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चौथे पशु का न्याय

“मेरे देखते ही देखते, उनकी जगह पर सिंहासन रखे गये
    और वह सनातन राजा सिंहासन पर विराज गया।
उसके वस्त्र अति धवल थे, वे वस्त्र बर्फ से श्वेत थे।
    उनके सिर के बाल श्वेत थे, वे ऊन से भी श्वेत थे।
उसका सिंहासन अग्नि का बना था
    और उसके पहिए लपटों से बने थे।
10 सनातन राजा के सामने
    एक आग की नदी बह रही थी।
लाखों करोड़ों लोग उसकी सेवा में थे।
    उसके सामने करोड़ों दास खड़े थे।
यह दृश्य कुछ वैसा ही था
    जैसे दरबार शुरू होने को पुस्तकें खोली गयी हों।

11 “मैं देखता का देखता रह गया क्योंकि वह छोटा सींग डींगे मार रहा था। मैं उस समय तक देखता रहा जब अंतिम रूप से चौथे पशु की हत्या कर दी गयी। उसकी देह को नष्ट कर दिया गया और उसे धधकती हुई आग में डाल दिया गया। 12 दूसरे पशुओं की शक्ति और राजसत्ता उनसे छींन लिये गये। किन्तु एक निश्चित समय तक उन्हें जीवित रहने दिया गया।

13 “रात को मैंने अपने दिव्य स्वप्न में देखा कि मेरे सामने कोई खड़ा है, जो मनुष्य जैसा दिखाई देता था। वह आकाश में बादलों पर आ रहा था। वह उस सनातन राजा के पास आया था। सो उसे उसके सामने ले आया गया।

14 “वह जो मनुष्य के समान दिखाई दे रहा था, उसे अधिकार, महिमा और सम्पूर्ण शासन सत्ता सौंप दी गयी। सभी लोग, सभी जातियाँ और प्रत्येक भाषा—भाषी लोग उसकी आराधना करेंगे। उसका राज्य अमर रहेगा। उसका राज्य सदा बना रहेगा। वह कभी नष्ट नहीं होगा।

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