अय्यूब 38-41
Hindi Bible: Easy-to-Read Version
38 फिर यहोवा ने तूफान में से अय्यूब को उत्तर दिया। परमेश्वर ने कहा:
2 “यह कौन व्यक्ति है
जो मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा है?”
3 अय्यूब, तुम पुरुष की भाँति सुदृढ़ बनों।
जो प्रश्न मैं पूछूँ उसका उत्तर देने को तैयार हो जाओ।
4 अय्यूब, बताओ तुम कहाँ थे, जब मैंने पृथ्वी की रचना की थी?
यदि तू इतना समझदार है तो मुझे उत्तर दे।
5 अय्यूब, इस संसार का विस्तार किसने निश्चित किया था?
किसने संसार को नापने के फीते से नापा?
6 इस पृथ्वी की नींव किस पर रखी गई है?
किसने पृथ्वी की नींव के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्थर को रखा है?
7 जब ऐसा किया था तब भोर के तारों ने मिलकर गया
और स्वर्गदूत ने प्रसन्न होकर जयजयकार किया।
8 “अय्यूब, जब सागर धरती के गर्भ से फूट पड़ा था,
तो किसने उसे रोकने के लिये द्वार को बन्द किया था।
9 उस समय मैंने बादलों से समुद्र को ढक दिया
और अन्धकार में सागर को लपेट दिया था (जैसे बालक को चादर में लपेटा जाता है।)
10 सागर की सीमाऐं मैंने निश्चित की थीं
और उसे ताले लगे द्वारों के पीछे रख दिया था।
11 मैंने सागर से कहा, ‘तू यहाँ तक आ सकता है किन्तु और अधिक आगे नहीं।
तेरी अभिमानी लहरें यहाँ तक रुक जायेंगी।’
12 “अय्यूब, क्या तूने कभी अपनी जीवन में भोर को आज्ञा दी है
उग आने और दिन को आरम्भ करने की?
13 अय्यूब, क्या तूने कभी प्रात: के प्रकाश को धरती पर छा जाने को कहा है
और क्या कभी उससे दुष्टों के छिपने के स्थान को छोड़ने के लिये विवश करने को कहा है
14 प्रात: का प्रकाश पहाड़ों
व घाटियों को देखने लायक बना देता है।
जब दिन का प्रकाश धरती पर आता है
तो उन वस्तुओं के रूप वस्त्र की सलवटों की तरह उभर कर आते हैं।
वे स्थान रूप को नम मिट्टी की तरह
जो दबोई गई मुहर की ग्रहण करते हैं।
15 दुष्ट लोगों को दिन का प्रकाश अच्छा नहीं लगता
क्योंकि जब वह चमचमाता है, तब वह उनको बुरे काम करने से रोकता है।
16 “अय्यूब, बता क्या तू कभी सागर के गहरे तल में गया है?
जहाँ से सागर शुरु होता है क्या तू कभी सागर के तल पर चला है?
17 अय्यूब, क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा है, जो मृत्यु लोक को ले जाते हैं?
क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा जो उस मृत्यु के अन्धेरे स्थान को ले जाते हैं?
18 अय्यूब, तू जानता है कि यह धरती कितनी बड़ी है?
यदि तू ये सब कुछ जानता है, तो तू मुझकों बता दे।
19 “अय्यूब, प्रकाश कहाँ से आता है?
और अन्धकार कहाँ से आता है?
20 अय्यूब, क्या तू प्रकाश और अन्धकार को ऐसी जगह ले जा सकता है जहाँ से वे आये है? जहाँ वे रहते हैं।
वहाँ पर जाने का मार्ग क्या तू जानता है?
21 अय्यूब, मुझे निश्चय है कि तुझे सारी बातें मालूम हैं? क्योंकि तू बहुत ही बूढ़ा और बुद्धिमान है।
जब वस्तुऐं रची गई थी तब तू वहाँ था।
22 “अय्यूब, क्या तू कभी उन कोठियारों में गया हैं?
जहाँ मैं हिम और ओलों को रखा करता हूँ?
