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15 कोमल जवाबे स किरोध सांत होत ह; किन्तु कठोर वचन किरोध क भड़कावत ह।

जब कउनो बुद्धिमान बोलत ह तउ दूसर ओका सुनइ चाहत ह, मुला मूरख क मुँह बेववूफी उगलत ह।

यहोवा क आँखी हर कहूँ लगी भई अहइ। उ नीक-बुरे क देखत रहत ह।

दायावाली बात जिन्नगी क बृच्छ क नाईं अहइ। मुला कपट स भरी वाणी मने क तोड़ देत ह।

मूरख आपन बाप क डाँट फटकार क तिरस्कार करत ह। मुला जउन डाँट फटकार पइ कान देत ह बुद्धिमान होत ह।

धर्मिन क घरे मँ बहोत सारा चिज रहत ह। दुट्ठ क कमाई ओह पइ मुसिबत लिआवत ह।

बुद्धिमान क वाणी गियान फइलावत ह, मुला मूरखन क मन अइसा नाहीं करत ह।

यहोवा दुट्ठ क चढ़ावा स घिना करत ह मुला ओका सज्जन क पराथन ही खुस कइ देत ह।

दुट्ठन क राहन स यहोवा घिना करत ह। मुला जउन धार्मिकता क राहे पइ चलत हीं, ओनसे उ पिरेम करत ह।

10 ओकरी प्रतीच्छा मँ कठोर दण्ड रहत ह जउन राहे स भटक जात, अउर जउन सुधार स घिना करत ह, उ निहचय मरि जात ह।

11 जबकि यहोवा क समन्वा मउत अउ बिनासे क रहस्य खुला पड़ा अहइँ। तउ निहचित रूप स उ लोगन क हिरदयन क बारे मँ बहोत जियादा जानत ह।

12 उ व्यक्ति जउन डाँट फटकार करइवालन क मजाक उड़ावत ह, उ विवेकी स परामर्स नाहीं लेत।

13 मने क खुसी मुँह क चमकावत, मुला मने क दर्द आतिमा क कुचरि देत ह।

14 जउने मने क नीक-बुरा क बोध होत ह उ तउ गियान क खोज मँ रहत ह मुला मूरख क मन, मूरखता पइ लागत ह।

15 गरीब व्यक्ति बरे हर एक दिन बुरा अहइ, किन्तु आनन्दित हिरदय बरे हर एक दिन उत्सव क नाईं अहइ।

16 बेचैनी क संग प्रचुर धन उत्तिम नाहीं, यहोवा भय मानत रहइ स तनिक भी धन उत्तिम अहइ।

17 घिना क संग जियादा खइया स, पिरेम क संग थोड़ा भोजन उत्तिम अहइ।

18 किरोधी जन वाद-बिवाद भड़कावत ह। जबकि सहइवाला मनई वाद-बिवाद क सुलझावत ह।

19 आलसी क राह काँटन स रूँधी रहत हीं, जबकि सज्जन क मारग राजमार्ग होत ह।

20 विवेकी पूत अपने बाप क खुस करत ह, मुला मूरख मनई अपनी महतारी स घिना करत ह।

21 निर्बुद्धि मनई सोचत ह कि मूरखता मजाक अहइ। मुला समुझदार मनई सोझ राह चलत ह।

22 बिना परामर्स क जोजना बिफल होत हीं। किंतु एक मनई अनेक सलाहकारन क परामर्स स सफल होत हीं।

23 मनई उचित जवाब देइ स खुस होत ह। जइसा उचित होइ समय क बचन केतना उत्तिम अहइ।

24 बुद्धिमान जन क मारग ओका ऊँच स ऊँच लइ जात ह, अउर ओका मउत क गड़हा मँ गिरइ स बचा रहइ।

25 यहोवा अभिमानी क घरे क छिन्न-भिन्न करत ह। मुला उ गरीब राँड़ क भुइयाँ क देखरेख करत ह।

26 दुट्ठन क जोजना स यहोवा क घिना अहइ। पर सज्जनन क जोजना ओका हमेसा भावत हीं।

27 लालची मनई अपने घराने पइ हमेसा बदनामी लिआवत ह मुला उहइ सांति स जिअत रहत ह जउन जन-घूस स घिना भाव राखत ह।

28 धर्मी जन बोलइ स पहिले सोचत ह। मुला दुट्ठ जन बेसोचे समुझे बियर्थ बातन बोलत ह।

29 यहोवा दुट्ठन स दूर रहत ह, बहोत दूर; मुला उ धर्मी क पराथना सुनत ह।

30 आंनद स भरी आँखी क चमक मने क हर्सित करत ह, नीक खबर हाड़न तलक ताकत पहोंचावत ह।

31 जउन जीवनदायी डाँट सुनत ह, उहइ बुद्धिमान जनन क बीच चैन स रही।

32 अइसा मनई जउन अनुसासन क उपेच्छा करत, उ तउ आपन जिन्नगी क ही रद्द करत ह। मुला जउन सुधार पइ धियान देत ह समुझ-बूझ पावत ह।

33 यहोवा क भय लोगन क गियान सिखावत ह। आदर पावइ स पहिले नम्रता आवत ह।