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इसहाक के लिए पत्नी

24 इब्राहीम बहुत बुढ़ापे तक जीवित रहा। यहोवा ने इब्राहीम को आशीर्वाद दिया और उसके हर काम में उसे सफलता प्रदान की। इब्राहीम का एक बहुत पुराना नौकर था जो इब्राहीम का जो कुछ था उसका प्रबन्धक था। इब्राहीम ने उस नौकर को बुलाया और कहा, “अपने हाथ मेरी जांघों के नीचे रखो। अब मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे एक वचन दो। धरती और आकाश के परमेश्वर यहोवा के सामने तुम वचन दो कि तुम कनान की किसी लड़की से मेरे पुत्र का विवाह नहीं होने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु एक कनानी लड़की से उसे विवाह न करने दो। तुम मेरे देश और मेरे अपने लोगों में लौटकर जाओ। वहाँ मेरे पुत्र इसहाक के लिए एक दुल्हन खोजो। तब उसे यहाँ उसके पास लाओ।”

नौकर ने उससे कहा, “यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश में लौटना न चाहे। तब, क्या मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारी जन्मभूमि को ले जाऊँ?”

इब्राहीम ने उससे कहा, “नहीं, तुम हमारे पुत्र को उस देश में न ले जाओ। यहोवा, स्वर्ग का परमेश्वर मुझे मेरी जन्मभूमि से यहाँ लाया। वह देश मेरे पिता और मेरे परिवार का घर था। किन्तु यहोवा ने यह वचन दिया कि वह नया प्रदेश मेरे परिवार वालों का होगा। यहोवा अपना एक दूत तुम्हारे सामने भेजे जिससे तुम मेरे पुत्र के लिए दुल्हन चुन सको। किन्तु यदि लड़की तुम्हारे साथ आना मना करे तो तुम अपने वचन से छुटकारा पा जाओगे। किन्तु तुम मेरे पुत्र को उस देश में वापस मत ले जाना।”

इस प्रकार नौकर ने अपने मालिक की जांघों के नीचे अपना हाथ रखकर वचन दिया।

खोज आरम्भ होती है

10 नौकर ने इब्राहीम के दस ऊँट लिए और उस जगह से वह चला गया। नौकर कई प्रकार की सुन्दर भेंटें अपने साथ ले गया। वह नाहोर के नगर मेसोपोटामिया को गया। 11 वह नगर के बाहर के कुएँ पर ग्या। यह बात शाम को हुई जब स्त्रियाँ पानी भरने के लिए बाहर आती हैं। नौकर ने वहीं ऊँटों को घुटनों के बल बिठाया।

12 नौकर ने कहा, “हे यहोवा, तू मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर है। आज तू उसके पुत्र के लिए मुझे एक दुल्हन प्राप्त करा। कृप्या मेरे स्वामी इब्राहीम पर यह दया कर। 13 मैं यहाँ इस जल के कुएँ के पास खड़ा हूँ और पानी भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रहीं हैं। 14 मैं एक विशेष चिन्ह की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिससे मैं जान सकूँ कि इसहाक के लिए कौन सी लड़की ठीक है। यह विशेष चिन्ह है: मैं लड़की से कहूँगा ‘कृपा कर आप घड़े को नीचे रखें जिससे मैं पानी पी सकूँ।’ मैं तब समझूँगा कि यह ठीक लड़की है जब वह कहेगी, ‘पीओ, और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी दूँगी।’ यदि ऐसा होगा तो तू प्रमाणित कर देगा कि इसहाक के लिए यह लड़की ठीक है। मैं समझूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर कृपा की है।”

एक दुल्हन मिली

15 तब नौकर की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक लड़की कुएँ पर आई। रिबका बतूएल की पुत्री थी। (बतूएल इब्राहीम के भाई नाहोर और मिल्का का पुत्र था।) रिबका अपने कंधे पर पानी का घड़ा लेकर कुएँ पर आई थी। 16 लड़की बहुत सुन्दर थी। वह कुँवारी थी। वह किसी पुरुष के साथ कभी नहीं सोई थी। वह अपना घड़ा भरने के लिए कुएँ पर आई। 17 तब नौकर उसके पास तक दौड़ कर गया और बोला, “कृप्या करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दें।”

18 रिबका ने जल्दी कंधे से घड़े को नीचे उतारा और उसे पानी पिलाया। रिबका ने कहा, “महोदय, यह पिएँ।” 19 ज्यों ही उसने पीने के लिए कुछ पानी देना खत्म किया, रिबका ने कहा, “मैं आपके ऊँटों को भी पानी दे सकती हूँ।” 20 इसलिए रिबका ने झट से घड़े का सारा पानी ऊँटों के लिए बनी नाद में उंड़ेल दिया। तब वह और पानी लाने के लिए कुएँ को दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को पानी पिलाया।

21 नौकर ने उसे चुप—चाप ध्यान से देखा। वह तय करना चाहता था कि यहोवा ने शायद बात मान ली है और उसकी यात्रा को सफल बना दिया है। 22 जब ऊँटों ने पानी पी लिया तब उसने रिबका को चौथाई औंस[a] तौल कर एक सोने की अँगूठी दी। उसने उसे दो बाजूबन्द भी दिए जो तौल में हर एक पाँच औंस[b] थे। 23 नौकर ने पूछा, “तुम्हारा पिता कौन है? क्या तुम्हारे पिता के घर में इतनी जगह है कि हम सब के रहने तथा सोने का प्रबन्ध हो सके?”

24 रिबका ने उत्तर दिया, “मेरे पिता बतूएल हैं जो मिल्का और नाहोर के पुत्र हैं।” 25 तब उसने कहा, “और हाँ हम लोगों के पास तुम्हारे ऊँटों के लिए चारा है और तुम्हारे लिए सोने की जगह है।”

26 नौकर ने सिर झुकाया और यहोवा की उपासना की। 27 नौकर ने कहा, “मेरे मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा की कृपा है। यहोवा हमारे मालिक पर दयालु है। यहोवा ने मुझे अपने मालिक के पुत्र के लिए सही दुल्हन[c] दी है।”

28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने परिवार को बताया। 29-30 रिबका का एक भाई था। उसका नाम लाबान था। रिबका ने उसे वे बातें बताईं जो उससे उस व्यक्ति ने की थीं। लाबान उसकी बातें सुन रहा था। जब लाबान ने अँगूठी और बहन की बाहों पर बाजूबन्द देखा तो वह दौड़कर कुएँ पर पहुँचा और वहाँ वह व्यक्ति कुएँ के पास, ऊँटों के बगल में खड़ा था। 31 लाबान ने कहा, “महोदय, आप पधारें आपका स्वागत है। आपको यहाँ बाहर खड़ा नहीं रहना है। मैंने आपके ऊँटों के लिए एक जगह बना दी है और आपके सोने के लिए एक कमरा ठीक कर दिया है।”

32 इसलिए इब्राहीम का नौकर घर में गया। लाबान ने ऊँटों और उस की मदद की और ऊँटों को खाने के लिए चारा दिया। तब लाबान ने पानी दिया जिससे वह व्यक्ति तथा उसके साथ आए हुए दूसरे नौकर अपने पैर धो सकें। 33 तब लाबान ने उसे खाने के लिए भोजन दिया। लेकिन नौकर ने भोजन करना मना किया। उसने कहा, “मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ कि मैं यहाँ किस लिए आया हूँ।”

इसलिए लाबान ने कहा, “तब हम लोगों को बताओ।”

रिबका इसहाक की पत्नी बनी

34 नौकर ने कहा, “मैं इब्राहीम का नौकर हूँ। 35 यहोवा ने हमारे मालिक पर हर एक विषय में कृपा की है। मेरे मालिक महान व्यक्ति हो गए हैं। यहोवा ने इब्राहीम को कई भेड़ों के रेवड़े तथा मबवेशियों के झुण्ड दिए हैं। इब्राहीम के पास बहुत सोना, चाँदी और नौकर हैं। इब्राहीम के पास बहुत से ऊँट और गधे हैं। 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया है। 37 मेरे स्वामी ने मुझे एक वचन देने के लिए विवश किया। मेरे मालिक ने मुझसे कहा, ‘तुम मेरे पुत्र को कनान की लड़की से किसी भी तरह विवाह नहीं करने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु मैं नहीं चाहता कि वह किसी कनानी लड़की से विवाह करे। 38 इसलिए तुम्हें वचन देना होगा कि तुम मेरे पिता के देश को जाओगे। मेरे परिवार में जाओ और मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन चुनो।’ 39 मैंने अपने मालिक से कहा, ‘यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश को न आए।’ 40 लेकिन मेरे मालिक ने कहा, ‘मैं यहोवा की सेवा करता हूँ और यहोवा तुम्हारे साथ अपना दूत भेजेगा और तुम्हारी मद्द करेगा। तुम्हें वहाँ मेरे अपने लोगों में मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन मिलेगी। 41 किन्तु यदि तुम मेरे पिता के देश को जाते हो और वे लोग मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन देने से मना करते हैं तो तुम्हें इस वचन से छुटकारा मिल जाएगा।’

