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21 मूसा ने अपनी बाहें लाल सागर के ऊपर उठाईं। और यहोवा ने पूर्व से तेज आँधी चला दी। आँधी रात भर चलती रही। समुद्र फटा और पुरवायी हवा ने जमीन को सुखा दिया। 22 इस्राएल के लोग सूखी जमीन पर चलकर समुद्र के पार गए। उनकी दायीं और बाईं ओर पानी दीवार की तरह खड़ा था। 23 तब फ़िरौन के सभी रथों और घुड़सवारों ने समुद्र में उनका पीछा किया। 24 बहुत सवेरे ही यहोवा ने लम्बे बादल और आग के स्तम्भ पर से मिस्र की सेना को देखा और यहोवा ने उन पर हमला किया और उन्हें हरा दिया। 25 रथों के पहिए धंस गए। रथों का नियन्त्रण कठिन हो गया। मिस्री चिल्लाए, “हम लोग यहाँ से निकल चलें। यहोवा हम लोगों के विरुद्ध लड़ रहा है। यहोवा इस्राएल के लोगों के लिए लड़ रहा है।”

26 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपने हाथ को समुद्र के ऊपर उठाओ। फिर पानी गिरेगा तथा मिस्री रथों और घुड़सवारों को डूबो देगा।”

27 इसलिए ठीक दिन निकलने से पहले मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर उठाया और पानी अपने उचित तल पर वापस पहुँच गया। मिस्री भागने का प्रयत्न कर रहे थे। किन्तु यहोवा ने मिस्रियों को समुद्र में बहा कर डूबो दिया। 28 पानी अपने उचित तल तक लौटा और उसने रथों तथा घुड़सवारों को ढक लिया। फ़िरौन की पूरी सेना जो इस्राएली लोगों का पीछा कर रही थी, डूबकर नष्ट हो गई। उनमें से कोई भी न बचा!

29 किन्तु इस्राएल के लोगों ने सूखी जमीन पर चलकर समुद्र पार किया। उनकी दायीं और बायीं ओर पानी दीवार की तरह खड़ा था। 30 इसलिए उस दिन यहोवा ने इस्राएल के लोगों को मिस्रियों से बचाया और इस्राएल के लोगों ने मिस्रियों के शवों को लाल सागर के किनारे देखा। 31 इस्राएल के लोगों ने यहोवा की महान शक्ति को देखा जब उसने मिस्रियों को हराया। अत: लोगों ने यहोवा का भय माना और सम्मान किया और उन्होंने यहोवा और उसके सेवक मूसा पर विश्वास किया।

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