुम स्वयं से करते हो, तो तुम उचित कर रहे हो. किन्तु यदि तुम्हारा व्यवहार भेद-भाव से भरा है, तुम पाप कर रहे हो और व्यवस्था द्वारा दोषी ठहरते हो.

10 कारण यह है कि यदि कोई पूरी व्यवस्था का पालन करे किन्तु एक ही सूत्र में चूक जाए तो वह पूरी व्यवस्था का दोषी बन गया है 11 क्योंकि जिन्होंने यह आज्ञा दी: व्यभिचार मत करो, उन्हीं ने यह आज्ञा भी दी है: हत्या मत करो. यदि तुम व्यभिचार नहीं करते किन्तु किसी की हत्या कर देते हो, तो तुम व्यवस्था के दोषी हो गए.

12 इसलिए तुम्हारी कथनी और करनी उनके समान हो, जिनका न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार किया जाएगा. 13 जिसमें दयाभाव नहीं, उसका न्याय भी दयारहित ही होगा. दया न्याय पर जय पाती है.

विश्वास तथा अच्छे काम

14 प्रियजन, क्या लाभ है यदि कोई यह दावा करे कि उसे विश्वास है किन्तु उसका स्वभाव इसके अनुसार नहीं? क्या ऐसा विश्वास उसे उद्धार प्रदान करेगा? 15 यदि किसी के पास पर्याप्त वस्त्र न हों, उसे दैनिक भोजन की भी ज़रूरत हो 16 और तुममें से कोई उससे यह कहे, “कुशलतापूर्वक जाओ, ठण्ड़ से बचना और खा-पीकर सन्तुष्ट रहना!” जब तुम उसे उसकी ज़रूरत के अनुसार कुछ भी नहीं दे रहे तो यह कह कर तुमने उसका कौनसा भला कर दिया? 17 इसी प्रकार यदि वह विश्वास, जिसकी पुष्टि कामों के द्वारा नहीं होती, मरा हुआ है.

18 कदाचित कोई यह कहे, “चलो, विश्वास तुम्हारा और काम मेरा.”

तुम अपना विश्वास बिना काम के प्रदर्शित करो, और मैं अपना विश्वास अपने काम के द्वारा. 19 यदि तुम्हारा यह विश्वास है कि परमेश्वर एक हैं, अति उत्तम! दुष्टात्माएं भी यही विश्वास करती है और भयभीत हो काँपती हैं. 20 अरे निपट अज्ञानी! क्या अब यह भी साबित करना होगा कि काम बिना विश्वास व्यर्थ है?

अब्राहाम का आदर्श

21 क्या हमारे पूर्वज अब्राहाम को, जब वह वेदी पर इसहाक की बलि भेंट करने को थे, उनके काम के आधार पर धर्मी घोषित नहीं किया गया? 22 तुम्हीं देख लो कि उनके काम के साथ उनका विश्वास भी सक्रिय था. इसलिए उनके काम के फलस्वरूप उनका विश्वास सबसे उत्तम ठहराया गया था 23 और पवित्रशास्त्र का यह लेख पूरा हो गया: अब्राहाम ने परमेश्वर में विश्वास किया और उनका यह काम उनकी धार्मिकता मानी गई और वह परमेश्वर के मित्र कहलाए. 24 तुम्हीं देख लो कि व्यक्ति को उसके काम के द्वारा धर्मी माना जाता है, मात्र विश्वास के आधार पर नहीं.

25 इसी प्रकार क्या राख़ाब वेश्या को भी धर्मी न माना गया, जब उसने उन गुप्तचरों को अपने घर में शरण दी और उन्हें एक भिन्न मार्ग से वापस भेजा? 26 ठीक जैसे आत्मा के बिना शरीर मरा हुआ है, वैसे ही काम बिना विश्वास भी मरा हुआ है.