42 “आज मैं इस कुएँ पर आया और मैंने कहा, ‘हे यहोवा मेरे मालिक के परमेश्वर कृपा करके मेरी यात्रा सफल बना। 43 मैं यहाँ कुएँ के पास ठहरूँगा और पानी भरने के लिए आने वाली किसी युवती की प्रतीक्षा करूँगा। तब मैं कहूँगा, “कृपा करके आप अपने घड़े से पीने के लिए पानी दें।” 44 उपयुक्त लड़की ही विशेष रूप से उत्तर देगी। वह कहेगी, “यह पानी पीओ और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी लाती हूँ।” इस तरह मैं जानूँगा कि यह वही स्त्री है जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के पुत्र के लिए चुना है।’”

45 “मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर पानी भरने आई। पानी का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने पानी भरा। मैंने इससे कहा, कृपा करके मुझे पानी दें। 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए पानी डाला और कहा, ‘यह पीएँ और मैं आपके ऊँटों के लिए भी पानी लाऊँगी।’ इसलिए मैंने पानी पीया और अपने ऊँटों को भी पानी पिलाया। 47 तब मैंने इससे पूछा, ‘तुम्हारे पिता कौन हैं?’ इसने उत्तर दिया, ‘मेरा पिता बतूएल है। मेरे पिता के माता—पिता मिल्का और नाहोर हैं।’ तब मैंने इसे अँगूठी और बाहों के लिए बाजूबन्द दिए। 48 उस समय मैंने अपना सिर झुकाया और यहोवा को धन्य कहा। मैंने अपने मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को कृपालु कहा। मैंने उसे धन्य कहा क्योंकि उसने सीधे मेरे मालिक के भाई की पोती तक मुझे पहुँचाया। 49 अब बताओ कि तुम क्या करोगे? क्या तुम मेरे मालिक पर दयालु और श्रद्धालु बनोगे और अपनी पुत्री उसे दोगे? या तुम अपनी पुत्री देना मना करोगे? मुझे बताओ, जिससे मैं यह समझ सकूँ कि मुझे क्या करना है।”

50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “हम लोग यह देखते हैं कि यह यहोवा की ओर से है। इसे हम टाल नहीं सकते। 51 रिबका तुम्हारी है। उसे लो और जाओ। अपने मालिक के पुत्र से इसे विवाह करने दो। यही है जिसे यहोवा चाहता है।”

52 इब्राहीम के नौकर ने यह सुना और वह यहोवा के सामने भूमि पर झुका। 53 तब उसने रिबका को वे भेंटे दी जो वह साथ लाया था। उसने रिबका को सोने और चाँदी के गहने और बहुत से सुन्दर कपड़े दिए। उसने, उसके भाई और उसकी माँ को कीमती भेंटें दीं। 54 नौकर और उसके साथ के व्यक्ति वहाँ ठहरे तथा खाया और पीया। वे वहाँ रात भर ठहरे। वे दूसरे दिन सवेरे उठे और बोले “अब हम अपने मालिक के पास जाएँगे।”

55 रिबका की माँ और भाई ने कहा, “रिबका को हम लोगों के पास कुछ दिन और ठहरने दो। उसे दस दिन तक हमारे साथ ठहरने दो। इसके बाद वह जा सकती है।”

56 लेकिन नौकर ने उनसे कहा, “मुझसे प्रतीक्षा न करवाएं। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। अब मुझे अपने मालिक के पास लौट जाने दें।”

57 रिबका के भाई और माँ ने कहा, “हम लोग रिबका को बुलाएंगे और उस से पूछेंगे कि वह क्या चाहती है?” 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे कहा, “क्या तुम इस व्यक्ति के साथ अभी जाना चाहती हो?”

रिबका ने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”

59 इसलिए उन्होंने रिबका को इब्राहीम के नौकर और उसके साथियों के साथ जाने दिया। रिबका की धाय भी उनके साथ गई। 60 जब वह जाने लगी तब वे रिबका से बोले,

“हमारी बहन, तुम लाखों लोगों की
    जननी बनो
और तुम्हारे वंशज अपने शत्रुओं को हराएं
    और उनके नगरों को ले लें।”

61 तब रिबका और धाय ऊँट पर चढ़ी और नौकर तथा उसके साथियों के पीछे चलने लगी। इस तरह नौकर ने रिबका को साथ लिया और घर को लौटने की यात्रा शुरू की।

62 इस समय इसहाक ने लहैरोई को छोड़ दिया था और नेगेव में रहने लगा था। 63 एक शाम इसहाक मैदान में विचरण[d] करने गया। इसहाक ने नज़र उठाई और बहुत दूर से ऊँटों को आते देखा।

64 रिबका ने नज़र डाली और इसहाक को देखा। तब वह ऊँट से कूद पड़ी। 65 उसने नौकर से पूछा, “हम लोगों से मिलने के लिए खेतों में टहलने वाला वह युवक कौन है?”

नौकर ने कहा, “यह मेरे मालिक का पुत्र है।” इसलिए रिबका ने अपने मुँह को पर्दे में छिपा लिया।

66 नौकर ने इसहाक को वे सभी बातें बताईं जो हो चुकी थीं। 67 तब इसहाक लड़की को अपनी माँ के तम्बू में ले आया। उसी दिन इसहाक ने रिबका से विवाह कर लिया। वह उससे बहुत प्रेम करता था। अतः उसे उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् भी सांत्वना मिली।

इब्राहीम का परिवार

25 इब्राहीम ने फिर विवाह किया। उसकी नई पत्नी का नाम कतूरा था। कतूरा ने जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक और शूह को जन्म दिया। योक्षान, शबा और ददान का पिता हुआ। ददान के वंशज अश्शूर और लुम्मी लोग थे। मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीद और एल्दा थे। ये सभी पुत्र इब्राहीम और कतूरा से पैदा हुए। 5-6 इब्राहीम ने मरने से पहले अपनी दासियों[e] के पुत्रों को कुछ भेंट दिया। इब्राहीम ने पुत्रों को पूर्व को भेजा। उसने इन्हें इसहाक से दूर भेजा। इसके बाद इब्राहीम ने अपनी सभी चीज़ें इसहाक को दे दीं।

इब्राहीम एक सौ पचहत्तर वर्ष की उम्र तक जीवित रहा। इब्राहीम धीरे—धीरे कमज़ोर पड़ता गया और भरे—पूरे जीवन के बाद चल बसा। उसने लम्बा भरपूर जीवन बिताया और फिर वह अपने पुरखों के साथ दफनाया गया। उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा सोहर के पुत्र एप्रोन के खेत में है। यह मम्रे के पूर्व में थी। 10 यह वही गुफा है जिसे इब्राहीम ने हित्ती लोगों से खरीदा था। इब्राहीम को उसकी पत्नी सारा के साथ दफनाया गया। 11 इब्राहीम के मरने के बाद परमेश्वर ने इसहाक पर कृपा की और इसहाक लहैरोई में रहता रहा।

12 इश्माएल के परिवार की यह सूची है। इश्माएल इब्राहीम और हाजिरा का पुत्र था। (हाजिरा सारा की मिस्री दासी थी।) 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबेल, मिबसाम, 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15 हदर, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए। 16 ये इश्माएल के पुत्रों के नाम थे। हर एक पुत्र के अपने पड़ाव थे जो छोटे नगर में बदल गए। ये बारह पुत्र अपने लोगों के साथ बारह राजकुमारों के समान थे। 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा। 18 इश्माएल के लोग हवीला से लेकर शूर के पास मिस्र की सीमा और उससे भी आगे अश्शूर के किनारे तक, घूमते रहे और अपने भाईयों और उनसे सम्बन्धित देशों में आक्रमण करते रहे।[f]

इसहाक का परिवार

19 यह इसहाक की कथा है। इब्राहीम का एक पुत्र इसहाक था। 20 जब इसहाक चालीस वर्ष का था तब उसने रिबका से विवाह किया। रिबका पद्दनराम की रहने वाली थी। वह अरामी बतूएल की पुत्री थी और लाबान की बहन थी। 21 इसहाक की पत्नी बच्चे नहीं जन सकी। इसलिए इसहाक ने यहोवा से अपनी पत्नी के लिए प्रार्थना की। यहोवा ने इसहाक की प्रार्थना सुनी और यहोवा ने रिबका को गर्भवती होने दिया।

22 जब रिबका गर्भवती थी तब वह अपने गर्भ के बच्चों से बहुत परेशान हुई, लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपट के एक दूसरे को मारने लगे। रिबका ने यहोवा से प्रार्थना की और बोली, “मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।” 23 यहोवा ने कहा,

“तुम्हारे गर्भ में दो राष्ट्र हैं।
    दो परिवारों के राजा तुम से पैदा होंगे
    और वे बँट जाएंगे।
एक पुत्र दूसरे से बलवान होगा।
    बड़ा पुत्र छोटे पुत्र की सेवा करेगा।”

24 और जब समय पूरा हुआ तो रिबका ने जुड़वे बच्चों को जन्म दिया। 25 पहला बच्चा लाल हुआ। उसकी त्वचा रोंएदार पोशाक की तरह थी। इसलिए उसका नाम एसाव पड़ा। 26 जब दूसरा बच्चा पैदा हुआ, वह एसाव की एड़ी को मज़बूती से पकड़े था। इसलिए उस बच्चे का नाम याकूब पड़ा। इसहाक की उम्र उस समय साठ वर्ष की थी। जब याकूब और एसाव पैदा हुए।

27 लड़के बड़े हुए। एसाव एक कुशल शिकारी हुआ। वह मैदानों में रहना पसन्द करने लगा। किन्तु याकूब शान्त व्यक्ति था। वह अपने तम्बू में रहता था। 28 इसहाक एसाव को प्यार करता था। वह उन जानवरों को खाना पसन्द करता था जो एसाव मारकर लाता था। किन्तु रिबका याकूब को प्यार करती थी।