23 मैं हिम और ओलों को विपदा के काल
और युद्ध लड़ाई के समय के लिये बचाये रखता हूँ।
24 अय्यूब, क्या तू कभी ऐसी जगह गया है, जहाँ से सूरज उगता है
और जहाँ से पुरवाई सारी धरती पर छा जाने के लिये आती है?
25 अय्यूब, भारी वर्षा के लिये आकाश में किसने नहर खोदी है,
और किसने भीषण तूफान का मार्ग बनाया है?
26 अय्यूब, किसने वहाँ भी जल बरसाया, जहाँ कोई भी नहीं रहता है?
27 वह वर्षा उस खाली भूमि के बहुतायत से जल देता है
और घास उगनी शुरु हो जाती है।
28 अय्यूब, क्या वर्षा का कोई पिता है?
ओस की बूँदे कहाँ से आती हैं?
29 अय्यूब, हिम की माता कौन है?
आकाश से पाले को कौन उत्पन्न करता है?
30 पानी जमकर चट्टान सा कठोर बन जाता है,
और सागर की ऊपरी सतह जम जाया करती है।
31 “अय्यूब, सप्तर्षि तारों को क्या तू बाँध सकता है?
क्या तू मृगशिरा का बन्धन खोल सकता है?
32 अय्यूब, क्या तू तारा समूहों को उचित समय पर उगा सकता है,
अथवा क्या तू भालू तारा समूह की उसके बच्चों के साथ अगुवाई कर सकता है?
33 अय्यूब क्या तू उन नियमों को जानता है, जो नभ का शासन करते हैं?
क्या तू उन नियमों को धरती पर लागू कर सकता है?
34 “अय्यूब, क्या तू पुकार कर मेघों को आदेश दे सकता है,
कि वे तुझको भारी वर्षा के साथ घेर ले।
35 अय्यूब बता, क्या तू बिजली को
जहाँ चाहता वहाँ भेज सकता है?
और क्या तेरे निकट आकर बिजली कहेगी, “अय्यूब, हम यहाँ है बता तू क्या चाहता है?”
36 “मनुष्य के मन में विवेक को कौन रखता है,
और बुद्धि को कौन समझदारी दिया करता है?
37 अय्यूब, कौन इतना बलवान है जो बादलों को गिन ले
और उनको वर्षा बरसाने से रोक दे?
38 वर्षा धूल को कीचड़ बना देती है
और मिट्टी के लौंदे आपस में चिपक जाते हैं।
39 “अय्यूब, क्या तू सिंहनी का भोजन पा सकता है?
क्या तू भूखे युवा सिंह का पेट भर सकता है?
40 वे अपनी खोहों में पड़े रहते हैं
अथवा झाड़ियों में छिप कर अपने शिकार पर हमला करने के लिये बैठते हैं।
41 अय्यूब, कौवे के बच्चे परमेश्वर की दुहाई देते हैं,
और भोजन को पाये बिना वे इधर—उधर घूमतें रहते हैं, तब उन्हें भोजन कौन देता है?
39 “अय्यूब, क्या तू जानता है कि पहाड़ी बकरी कब ब्याती हैं?
क्या तूने कभी देखा जब हिरणी ब्याती है?
2 अय्यूब, क्या तू जानता है पहाड़ी बकरियाँ और माता हरिणियाँ कितने महीने अपने बच्चे को गर्भ में रखती हैं?
क्या तूझे पता है कि उनका ब्याने का उचित समय क्या है?
3 वे लेट जाती हैं और बच्चों को जन्म देती है,
तब उनकी पीड़ा समाप्त हो जाती है।
4 पहाड़ी बकरियों और हरिणी माँ के बच्चे खेतों में हृष्ट—पुष्ट हो जाते हैं।
फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं, और फिर लौट कर वापस नहीं आते।
5 “अय्यूब, जंगली गधों को कौन आजाद छोड़ देता है?
किसने उसके रस्से खोले और उनको बन्धन मुक्त किया?
