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12 तुम उस पुस्तक को एक ऐसे व्यक्ति को दे सकते हो जो पढ़ पुस्तक है और उस व्यक्ति से कह सकते हो कि वह उस पुस्तक को पढ़े। किन्तु वह व्यक्ति कहेगा, “मैं पुस्तक को पढ़ नहीं सकता क्योंकि यह बन्द है और मैं इसे खोल नहीं सकता।” अथवा तुम उस पुस्तक को किसी भी ऐसे व्यक्ति को दे सकते हो जो पढ़ नहीं सकता, और उस व्यक्ति से कह सकते हो कि वह उस पुस्तक को पढ़े। तब वह व्यक्ति कहेगा, “मैं इस किताब को नहीं पढ़ सकता क्योंकि मैं पढ़ना नहीं जानता।”

13 मेरा स्वामी कहता है, “ये लोग कहते हैं कि वे मुझे प्रेम करते हैं। अपने मुख के शब्दों से वे मेरे प्रति आदर व्यक्त करते हैं। किन्तु उनके मन मुझ से बहुत दूर है। वह आदर जिसे वे मेरे प्रति दिखाते हैं, बस कोरे मानव नियम हैं जिन्हें उन्होंने कंठ कर रखा हैं। 14 सो मैं इन लोगों को शक्ति से पूर्ण और अचरज भरी बातें करते हुए आश्चर्यचकित करता रहूँगा। उनके बुद्धिमान पुरुष अपना विवेक छोड़ बैठेंगे। उनके बुद्धिमान पुरुष समझने में असमर्थ हो जायेंगे।”

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