29 एक बार एसाव शिकार से लौटा। वह थका हुआ और भूख से परेशान था। याकूब कुछ दाल[g] पका रहा था।

30 इसलिए एसाव ने याकूब से कहा, “मैं भूख से कमज़ोर हो रहा हूँ। तुम उस लाल दाल में से कुछ मुझे दो।” (यही कारण है कि लोग उसे एदोम कहते हैं।)

31 किन्तु याकूब ने कहा, “तुम्हें पहलौठा होने का अधिकार[h] मुझको आज बेचना होगा।”

32 एसाव ने कहा, “मैं भूख से मरा जा रहा हूँ। यदि मैं मर जाता हूँ तो मेरे पिता का सारा धन भी मेरी सहायता नहीं कर पाएगा। इसलिए तुमको मैं अपना हिस्सा दूँगा।”

33 किन्तु याकूब ने कहा, “पहले वचन दो कि तुम यह मुझे दोगे।” इसलिए एसाव ने याकूब को वचन दिया। एसाव ने अपने पिता के धन का अपना हिस्सा यकूब को बेच दिया। 34 तब याकूब ने एसाव को रोटी और भोजन दिया। एसाव ने खाया, पिया और तब चला गया। इस तरह एसाव ने यह दिखाया कि वह पहलौठे होने के अपने हक की परवाह नहीं करता।

इसहाक अबीमेलेक से झूठ बोलता है

26 एक बार अकाल[i] पड़ा। यह अकाल वैसा ही था जैसा इब्राहीम के समय में पड़ा था। इसलिए इसहाक गरार नगर में पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया। यहोवा ने इसहाक से बात की। यहोवा ने इसहाक से यह कहा, “मिस्र को न जाओ। उसी देश में रहो जिसमें रहने का आदेश मैंने तुम्हें दिया है। उसी देश में रहो और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को यह सारा प्रदेश दूँगा। मैं वही करूँगा जो मैंने तुम्हारे पिता इब्राहीम को वचन दिया है। मैं तुम्हारे परिवार को आकाश के तारागणों की तरह बहुत से बनाऊँगा और मैं सारा प्रदेश तुम्हारे परिवार को दूँगा। पृथ्वी के सभी राष्ट्र तुम्हारे परिवार के कारण मेरा आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। मैं यह इसलिए करूँगा कि तुम्हारे पिता इब्राहीम ने मेरी आज्ञा का पालन किया और मैंने जो कुछ कहा, उसने किया। इब्राहीम ने मेरे आदेशों, मेरी विधियों और मेरे नियमों का पालन किया।”

इसहाक ठहरा और गरार में रहा। इसहाक की पत्नी रिबका बहुत ही सुन्दर थी। उस जगह के लोगों ने इसहाक से रिबका के बारे में पूछा। इसहाक ने कहा, “यह मेरी बहन है।” इसहाक यह कहने से डर रहा था कि रिबका मेरी पत्नी है। इसहाक डरता था कि लोग उसकी पत्नी को पाने के लिए उसको मार डालेंगे।

जब इसहाक वहाँ बहुत समय तक रह चुका, अबीमेलेक ने अपनी खिड़की से बाहर झाँका और देखा कि इसहाक, रिबका के साथ छेड़खानी कर रहा है। अबीमेलेक ने इसहाक को बुलाया और कहा, “यह स्त्री तुम्हारी पत्नी है। तुमने हम लोगों से यह क्यों कहा कि यह मेरी बहन है।”

इसहाक ने उससे कहा, “मैं डरता था कि तुम उसे पाने के लिए मुझे मार डालोगे।”

10 अबीमेलेक ने कहा, “तुमने हम लोगों के लिए बुरा किया है। हम लोगों का कोई भी पुरुष तुम्हारी पत्नी के साथ सो सकता था। तब वह बड़े पाप का दोषी होता।”

11 इसलिए अबीमेलेक ने सभी लोगों को चेतावनी दी। उसने कहा, “इस पुरुष और इस स्त्री को कोई चोट नहीं पहुँचाएगा। यदि कोई इन्हें चोट पहुँचाएगा तो वह व्यक्ति जान से मार दिया जाएगा।”

इसहाक धनी बना

12 इसहाक ने उस भूमि पर खेती की और उस साल उसे बहुत फसल हुई। यहोवा ने उस पर बहुत अधिक कृपा की। 13 इसहाक धनी हो गया। वह अधिक से अधिक धन तब तक बटोरता रहा जब तक वह धनी नहीं हो गया। 14 उसके पास बहुत सी रेवड़े और मवेशियों के झुण्ड थे। उसके पास अनेक दास भी थे। सभी पलिश्ती उससे डाह रखते थे। 15 इसलिए इए पलिश्तियों ने उन सभी कुओं को नष्ट कर दिया जिन्हें इसहाक के पिता इब्राहीम और उसके साथियों ने वर्षों पहले खोदा था। पलिश्तीयों ने उन्हें मिट्टी से भर दिया। 16 और अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, “हमारा देश छोड़ दो। तुम हम लोगों से बहुत अधिक शक्तिशाली हो गए हो।”

17 इसलिए इसहाक ने वह जगह छोड़ दी और गरार की छोटी नदी के पास पड़ाव डाला। इसहाक वहीं ठहरा और वहीं रहा। 18 इसके बहुत पहले इब्राहीम ने कई कुएँ खोदे थे। जब इब्राहीम मरा तो पलिश्तीयों ने मिट्टी से कुओं को भर दिया। इसलिए वहीं इसहाक लौटा और उन कुओं को फिर खोद डाला। 19 इसहाक के नौकरों ने छोटी नदी के पास एक कुआँ खोदा। उस कुएँ से एक पानी का सोता फूट पड़ा। 20 तब गरार के गड़ेंरिए उस कुएँ की वजह से इसहाक के नौकरों से झगड़ा करने लगे। उन्होंने कहा, “यह पानी हमारा है।” इसलिए इसहाक ने उसका नाम एसेक रखा। उसने यह नाम इसलिए दिया कि उसी जगह पर उन लोगों ने उससे झगड़ा किया था।

21 तब इसहाक के नौकरों ने दूसरा कुआँ खोदा। वहाँ के लोगों ने उस कुएँ के लिए भी झगड़ा किया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम सित्रा रखा।

22 इसहाक वहाँ से हटा और दूसरा कुआँ खोदा। उस कुएँ के लिए झगड़ा करने कोई नहीं आया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम रहोबोत रखा। इसहाक ने कहा, “यहोवा ने यहाँ हमारे लिए जगह उपलब्ध कराई है। हम लोग बढ़ेंगे और इसी भूमि पर सफल होंगे।”

23 उस जगह से इसहाक बेर्शेबा को गया। 24 यहोवा उस रात इसहाक से बोला, “मैं तुम्हारे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूँ। डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को महान बनाऊँगा। मैं अपने सेवक इब्राहीम के कारण यह करूँगा।” 25 इसलिए इसहाक ने उस जगह यहोवा की उपासना के लिए एक वेदी बनाई। इसहाक ने वहाँ पड़ाव डाला और उसके नौकरों ने एक कुआँ खोदा।

26 अबीमेलेक गरार से इसहाक को देखने आया। अबीमेलेक अपने साथ सलाहकार अहुज्जत और सेनापति पीकोल को लाया।

27 इसहाक ने पूछा, “तुम मुझे देखने क्यों आए हो? तुम इसके पहले मेरे साथ मित्रता नहीं रखते थे। तुमने मुझे अपना देश छोड़ने को विवश किया।”

28 उन्होंने जवाब दिय, “अब हम लोग जानते हैं कि यहोवा तुम्हारे साथ है। हम चाहते हैं कि हम तुम्हारे साथ एक वाचा करें। हम चाहते हैं कि तुम हमें एक वचन दो। 29 हम लोगों ने तुम्हें चोट नहीं पहुँचाई, अब तुम्हें यह वचन देना चाहिए कि तुम हम लोगों को चोट नहीं पहुँचाओगे। हम लोगों ने तुमको भेजा। लेकिन हम लोगों ने तुम्हें शान्ति से भेजा। अब साफ है कि यहोवा ने तुम्हें आशीर्वाद दिया है।”

30 इसलिए इसहाक ने उन्हें दावत दी। सभी ने खाया और पीया। 31 दूसरे दिन सवेरे हर एक व्यक्ति ने वचन दिया और शपथ खाई। तब इसहाक ने उनको शान्ति से विदा किया और वे सकुशल उसके पास से चले आए।

32 उस दिन इसहाक के नौकर आए और उन्होंने अपने खोदे हुए कुएँ के बारे में बताया। नौकरों ने कहा, “हम लोगों ने उस कुएँ से पानी पिया।” 33 इसलिए इसहाक ने उसका नाम शिबा रखा और वह नगर अभी भी बेर्शेबा कहलाता है।

एसाव की पत्नियाँ

34 जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, उसने हित्ती स्त्रियों से विवाह किया। एक बेरी की पुत्री यहूदीत थी। दूसरी एलोन की पुत्री बाशमत थी। 35 इन विवाहों ने इसहाक और रिबका का मन दुःखी कर दिया।