6 यह मैं (यहोवा) हूँ जिसने बनैले गधे को घर के रूप में मरुभूमि दिया।
मैंने उनको रहने के लिये रेही धरती दी।
7 बनैला गधा शोर भरे नगरों के पास नहीं जाता है
और कोई भी व्यक्ति उसे काम करवाने के लिये नहीं साधता है।
8 बनैले गधे पहाड़ों में घूमते हैं
और वे वहीं घास चरा करते हैं।
वे वहीं पर हरी घास चरने को ढूँढते रहते हैं।
9 “अय्यूब, बता, क्या कोई जंगली सांड़ तेरी सेवा के लिये राजी होगा?
क्या वह तेरे खलिहान में रात को रुकेगा?
10 अय्यूब, क्या तू जंगली सांड़ को रस्से से बाँध कर
अपना खेत जुता सकता है? क्या घाटी में तेरे लिये वह पटेला करेगा?
11 अय्यूब, क्या तू किसी जंगली सांड़ के भरोसे रह सकता है?
क्या तू उसकी शक्ति से अपनी सेवा लेने की अपेक्षा रखता है?
12 क्या तू उसके भरोसे है कि वह तेरा अनाज इकट्ठा
तेरे और उसे तेरे खलिहान में ले जाये?
13 “शुतुरमुर्ग जब प्रसन्न होता है वह अपने पंख फड़फड़ाता है किन्तु शुतुरमुर्ग उड़ नहीं सकता।
उस के पैर और पंख सारस के जैसे नहीं होते।
14 शुतुरमुर्ग धरती पर अण्डे देती है,
और वे रेत में सेये जाते हैं।
15 किन्तु शुतुरमुर्ग भूल जाता है कि कोई उसके अण्डों पर से चल कर उन्हें कुचल सकता है,
अथवा कोई बनैला पशु उनको तोड़ सकता है।
16 शुतुरमुर्ग अपने ही बच्चों पर निर्दयता दिखाता है
जैसे वे उसके बच्चे नहीं है।
यदि उसके बच्चे मर भी जाये तो भी उसको उसकी चिन्ता नहीं है।
17 ऐसा क्यों? क्योंकि मैंने (परमेश्वर) उस शुतुरमुर्ग को विवेक नहीं दिया था।
शुतुरमुर्ग मूर्ख होता है, मैंने ही उसे ऐसा बनाया है।
18 किन्तु जब शुतुरमुर्ग दौड़ने को उठती है तब वह घोड़े और उसके सवार पर हँसती है,
क्योंकि वह घोड़े से अधिक तेज भाग सकती है।
19 “अय्यूब, बता क्या तूने घोड़े को बल दिया
और क्या तूने ही घोड़े की गर्दन पर अयाल जमाया है?
20 अय्यूब, बता जैसे टिड्डी कूद जाती है क्या तूने वैसा घोड़े को कुदाया है?
घोड़ा घोर स्वर में हिनहिनाता है और लोग डर जाते हैं।
21 घोड़ा प्रसन्न है कि वह बहुत बलशाली है
और अपने खुर से वह धरती को खोदा करता है। युद्ध में जाता हुआ घोड़ा तेज दौड़ता है।
22 घोड़ा डर की हँसी उड़ाता है क्योंकि वह कभी नहीं डरता।
घोड़ा कभी भी युद्ध से मुख नहीं मोड़ता है।
23 घोड़े की बगल में तरकस थिरका करते हैं।
उसके सवार के भाले और हथियार धूप में चमचमाया करते हैं।
24 घोड़ा बहुत उत्तेजित है, मैदान पर वह तीव्र गति से दौड़ता है।
घोड़ा जब बिगुल की आवाज सुनता है तब वह शान्त खड़ा नहीं रह सकता।
25 जब बिगुल की ध्वनि होती है घोड़ा कहा करता है “अहा!”
वह बहुत ही दूर से युद्ध को सूँघ लेता हैं।
वह सेना के नायकों के घोष भरे आदेश और युद्ध के अन्य सभी शब्द सुन लेता है।
26 “अय्यूब, क्या तूने बाज को सिखाया अपने पंखो को फैलाना और दक्षिण की ओर उड़ जाना?
27 अय्यूब, क्या तू उकाब को उड़ने की
और ऊँचे पहाड़ों में अपना घोंसला बनाने की आज्ञा देता है?
28 उकाब चट्टान पर रहा करता है।
उसका किला चट्टान हुआ करती है।
29 उकाब किले से अपने शिकार पर दृष्टि रखता है।
वह बहुत दूर से अपने शिकार को देख लेता है।
30 उकाब के बच्चे लहू चाटा करते हैं
और वे मरी हुई लाशों के पास इकट्ठे होते हैं।”
40 यहोवा ने अय्यूब से कहा:
2 “अय्यूब तूने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से तर्क किया।
तूने बुरे काम करने का मुझे दोषी ठहराया।
अब तू मुझको उत्तर दे।”
3 इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए परमेश्वर से कहा:
4 “मैं तो कुछ कहने के लिये बहुत ही तुच्छ हूँ।
मैं तुझसे क्या कह सकता हूँ?
मैं तुझे कोई उत्तर नहीं दे सकता।
मैं अपना हाथ अपने मुख पर रख लूँगा।
5 मैंने एक बार कहा किन्तु अब मैं उत्तर नहीं दूँगा।
फिर मैंने दोबारा कहा किन्तु अब और कुछ नहीं बोलूँगा।”
6 इसके बाद यहोवा ने आँधी में बोलते हुए अय्यूब से कहा:
7 अय्यूब, तू पुरुष की तरह खड़ा हो,
मैं तुझ से कुछ प्रश्न पूछूँगा और तू उन प्रश्नों का उत्तर मुझे देगा।
8 अय्यूब क्या तू सोचता है कि मैं न्यायपूर्ण नहीं हूँ?
क्या तू मुझे बुरा काम करने का दोषी मानता है ताकि तू यह दिखा सके कि तू उचित है?
9 अय्यूब, बता क्या मेरे शस्त्र इतने शक्तिशाली हैं जितने कि मेरे शस्त्र हैं?
क्या तू अपनी वाणी को उतना ऊँचा गरजा सकता है जितनी मेरी वाणी है?
10 यदि तू वैसा कर सकता है तो तू स्वयं को आदर और महिमा दे
तथा महिमा और उज्वलता को उसी प्रकार धारण कर जैसे कोई वस्त्र धारण करता है।
11 अय्यूब, यदि तू मेरे समान है, तो अभिमानी लोगों से घृणा कर।
अय्यूब, तू उन अहंकारी लोगों पर अपना क्रोध बरसा और उन्हें तू विनम्र बना दे।
12 हाँ, अय्यूब उन अहंकारी लोगों को देख और तू उन्हें विनम्र बना दे।
उन दुष्टों को तू कुचल दे जहाँ भी वे खड़े हों।
13 तू सभी अभिमानियों को मिट्टी में गाड़ दे
और उनकी देहों पर कफन लपेट कर तू उनको उनकी कब्रों में रख दे।
14 अय्यूब, यदि तू इन सब बातों को कर सकता है
तो मैं यह तेरे सामने स्वीकार करूँगा कि तू स्वयं को बचा सकता है।
15 “अय्यूब, देख तू, उस जलगज को
मैंने (परमेश्वर) ने बनाया है और मैंने ही तुझे बनाया है।
जलगज उसी प्रकार घास खाती है, जैसे गाय घास खाती है।
16 जलगज के शरीर में बहुत शक्ति होती है।
उसके पेट की माँसपेशियाँ बहुत शक्तिशाली होती हैं।
17 जलगज की पूँछ दृढ़ता से ऐसी रहती है जैसा देवदार का वृक्ष खड़ा रहता है।
उसके पैर की माँसपेशियाँ बहुत सुदृढ़ होती हैं।
18 जलगज की हड्डियाँ काँसे की भाँति सुदृढ़ होती है,
और पाँव उसके लोहे की छड़ों जैसे।
19 जलगज पहला पशु है जिसे मैंने (परमेश्वर) बनाया है
किन्तु मैं उस को हरा सकता हूँ।
20 जलगज जो भोजन करता है उसे उसको वे पहाड़ देते हैं
जहाँ बनैले पशु विचरते हैं।
21 जलगज कमल के पौधे के नीचे पड़ा रहता है
और कीचड़ में सरकण्ड़ों की आड़ में छिपा रहता है।
22 कमल के पौधे जलगज को अपनी छाया में छिपाते है।
वह बाँस के पेड़ों के तले रहता हैं, जो नदी के पास उगा करते है।
23 यदि नदी में बाढ़ आ जाये तो भी जल गज भागता नहीं है।
यदि यरदन नदी भी उसके मुख पर थपेड़े मारे तो भी वह डरता नहीं है।
24 जल गज की आँखों को कोई नहीं फोड़ सकता है
और उसे कोई भी जाल में नहीं फँसा सकता।
41 “अय्यूब, बता, क्या तू लिब्यातान (सागर के दैत्य) को
किसी मछली के काँटे से पकड़ सकता है?