वसीयत के झगड़े

27 जब इसहाक बूढ़ा हो गया तो उसकी आँखें अच्छी न रहीं। इसहाक साफ—साफ नहीं देख सकता था। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया। इसहाक ने कहा, “पुत्र।”

एसाव ने उत्तर दिया, “हाँ, पिताजी।”

इसहाक ने कहा, “देखो, मैं बूढ़ा हो गया। हो सकता है मैं जल्दी ही मर जाऊँ। अब तू अपना तरकश और धनुष लेकर, मेरे लिए शिकार पर जाओ। मेरे खाने के लिए एक जानवर मार लाओ। मेरा प्रिय भोजन बनाओ। उसे मेरे पास लाओ, और मैं इसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए एसाव शिकार करने गया।

रिबका ने वे बातें सुन ली थीं, जो इसहाक ने अपने पुत्र एसाव से कहीं। रिबका ने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुनो, मैंने तुम्हारे पिता को, तुम्हारे भाई से बातें करते सुना है। तुम्हारे पिता ने कहा, ‘मेरे खाने के लिए एक जानवर मारो। मेरे लिए भोजन बनाओ और मैं उसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुमको आशीर्वाद दूँगा।’ इसलिए पुत्र सुनो। मैं जो कहती हूँ, करो। अपनी बकरियों के बीच जाओ और दो नई बकरियाँ लाओ। मैं उन्हें वैसा बनाऊँगी जैसा तुम्हारे पिता को प्रिय है। 10 तब तुम वह भोजन अपने पिता के पास ले जाओगे और वह मरने से पहले तुमको ही आशीर्वाद देंगे।”

11 लेकिन याकूब ने अपनी माँ रिबका से कहा, “किन्तु मेरा भाई रोएदार है और मैं उसकी तरह रोएदार नहीं हूँ। 12 यदि मेरे पिता मुझको छूते हैं, यो जान जाएंगे कि मैं एसाव नहीं हूँ। तब वे मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे। वे मुझे शाप[j] देंगे क्योंकि मैंने उनके साथ चाल चलने का प्रयत्न किया।”

13 इस पर रिबका ने उससे कहा, “यदि कोई परेशानी होगी तो मैं अपना दोष मान लूँगी। जो मैं कहती हूँ करो। जाओ, और मेरे लिए बकरियाँ लाओ।”

14 इसलिए याकूब बाहर गया और उसने दो बकरियों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया। 15 तब रिबका ने उस पोशाक को उठाया जो उसका बड़ा पुत्र एसाव पहन्ना पसंद करता था। रिबका ने अपने छोटे पुत्र याकूब को वे कपड़े पहना दिए। 16 रिबका ने बकरियों के चमड़े को लिया और याकूब के हाथों और गले पर बांध दिया। 17 तब रिबका ने अपना पकाया भोजन उठाया और उसे याकूब को दिया।

18 याकूब पिता के पास गया और बोला, “पिताजी।”

और उसके पिता ने पूछा, “हाँ पुत्र, तुम कौन हो?”

19 याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं आपका बड़ा पुत्र एसाव हूँ। आपने जो कहा है, मैंने कर दिया है। अब आप बैठें और उन जानवरों को खाएं जिनका शिकार मैंने आपके लिए किया है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।”

20 लेकिन इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “तुमने इतनी जल्दी शिकार करके जानवरों को कैसे मारा है?”

याकूब ने उत्तर दिया, “क्योंकि आपके परमेश्वर यहोवा ने मुझे जल्दी ही जानवरों को प्राप्त करा दिया।”

21 तब इसहाक ने याकूब से कहा, “मेरे पुत्र मेरे पास आओ जिससे मैं तुम्हें छू सकूँ। यदि मैं तुम्हें छू सकूँगा तो मैं यह जान जाऊँगा कि तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव ही हो।”

22 याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, “तुम्हारी आवाज़ याकूब की आवाज़ जैसी है। लेकिन तुम्हारी बाहें एसाव की रोंएदार बाहों की तरह हैं।” 23 इसहाक यह नहीं जान पाया कि यह याकूब है क्योंकि उसकी बाहें एसाव की बाहों की तरह रोएंदार थीं। इसलिए इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया।

24 इसहाक ने कहा, “क्या सचमुच तुम मेरे पुत्र एसाव हो?”

याकूब ने उत्तर दिया, “हाँ, मैं हूँ।”

याकूब के लिए “आशीर्वाद”

25 तब इसहाक ने कहा, “भोजन लाओ। मैं इसे खाऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए याकूब ने उसे भोजन दिया और उसने खाया। याकूब ने उसे दाखमधु दी, और उसने उसे पिया।

26 तब इसहाक ने उससे कहा, “पुत्र, मेरे करीब आओ और मुझे चूमो।” 27 इसलिए याकूब अपने पिता के पास गया और उसे चूमा। इसहाक ने एसाव के कपड़ों की गन्ध पाई और उसको आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा,

“अहा, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा से वरदान पाए
    खेतों की सुगन्ध की तरह है।
28 यहोवा तुम्हें बहुत वर्षा दे।
    जिससे तुम्हें बहुत फसल और दाखमधु मिले।
29 सभी लोग तुम्हारी सेवा करें।
    राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें।
तुम अपने भाईयों के ऊपर शासक होगे।
    तुम्हारी माँ के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे और तुम्हारी आज्ञा मानेंगे।
हर एक व्यक्ति जो तुम्हें शाप देगा, शाप पाएगा
    और हर एक व्यक्ति जो तुम्हें आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।”

एसाव को “आशीर्वाद”

30 इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देना पूरा किया। तब ज्योंही याकूब अपने पिता इसहाक के पास से गया त्योंही एसाव शिकार करके अन्दर आया। 31 एसाव ने अपने पिता की पसंद का विशेष भोजन बनाया। एसाव इसे अपने पिता के पास लाया। उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, उठें और उस भोजन को खाएं जो आपके पुत्र ने आपके लिए मारा है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।”

32 किन्तु इसहाक ने उससे कहा, “तुम कौन हो?”

उसने उत्तर दिया, “मैं आपका पहलौठा पुत्र एसाव हूँ।”

33 तब इसहाक बहुत झल्ला गया और बोला, “तब तुम्हारे आने से पहले वह कौन था? जिसने भोजन पकाया और जो मेरे पास लाया। मैंने वह सब खाया और उसको आशीर्वाद दिया। अब अपने आशीर्वादों को लौटाने का समय निकल चुका है।”

34 एसाव ने अपने पिता की बात सुनी। उसका मन बहुत गुस्से और कड़वाहट से भर गया। वह चीखा। वह अपने पिता से बोला, “पिताजी, तब मुझे भी आशीर्वाद दें।”

35 इसहाक ने कहा, “तुम्हारे भाई ने मुझे धोखा दिया। वह आया और तुम्हारा आशीर्वाद लेकर गया।”

36 एसाव ने कहा, “उसका नाम ही याकूब (चालबाज़) है। यह नाम उसके लिए ठीक ही है। उसका यह नाम बिल्कुल सही रखा गया है वह सचमुच में चालबाज़ है। उसने मुझे दो बार धोखा दिया। वह पहलौठा होने के मेरे अधिकार को ले ही चुका था और अब उसने मेरे हिस्से के आशीर्वाद को भी ले लिया। क्या आपने मेरे लिए कोई आशीर्वाद बचा रखा है?”

37 इसहाक ने जवाब दिया, “नहीं, अब बहुत देर हो गई। मैंने याकूब को तुम्हारे ऊपर शासन करने का अधिकार दे दिया है। मैंने यह भी कह दिया कि सभी भाई उसके सेवक होंगे। मैंने उसे बहुत अधिक अन्न और दाखमधु का आशीर्वाद दिया है। पुत्र तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है।”

38 किन्तु एसाव अपने पिता से माँगता रहा। “पिताजी, क्या आपके पास एक भी आशीर्वाद नहीं है? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दें।” यूँ एसाव रोने लगा।

39 तब इसहाक ने उससे कहा,

“तुम अच्छी भूमि पर नहीं रहोगे।
    तुम्हारे पास बहुत अन्न नहीं होगा।
40 तुम्हें जीने के लिए संघर्ष करना होगा।
    और तुम अपने भाई के दास होगे।
किन्तु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे,
    और उसके शासन से आज़ाद हो जाओगे।”

41 इसके बाद इस आशीर्वाद के कारण एसाव याकूब से घृणा करता रहा। एसाव ने मन ही मन सोचा, “मेरा पिता जल्दी ही मरेगा और मैं उसका शोक मनाऊँगा। लेकिन उसके बाद मैं याकूब को मार डालूँगा।”

42 रिबका ने एसाव द्वारा याकूब को मारने का षड़यन्त्र सुना। उसने याकूब को बुलाया और उससे कहा, “सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षडयन्त्र कर रहा है। 43 इसलिए पुत्र जो मैं कहती हूँ, करो। मेरा भाई लाबान हारान में रहता है। उसके पास जाओ और छिपे रहो। 44 उसके पास थोड़े समय तक ही रहो जब तक तुम्हारे भाई का गुस्सा नहीं उतरता। 45 थोड़े समय बाद तुम्हारा भाई भूल जाएगा कि तुमने उसके साथ क्या किया? तब मैं तुम्हें लौटाने के लिए एक नौकर को भेजूँगी। मैं एक ही दिन दोनों पुत्रों को खोना नहीं चाहती।”

46 तब रिबका ने इसहाक से कहा, “तुम्हारे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। मैं इन स्त्रियों से परेशान हूँ क्योंकि ये हमारे लोगों में से नहीं हैं। यदि याकूब भी इन्हीं स्त्रियों में से किसी के साथ विवाह करता है तो मैं मर जाना चाहूँगी।”

Footnotes

  1. 24:22 चौथाई औंस शाब्दिक, “एक बेक।”
  2. 24:22 पाँच औंस शाब्दिक, “पाँच माप।”
  3. 24:27 सही दुल्हन शाब्दिक, “मेरे मालिक के भाई के घर।”
  4. 24:63 विचरण इस शब्द का अर्थ, “प्रार्थना करना” या “टहलना” है।
  5. 25:5-6 दासियों शाब्दिक, “रखैल” दास स्त्रियाँ जो उसके लिये पत्नियाँ थीं।
  6. 25:18 अपने भाईयों … रहे देखें उत्पत्ति 16:12
  7. 25:29 दाल या “अरहर।”
  8. 25:31 पहलौठा … अधिकार पिता के मरने के बाद पिता की अधिक से अधिक सम्पत्ति पहलौठे पुत्र को प्राय: मिलती थी और बड़ा पुत्र ही परिवार का नया संरक्षक होता था।
  9. 26:1 अकाल वह समय जब बहुत समय तक वर्षा न हो और कोई फसल न उग सके। आमतौर पर आदमी और जानवर पर्याप्त खाना और पानी न मिलने से मर जाते हैं।
  10. 27:12 शाप यह माँगना कि किसी का बुरा हो।

इसहाक के लिए पत्नी

24 इब्राहीम बहुत बुढ़ापे तक जीवित रहा। यहोवा ने इब्राहीम को आशीर्वाद दिया और उसके हर काम में उसे सफलता प्रदान की। इब्राहीम का एक बहुत पुराना नौकर था जो इब्राहीम का जो कुछ था उसका प्रबन्धक था। इब्राहीम ने उस नौकर को बुलाया और कहा, “अपने हाथ मेरी जांघों के नीचे रखो। अब मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे एक वचन दो। धरती और आकाश के परमेश्वर यहोवा के सामने तुम वचन दो कि तुम कनान की किसी लड़की से मेरे पुत्र का विवाह नहीं होने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु एक कनानी लड़की से उसे विवाह न करने दो। तुम मेरे देश और मेरे अपने लोगों में लौटकर जाओ। वहाँ मेरे पुत्र इसहाक के लिए एक दुल्हन खोजो। तब उसे यहाँ उसके पास लाओ।”

नौकर ने उससे कहा, “यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश में लौटना न चाहे। तब, क्या मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारी जन्मभूमि को ले जाऊँ?”

इब्राहीम ने उससे कहा, “नहीं, तुम हमारे पुत्र को उस देश में न ले जाओ। यहोवा, स्वर्ग का परमेश्वर मुझे मेरी जन्मभूमि से यहाँ लाया। वह देश मेरे पिता और मेरे परिवार का घर था। किन्तु यहोवा ने यह वचन दिया कि वह नया प्रदेश मेरे परिवार वालों का होगा। यहोवा अपना एक दूत तुम्हारे सामने भेजे जिससे तुम मेरे पुत्र के लिए दुल्हन चुन सको। किन्तु यदि लड़की तुम्हारे साथ आना मना करे तो तुम अपने वचन से छुटकारा पा जाओगे। किन्तु तुम मेरे पुत्र को उस देश में वापस मत ले जाना।”

इस प्रकार नौकर ने अपने मालिक की जांघों के नीचे अपना हाथ रखकर वचन दिया।

खोज आरम्भ होती है

10 नौकर ने इब्राहीम के दस ऊँट लिए और उस जगह से वह चला गया। नौकर कई प्रकार की सुन्दर भेंटें अपने साथ ले गया। वह नाहोर के नगर मेसोपोटामिया को गया। 11 वह नगर के बाहर के कुएँ पर ग्या। यह बात शाम को हुई जब स्त्रियाँ पानी भरने के लिए बाहर आती हैं। नौकर ने वहीं ऊँटों को घुटनों के बल बिठाया।

12 नौकर ने कहा, “हे यहोवा, तू मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर है। आज तू उसके पुत्र के लिए मुझे एक दुल्हन प्राप्त करा। कृप्या मेरे स्वामी इब्राहीम पर यह दया कर। 13 मैं यहाँ इस जल के कुएँ के पास खड़ा हूँ और पानी भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रहीं हैं। 14 मैं एक विशेष चिन्ह की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिससे मैं जान सकूँ कि इसहाक के लिए कौन सी लड़की ठीक है। यह विशेष चिन्ह है: मैं लड़की से कहूँगा ‘कृपा कर आप घड़े को नीचे रखें जिससे मैं पानी पी सकूँ।’ मैं तब समझूँगा कि यह ठीक लड़की है जब वह कहेगी, ‘पीओ, और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी दूँगी।’ यदि ऐसा होगा तो तू प्रमाणित कर देगा कि इसहाक के लिए यह लड़की ठीक है। मैं समझूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर कृपा की है।”

एक दुल्हन मिली

15 तब नौकर की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक लड़की कुएँ पर आई। रिबका बतूएल की पुत्री थी। (बतूएल इब्राहीम के भाई नाहोर और मिल्का का पुत्र था।) रिबका अपने कंधे पर पानी का घड़ा लेकर कुएँ पर आई थी। 16 लड़की बहुत सुन्दर थी। वह कुँवारी थी। वह किसी पुरुष के साथ कभी नहीं सोई थी। वह अपना घड़ा भरने के लिए कुएँ पर आई। 17 तब नौकर उसके पास तक दौड़ कर गया और बोला, “कृप्या करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दें।”

18 रिबका ने जल्दी कंधे से घड़े को नीचे उतारा और उसे पानी पिलाया। रिबका ने कहा, “महोदय, यह पिएँ।” 19 ज्यों ही उसने पीने के लिए कुछ पानी देना खत्म किया, रिबका ने कहा, “मैं आपके ऊँटों को भी पानी दे सकती हूँ।” 20 इसलिए रिबका ने झट से घड़े का सारा पानी ऊँटों के लिए बनी नाद में उंड़ेल दिया। तब वह और पानी लाने के लिए कुएँ को दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को पानी पिलाया।

21 नौकर ने उसे चुप—चाप ध्यान से देखा। वह तय करना चाहता था कि यहोवा ने शायद बात मान ली है और उसकी यात्रा को सफल बना दिया है। 22 जब ऊँटों ने पानी पी लिया तब उसने रिबका को चौथाई औंस[a] तौल कर एक सोने की अँगूठी दी। उसने उसे दो बाजूबन्द भी दिए जो तौल में हर एक पाँच औंस[b] थे। 23 नौकर ने पूछा, “तुम्हारा पिता कौन है? क्या तुम्हारे पिता के घर में इतनी जगह है कि हम सब के रहने तथा सोने का प्रबन्ध हो सके?”

24 रिबका ने उत्तर दिया, “मेरे पिता बतूएल हैं जो मिल्का और नाहोर के पुत्र हैं।” 25 तब उसने कहा, “और हाँ हम लोगों के पास तुम्हारे ऊँटों के लिए चारा है और तुम्हारे लिए सोने की जगह है।”

26 नौकर ने सिर झुकाया और यहोवा की उपासना की। 27 नौकर ने कहा, “मेरे मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा की कृपा है। यहोवा हमारे मालिक पर दयालु है। यहोवा ने मुझे अपने मालिक के पुत्र के लिए सही दुल्हन[c] दी है।”

28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने परिवार को बताया। 29-30 रिबका का एक भाई था। उसका नाम लाबान था। रिबका ने उसे वे बातें बताईं जो उससे उस व्यक्ति ने की थीं। लाबान उसकी बातें सुन रहा था। जब लाबान ने अँगूठी और बहन की बाहों पर बाजूबन्द देखा तो वह दौड़कर कुएँ पर पहुँचा और वहाँ वह व्यक्ति कुएँ के पास, ऊँटों के बगल में खड़ा था। 31 लाबान ने कहा, “महोदय, आप पधारें आपका स्वागत है। आपको यहाँ बाहर खड़ा नहीं रहना है। मैंने आपके ऊँटों के लिए एक जगह बना दी है और आपके सोने के लिए एक कमरा ठीक कर दिया है।”

32 इसलिए इब्राहीम का नौकर घर में गया। लाबान ने ऊँटों और उस की मदद की और ऊँटों को खाने के लिए चारा दिया। तब लाबान ने पानी दिया जिससे वह व्यक्ति तथा उसके साथ आए हुए दूसरे नौकर अपने पैर धो सकें। 33 तब लाबान ने उसे खाने के लिए भोजन दिया। लेकिन नौकर ने भोजन करना मना किया। उसने कहा, “मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ कि मैं यहाँ किस लिए आया हूँ।”

इसलिए लाबान ने कहा, “तब हम लोगों को बताओ।”

रिबका इसहाक की पत्नी बनी

34 नौकर ने कहा, “मैं इब्राहीम का नौकर हूँ। 35 यहोवा ने हमारे मालिक पर हर एक विषय में कृपा की है। मेरे मालिक महान व्यक्ति हो गए हैं। यहोवा ने इब्राहीम को कई भेड़ों के रेवड़े तथा मबवेशियों के झुण्ड दिए हैं। इब्राहीम के पास बहुत सोना, चाँदी और नौकर हैं। इब्राहीम के पास बहुत से ऊँट और गधे हैं। 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया है। 37 मेरे स्वामी ने मुझे एक वचन देने के लिए विवश किया। मेरे मालिक ने मुझसे कहा, ‘तुम मेरे पुत्र को कनान की लड़की से किसी भी तरह विवाह नहीं करने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु मैं नहीं चाहता कि वह किसी कनानी लड़की से विवाह करे। 38 इसलिए तुम्हें वचन देना होगा कि तुम मेरे पिता के देश को जाओगे। मेरे परिवार में जाओ और मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन चुनो।’ 39 मैंने अपने मालिक से कहा, ‘यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश को न आए।’ 40 लेकिन मेरे मालिक ने कहा, ‘मैं यहोवा की सेवा करता हूँ और यहोवा तुम्हारे साथ अपना दूत भेजेगा और तुम्हारी मद्द करेगा। तुम्हें वहाँ मेरे अपने लोगों में मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन मिलेगी। 41 किन्तु यदि तुम मेरे पिता के देश को जाते हो और वे लोग मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन देने से मना करते हैं तो तुम्हें इस वचन से छुटकारा मिल जाएगा।’

42 “आज मैं इस कुएँ पर आया और मैंने कहा, ‘हे यहोवा मेरे मालिक के परमेश्वर कृपा करके मेरी यात्रा सफल बना। 43 मैं यहाँ कुएँ के पास ठहरूँगा और पानी भरने के लिए आने वाली किसी युवती की प्रतीक्षा करूँगा। तब मैं कहूँगा, “कृपा करके आप अपने घड़े से पीने के लिए पानी दें।” 44 उपयुक्त लड़की ही विशेष रूप से उत्तर देगी। वह कहेगी, “यह पानी पीओ और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी लाती हूँ।” इस तरह मैं जानूँगा कि यह वही स्त्री है जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के पुत्र के लिए चुना है।’”

45 “मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर पानी भरने आई। पानी का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने पानी भरा। मैंने इससे कहा, कृपा करके मुझे पानी दें। 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए पानी डाला और कहा, ‘यह पीएँ और मैं आपके ऊँटों के लिए भी पानी लाऊँगी।’ इसलिए मैंने पानी पीया और अपने ऊँटों को भी पानी पिलाया। 47 तब मैंने इससे पूछा, ‘तुम्हारे पिता कौन हैं?’ इसने उत्तर दिया, ‘मेरा पिता बतूएल है। मेरे पिता के माता—पिता मिल्का और नाहोर हैं।’ तब मैंने इसे अँगूठी और बाहों के लिए बाजूबन्द दिए। 48 उस समय मैंने अपना सिर झुकाया और यहोवा को धन्य कहा। मैंने अपने मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को कृपालु कहा। मैंने उसे धन्य कहा क्योंकि उसने सीधे मेरे मालिक के भाई की पोती तक मुझे पहुँचाया। 49 अब बताओ कि तुम क्या करोगे? क्या तुम मेरे मालिक पर दयालु और श्रद्धालु बनोगे और अपनी पुत्री उसे दोगे? या तुम अपनी पुत्री देना मना करोगे? मुझे बताओ, जिससे मैं यह समझ सकूँ कि मुझे क्या करना है।”

50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “हम लोग यह देखते हैं कि यह यहोवा की ओर से है। इसे हम टाल नहीं सकते। 51 रिबका तुम्हारी है। उसे लो और जाओ। अपने मालिक के पुत्र से इसे विवाह करने दो। यही है जिसे यहोवा चाहता है।”

52 इब्राहीम के नौकर ने यह सुना और वह यहोवा के सामने भूमि पर झुका। 53 तब उसने रिबका को वे भेंटे दी जो वह साथ लाया था। उसने रिबका को सोने और चाँदी के गहने और बहुत से सुन्दर कपड़े दिए। उसने, उसके भाई और उसकी माँ को कीमती भेंटें दीं। 54 नौकर और उसके साथ के व्यक्ति वहाँ ठहरे तथा खाया और पीया। वे वहाँ रात भर ठहरे। वे दूसरे दिन सवेरे उठे और बोले “अब हम अपने मालिक के पास जाएँगे।”

55 रिबका की माँ और भाई ने कहा, “रिबका को हम लोगों के पास कुछ दिन और ठहरने दो। उसे दस दिन तक हमारे साथ ठहरने दो। इसके बाद वह जा सकती है।”

56 लेकिन नौकर ने उनसे कहा, “मुझसे प्रतीक्षा न करवाएं। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। अब मुझे अपने मालिक के पास लौट जाने दें।”

57 रिबका के भाई और माँ ने कहा, “हम लोग रिबका को बुलाएंगे और उस से पूछेंगे कि वह क्या चाहती है?” 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे कहा, “क्या तुम इस व्यक्ति के साथ अभी जाना चाहती हो?”

रिबका ने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”

59 इसलिए उन्होंने रिबका को इब्राहीम के नौकर और उसके साथियों के साथ जाने दिया। रिबका की धाय भी उनके साथ गई। 60 जब वह जाने लगी तब वे रिबका से बोले,

“हमारी बहन, तुम लाखों लोगों की
    जननी बनो
और तुम्हारे वंशज अपने शत्रुओं को हराएं
    और उनके नगरों को ले लें।”

61 तब रिबका और धाय ऊँट पर चढ़ी और नौकर तथा उसके साथियों के पीछे चलने लगी। इस तरह नौकर ने रिबका को साथ लिया और घर को लौटने की यात्रा शुरू की।

62 इस समय इसहाक ने लहैरोई को छोड़ दिया था और नेगेव में रहने लगा था। 63 एक शाम इसहाक मैदान में विचरण[d] करने गया। इसहाक ने नज़र उठाई और बहुत दूर से ऊँटों को आते देखा।

64 रिबका ने नज़र डाली और इसहाक को देखा। तब वह ऊँट से कूद पड़ी। 65 उसने नौकर से पूछा, “हम लोगों से मिलने के लिए खेतों में टहलने वाला वह युवक कौन है?”

नौकर ने कहा, “यह मेरे मालिक का पुत्र है।” इसलिए रिबका ने अपने मुँह को पर्दे में छिपा लिया।

66 नौकर ने इसहाक को वे सभी बातें बताईं जो हो चुकी थीं। 67 तब इसहाक लड़की को अपनी माँ के तम्बू में ले आया। उसी दिन इसहाक ने रिबका से विवाह कर लिया। वह उससे बहुत प्रेम करता था। अतः उसे उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् भी सांत्वना मिली।

इब्राहीम का परिवार

25 इब्राहीम ने फिर विवाह किया। उसकी नई पत्नी का नाम कतूरा था। कतूरा ने जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक और शूह को जन्म दिया। योक्षान, शबा और ददान का पिता हुआ। ददान के वंशज अश्शूर और लुम्मी लोग थे। मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीद और एल्दा थे। ये सभी पुत्र इब्राहीम और कतूरा से पैदा हुए। 5-6 इब्राहीम ने मरने से पहले अपनी दासियों[e] के पुत्रों को कुछ भेंट दिया। इब्राहीम ने पुत्रों को पूर्व को भेजा। उसने इन्हें इसहाक से दूर भेजा। इसके बाद इब्राहीम ने अपनी सभी चीज़ें इसहाक को दे दीं।

इब्राहीम एक सौ पचहत्तर वर्ष की उम्र तक जीवित रहा। इब्राहीम धीरे—धीरे कमज़ोर पड़ता गया और भरे—पूरे जीवन के बाद चल बसा। उसने लम्बा भरपूर जीवन बिताया और फिर वह अपने पुरखों के साथ दफनाया गया। उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा सोहर के पुत्र एप्रोन के खेत में है। यह मम्रे के पूर्व में थी। 10 यह वही गुफा है जिसे इब्राहीम ने हित्ती लोगों से खरीदा था। इब्राहीम को उसकी पत्नी सारा के साथ दफनाया गया। 11 इब्राहीम के मरने के बाद परमेश्वर ने इसहाक पर कृपा की और इसहाक लहैरोई में रहता रहा।

12 इश्माएल के परिवार की यह सूची है। इश्माएल इब्राहीम और हाजिरा का पुत्र था। (हाजिरा सारा की मिस्री दासी थी।) 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबेल, मिबसाम, 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15 हदर, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए। 16 ये इश्माएल के पुत्रों के नाम थे। हर एक पुत्र के अपने पड़ाव थे जो छोटे नगर में बदल गए। ये बारह पुत्र अपने लोगों के साथ बारह राजकुमारों के समान थे। 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा। 18 इश्माएल के लोग हवीला से लेकर शूर के पास मिस्र की सीमा और उससे भी आगे अश्शूर के किनारे तक, घूमते रहे और अपने भाईयों और उनसे सम्बन्धित देशों में आक्रमण करते रहे।[f]

इसहाक का परिवार

19 यह इसहाक की कथा है। इब्राहीम का एक पुत्र इसहाक था। 20 जब इसहाक चालीस वर्ष का था तब उसने रिबका से विवाह किया। रिबका पद्दनराम की रहने वाली थी। वह अरामी बतूएल की पुत्री थी और लाबान की बहन थी। 21 इसहाक की पत्नी बच्चे नहीं जन सकी। इसलिए इसहाक ने यहोवा से अपनी पत्नी के लिए प्रार्थना की। यहोवा ने इसहाक की प्रार्थना सुनी और यहोवा ने रिबका को गर्भवती होने दिया।

22 जब रिबका गर्भवती थी तब वह अपने गर्भ के बच्चों से बहुत परेशान हुई, लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपट के एक दूसरे को मारने लगे। रिबका ने यहोवा से प्रार्थना की और बोली, “मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।” 23 यहोवा ने कहा,

“तुम्हारे गर्भ में दो राष्ट्र हैं।
    दो परिवारों के राजा तुम से पैदा होंगे
    और वे बँट जाएंगे।
एक पुत्र दूसरे से बलवान होगा।
    बड़ा पुत्र छोटे पुत्र की सेवा करेगा।”

24 और जब समय पूरा हुआ तो रिबका ने जुड़वे बच्चों को जन्म दिया। 25 पहला बच्चा लाल हुआ। उसकी त्वचा रोंएदार पोशाक की तरह थी। इसलिए उसका नाम एसाव पड़ा। 26 जब दूसरा बच्चा पैदा हुआ, वह एसाव की एड़ी को मज़बूती से पकड़े था। इसलिए उस बच्चे का नाम याकूब पड़ा। इसहाक की उम्र उस समय साठ वर्ष की थी। जब याकूब और एसाव पैदा हुए।

27 लड़के बड़े हुए। एसाव एक कुशल शिकारी हुआ। वह मैदानों में रहना पसन्द करने लगा। किन्तु याकूब शान्त व्यक्ति था। वह अपने तम्बू में रहता था। 28 इसहाक एसाव को प्यार करता था। वह उन जानवरों को खाना पसन्द करता था जो एसाव मारकर लाता था। किन्तु रिबका याकूब को प्यार करती थी।

29 एक बार एसाव शिकार से लौटा। वह थका हुआ और भूख से परेशान था। याकूब कुछ दाल[g] पका रहा था।

30 इसलिए एसाव ने याकूब से कहा, “मैं भूख से कमज़ोर हो रहा हूँ। तुम उस लाल दाल में से कुछ मुझे दो।” (यही कारण है कि लोग उसे एदोम कहते हैं।)

31 किन्तु याकूब ने कहा, “तुम्हें पहलौठा होने का अधिकार[h] मुझको आज बेचना होगा।”

32 एसाव ने कहा, “मैं भूख से मरा जा रहा हूँ। यदि मैं मर जाता हूँ तो मेरे पिता का सारा धन भी मेरी सहायता नहीं कर पाएगा। इसलिए तुमको मैं अपना हिस्सा दूँगा।”

33 किन्तु याकूब ने कहा, “पहले वचन दो कि तुम यह मुझे दोगे।” इसलिए एसाव ने याकूब को वचन दिया। एसाव ने अपने पिता के धन का अपना हिस्सा यकूब को बेच दिया। 34 तब याकूब ने एसाव को रोटी और भोजन दिया। एसाव ने खाया, पिया और तब चला गया। इस तरह एसाव ने यह दिखाया कि वह पहलौठे होने के अपने हक की परवाह नहीं करता।

Footnotes

  1. 24:22 चौथाई औंस शाब्दिक, “एक बेक।”
  2. 24:22 पाँच औंस शाब्दिक, “पाँच माप।”
  3. 24:27 सही दुल्हन शाब्दिक, “मेरे मालिक के भाई के घर।”
  4. 24:63 विचरण इस शब्द का अर्थ, “प्रार्थना करना” या “टहलना” है।
  5. 25:5-6 दासियों शाब्दिक, “रखैल” दास स्त्रियाँ जो उसके लिये पत्नियाँ थीं।
  6. 25:18 अपने भाईयों … रहे देखें उत्पत्ति 16:12
  7. 25:29 दाल या “अरहर।”
  8. 25:31 पहलौठा … अधिकार पिता के मरने के बाद पिता की अधिक से अधिक सम्पत्ति पहलौठे पुत्र को प्राय: मिलती थी और बड़ा पुत्र ही परिवार का नया संरक्षक होता था।

इसहाक के लिए पत्नी

24 इब्राहीम बहुत बुढ़ापे तक जीवित रहा। यहोवा ने इब्राहीम को आशीर्वाद दिया और उसके हर काम में उसे सफलता प्रदान की। इब्राहीम का एक बहुत पुराना नौकर था जो इब्राहीम का जो कुछ था उसका प्रबन्धक था। इब्राहीम ने उस नौकर को बुलाया और कहा, “अपने हाथ मेरी जांघों के नीचे रखो। अब मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे एक वचन दो। धरती और आकाश के परमेश्वर यहोवा के सामने तुम वचन दो कि तुम कनान की किसी लड़की से मेरे पुत्र का विवाह नहीं होने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु एक कनानी लड़की से उसे विवाह न करने दो। तुम मेरे देश और मेरे अपने लोगों में लौटकर जाओ। वहाँ मेरे पुत्र इसहाक के लिए एक दुल्हन खोजो। तब उसे यहाँ उसके पास लाओ।”

नौकर ने उससे कहा, “यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश में लौटना न चाहे। तब, क्या मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारी जन्मभूमि को ले जाऊँ?”

इब्राहीम ने उससे कहा, “नहीं, तुम हमारे पुत्र को उस देश में न ले जाओ। यहोवा, स्वर्ग का परमेश्वर मुझे मेरी जन्मभूमि से यहाँ लाया। वह देश मेरे पिता और मेरे परिवार का घर था। किन्तु यहोवा ने यह वचन दिया कि वह नया प्रदेश मेरे परिवार वालों का होगा। यहोवा अपना एक दूत तुम्हारे सामने भेजे जिससे तुम मेरे पुत्र के लिए दुल्हन चुन सको। किन्तु यदि लड़की तुम्हारे साथ आना मना करे तो तुम अपने वचन से छुटकारा पा जाओगे। किन्तु तुम मेरे पुत्र को उस देश में वापस मत ले जाना।”

इस प्रकार नौकर ने अपने मालिक की जांघों के नीचे अपना हाथ रखकर वचन दिया।

खोज आरम्भ होती है

10 नौकर ने इब्राहीम के दस ऊँट लिए और उस जगह से वह चला गया। नौकर कई प्रकार की सुन्दर भेंटें अपने साथ ले गया। वह नाहोर के नगर मेसोपोटामिया को गया। 11 वह नगर के बाहर के कुएँ पर ग्या। यह बात शाम को हुई जब स्त्रियाँ पानी भरने के लिए बाहर आती हैं। नौकर ने वहीं ऊँटों को घुटनों के बल बिठाया।

12 नौकर ने कहा, “हे यहोवा, तू मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर है। आज तू उसके पुत्र के लिए मुझे एक दुल्हन प्राप्त करा। कृप्या मेरे स्वामी इब्राहीम पर यह दया कर। 13 मैं यहाँ इस जल के कुएँ के पास खड़ा हूँ और पानी भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रहीं हैं। 14 मैं एक विशेष चिन्ह की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिससे मैं जान सकूँ कि इसहाक के लिए कौन सी लड़की ठीक है। यह विशेष चिन्ह है: मैं लड़की से कहूँगा ‘कृपा कर आप घड़े को नीचे रखें जिससे मैं पानी पी सकूँ।’ मैं तब समझूँगा कि यह ठीक लड़की है जब वह कहेगी, ‘पीओ, और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी दूँगी।’ यदि ऐसा होगा तो तू प्रमाणित कर देगा कि इसहाक के लिए यह लड़की ठीक है। मैं समझूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर कृपा की है।”

एक दुल्हन मिली

15 तब नौकर की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक लड़की कुएँ पर आई। रिबका बतूएल की पुत्री थी। (बतूएल इब्राहीम के भाई नाहोर और मिल्का का पुत्र था।) रिबका अपने कंधे पर पानी का घड़ा लेकर कुएँ पर आई थी। 16 लड़की बहुत सुन्दर थी। वह कुँवारी थी। वह किसी पुरुष के साथ कभी नहीं सोई थी। वह अपना घड़ा भरने के लिए कुएँ पर आई। 17 तब नौकर उसके पास तक दौड़ कर गया और बोला, “कृप्या करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दें।”

18 रिबका ने जल्दी कंधे से घड़े को नीचे उतारा और उसे पानी पिलाया। रिबका ने कहा, “महोदय, यह पिएँ।” 19 ज्यों ही उसने पीने के लिए कुछ पानी देना खत्म किया, रिबका ने कहा, “मैं आपके ऊँटों को भी पानी दे सकती हूँ।” 20 इसलिए रिबका ने झट से घड़े का सारा पानी ऊँटों के लिए बनी नाद में उंड़ेल दिया। तब वह और पानी लाने के लिए कुएँ को दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को पानी पिलाया।

21 नौकर ने उसे चुप—चाप ध्यान से देखा। वह तय करना चाहता था कि यहोवा ने शायद बात मान ली है और उसकी यात्रा को सफल बना दिया है। 22 जब ऊँटों ने पानी पी लिया तब उसने रिबका को चौथाई औंस[a] तौल कर एक सोने की अँगूठी दी। उसने उसे दो बाजूबन्द भी दिए जो तौल में हर एक पाँच औंस[b] थे। 23 नौकर ने पूछा, “तुम्हारा पिता कौन है? क्या तुम्हारे पिता के घर में इतनी जगह है कि हम सब के रहने तथा सोने का प्रबन्ध हो सके?”

24 रिबका ने उत्तर दिया, “मेरे पिता बतूएल हैं जो मिल्का और नाहोर के पुत्र हैं।” 25 तब उसने कहा, “और हाँ हम लोगों के पास तुम्हारे ऊँटों के लिए चारा है और तुम्हारे लिए सोने की जगह है।”

26 नौकर ने सिर झुकाया और यहोवा की उपासना की। 27 नौकर ने कहा, “मेरे मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा की कृपा है। यहोवा हमारे मालिक पर दयालु है। यहोवा ने मुझे अपने मालिक के पुत्र के लिए सही दुल्हन[c] दी है।”

28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने परिवार को बताया। 29-30 रिबका का एक भाई था। उसका नाम लाबान था। रिबका ने उसे वे बातें बताईं जो उससे उस व्यक्ति ने की थीं। लाबान उसकी बातें सुन रहा था। जब लाबान ने अँगूठी और बहन की बाहों पर बाजूबन्द देखा तो वह दौड़कर कुएँ पर पहुँचा और वहाँ वह व्यक्ति कुएँ के पास, ऊँटों के बगल में खड़ा था। 31 लाबान ने कहा, “महोदय, आप पधारें आपका स्वागत है। आपको यहाँ बाहर खड़ा नहीं रहना है। मैंने आपके ऊँटों के लिए एक जगह बना दी है और आपके सोने के लिए एक कमरा ठीक कर दिया है।”

32 इसलिए इब्राहीम का नौकर घर में गया। लाबान ने ऊँटों और उस की मदद की और ऊँटों को खाने के लिए चारा दिया। तब लाबान ने पानी दिया जिससे वह व्यक्ति तथा उसके साथ आए हुए दूसरे नौकर अपने पैर धो सकें। 33 तब लाबान ने उसे खाने के लिए भोजन दिया। लेकिन नौकर ने भोजन करना मना किया। उसने कहा, “मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ कि मैं यहाँ किस लिए आया हूँ।”

इसलिए लाबान ने कहा, “तब हम लोगों को बताओ।”

रिबका इसहाक की पत्नी बनी

34 नौकर ने कहा, “मैं इब्राहीम का नौकर हूँ। 35 यहोवा ने हमारे मालिक पर हर एक विषय में कृपा की है। मेरे मालिक महान व्यक्ति हो गए हैं। यहोवा ने इब्राहीम को कई भेड़ों के रेवड़े तथा मबवेशियों के झुण्ड दिए हैं। इब्राहीम के पास बहुत सोना, चाँदी और नौकर हैं। इब्राहीम के पास बहुत से ऊँट और गधे हैं। 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया है। 37 मेरे स्वामी ने मुझे एक वचन देने के लिए विवश किया। मेरे मालिक ने मुझसे कहा, ‘तुम मेरे पुत्र को कनान की लड़की से किसी भी तरह विवाह नहीं करने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु मैं नहीं चाहता कि वह किसी कनानी लड़की से विवाह करे। 38 इसलिए तुम्हें वचन देना होगा कि तुम मेरे पिता के देश को जाओगे। मेरे परिवार में जाओ और मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन चुनो।’ 39 मैंने अपने मालिक से कहा, ‘यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश को न आए।’ 40 लेकिन मेरे मालिक ने कहा, ‘मैं यहोवा की सेवा करता हूँ और यहोवा तुम्हारे साथ अपना दूत भेजेगा और तुम्हारी मद्द करेगा। तुम्हें वहाँ मेरे अपने लोगों में मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन मिलेगी। 41 किन्तु यदि तुम मेरे पिता के देश को जाते हो और वे लोग मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन देने से मना करते हैं तो तुम्हें इस वचन से छुटकारा मिल जाएगा।’

42 “आज मैं इस कुएँ पर आया और मैंने कहा, ‘हे यहोवा मेरे मालिक के परमेश्वर कृपा करके मेरी यात्रा सफल बना। 43 मैं यहाँ कुएँ के पास ठहरूँगा और पानी भरने के लिए आने वाली किसी युवती की प्रतीक्षा करूँगा। तब मैं कहूँगा, “कृपा करके आप अपने घड़े से पीने के लिए पानी दें।” 44 उपयुक्त लड़की ही विशेष रूप से उत्तर देगी। वह कहेगी, “यह पानी पीओ और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी लाती हूँ।” इस तरह मैं जानूँगा कि यह वही स्त्री है जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के पुत्र के लिए चुना है।’”

45 “मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर पानी भरने आई। पानी का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने पानी भरा। मैंने इससे कहा, कृपा करके मुझे पानी दें। 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए पानी डाला और कहा, ‘यह पीएँ और मैं आपके ऊँटों के लिए भी पानी लाऊँगी।’ इसलिए मैंने पानी पीया और अपने ऊँटों को भी पानी पिलाया। 47 तब मैंने इससे पूछा, ‘तुम्हारे पिता कौन हैं?’ इसने उत्तर दिया, ‘मेरा पिता बतूएल है। मेरे पिता के माता—पिता मिल्का और नाहोर हैं।’ तब मैंने इसे अँगूठी और बाहों के लिए बाजूबन्द दिए। 48 उस समय मैंने अपना सिर झुकाया और यहोवा को धन्य कहा। मैंने अपने मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को कृपालु कहा। मैंने उसे धन्य कहा क्योंकि उसने सीधे मेरे मालिक के भाई की पोती तक मुझे पहुँचाया। 49 अब बताओ कि तुम क्या करोगे? क्या तुम मेरे मालिक पर दयालु और श्रद्धालु बनोगे और अपनी पुत्री उसे दोगे? या तुम अपनी पुत्री देना मना करोगे? मुझे बताओ, जिससे मैं यह समझ सकूँ कि मुझे क्या करना है।”

50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “हम लोग यह देखते हैं कि यह यहोवा की ओर से है। इसे हम टाल नहीं सकते। 51 रिबका तुम्हारी है। उसे लो और जाओ। अपने मालिक के पुत्र से इसे विवाह करने दो। यही है जिसे यहोवा चाहता है।”

52 इब्राहीम के नौकर ने यह सुना और वह यहोवा के सामने भूमि पर झुका। 53 तब उसने रिबका को वे भेंटे दी जो वह साथ लाया था। उसने रिबका को सोने और चाँदी के गहने और बहुत से सुन्दर कपड़े दिए। उसने, उसके भाई और उसकी माँ को कीमती भेंटें दीं। 54 नौकर और उसके साथ के व्यक्ति वहाँ ठहरे तथा खाया और पीया। वे वहाँ रात भर ठहरे। वे दूसरे दिन सवेरे उठे और बोले “अब हम अपने मालिक के पास जाएँगे।”

55 रिबका की माँ और भाई ने कहा, “रिबका को हम लोगों के पास कुछ दिन और ठहरने दो। उसे दस दिन तक हमारे साथ ठहरने दो। इसके बाद वह जा सकती है।”

56 लेकिन नौकर ने उनसे कहा, “मुझसे प्रतीक्षा न करवाएं। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। अब मुझे अपने मालिक के पास लौट जाने दें।”

57 रिबका के भाई और माँ ने कहा, “हम लोग रिबका को बुलाएंगे और उस से पूछेंगे कि वह क्या चाहती है?” 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे कहा, “क्या तुम इस व्यक्ति के साथ अभी जाना चाहती हो?”

रिबका ने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”

59 इसलिए उन्होंने रिबका को इब्राहीम के नौकर और उसके साथियों के साथ जाने दिया। रिबका की धाय भी उनके साथ गई। 60 जब वह जाने लगी तब वे रिबका से बोले,

“हमारी बहन, तुम लाखों लोगों की
    जननी बनो
और तुम्हारे वंशज अपने शत्रुओं को हराएं
    और उनके नगरों को ले लें।”

61 तब रिबका और धाय ऊँट पर चढ़ी और नौकर तथा उसके साथियों के पीछे चलने लगी। इस तरह नौकर ने रिबका को साथ लिया और घर को लौटने की यात्रा शुरू की।

62 इस समय इसहाक ने लहैरोई को छोड़ दिया था और नेगेव में रहने लगा था। 63 एक शाम इसहाक मैदान में विचरण[d] करने गया। इसहाक ने नज़र उठाई और बहुत दूर से ऊँटों को आते देखा।

64 रिबका ने नज़र डाली और इसहाक को देखा। तब वह ऊँट से कूद पड़ी। 65 उसने नौकर से पूछा, “हम लोगों से मिलने के लिए खेतों में टहलने वाला वह युवक कौन है?”

नौकर ने कहा, “यह मेरे मालिक का पुत्र है।” इसलिए रिबका ने अपने मुँह को पर्दे में छिपा लिया।

66 नौकर ने इसहाक को वे सभी बातें बताईं जो हो चुकी थीं। 67 तब इसहाक लड़की को अपनी माँ के तम्बू में ले आया। उसी दिन इसहाक ने रिबका से विवाह कर लिया। वह उससे बहुत प्रेम करता था। अतः उसे उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् भी सांत्वना मिली।

Footnotes

  1. 24:22 चौथाई औंस शाब्दिक, “एक बेक।”
  2. 24:22 पाँच औंस शाब्दिक, “पाँच माप।”
  3. 24:27 सही दुल्हन शाब्दिक, “मेरे मालिक के भाई के घर।”
  4. 24:63 विचरण इस शब्द का अर्थ, “प्रार्थना करना” या “टहलना” है।