2 अय्यूब, क्या तू लिब्यातान की नाक में नकेल डाल सकता है?
अथवा उसके जबड़ों में काँटा फँसा सकता है?
3 अय्यूब, क्या लिब्यातान आजाद होने के लिये तुझसे विनती करेगा
क्या वह तुझसे मधुर बातें करेगा?
4 अय्यूब, क्या लिब्यातान तुझसे सन्धि करेगा,
और सदा तेरी सेवा का तुझे वचन देगा?
5 अय्यूब, क्या तू लिब्यातान से वैसे ही खेलेगा जैसे तू किसी चिड़ियाँ से खेलता है?
क्या तू उसे रस्से से बांधेगा जिससे तेरी दासियाँ उससे खेल सकें?
6 अय्यूब, क्या मछुवारे लिब्यातान को तुझसे खरीदने का प्रयास करेंगे?
क्या वे उसको काटेंगे और उन्हें व्यापारियों के हाथ बेच सकेंगे?
7 अय्यूब, क्या तू लिब्यातान की खाल में और माथे पर भाले फेंक सकता है?
8 “अय्यूब, लिब्यातान पर यदि तू हाथ डाले तो जो भयंकर युद्ध होगा, तू कभी भी भूल नहीं पायेगा,
और फिर तू उससे कभी युद्ध न करेगा।
9 और यदि तू सोचता है कि तू लिब्यातान को हरा देगा
तो इस बात को तू भूल जा।
क्योंकि इसकी कोई आशा नहीं है।
तू तो बस उसे देखने भर से ही डर जायेगा।
10 कोई भी इतना वीर नहीं है,
जो लिब्यातान को जगा कर भड़काये।
“तो फिर अय्यूब बता, मेरे विरोध में कौन टिक सकता है?
11 मुझ को (परमेश्वर को) किसी भी व्यक्ति कुछ नहीं देना है।
सारे आकाश के नीचे जो कुछ भी है, वह सब कुछ मेरा ही है।
12 “अय्यूब, मैं तुझको लिब्यातान के पैरों के विषय में बताऊँगा।
मैं उसकी शक्ति और उसके रूप की शोभा के बारे में बताऊँगा।
13 कोई भी व्यक्ति उसकी खाल को भेद नहीं सकता।
उसकी खाल दुहरा कवच के समान हैं।
14 लिब्यातान को कोई भी व्यक्ति मुख खोलने के लिये विवश नहीं कर सकता है।
उसके जबड़े के दाँत सभी को भयभीत करते हैं।
15 लिब्यातान की पीठ पर ढालों की पंक्तियाँ होती है,
जो आपस में कड़ी छाप से जुड़े होते हैं।
16 ये ढ़ाले आपस में इतनी सटी होती हैं
कि हवा तक उनमें प्रवेश नहीं कर पाती है।
17 ये ढाले एक दूसरे से जुड़ी होती हैं।
वे इतनी मजबूती से एक दूसरे से जुडी हुई है कि कोई भी उनको उखाड़ कर अलग नहीं कर सकता।
18 लिब्यातान जब छींका करता है तो ऐसा लगता है जैसे बिजली सी कौंध गई हो।
आँखे उसकी ऐसी चमकती है जैसे कोई तीव्र प्रकाश हो।
19 उसके मुख से जलती हुई मशालें निकलती है
और उससे आग की चिंगारियाँ बिखरती हैं।
20 लिब्यातान के नथुनों से धुआँ ऐसा निकलता है,
जैसे उबलती हुई हाँडी से भाप निकलता हो।
21 लिब्यातान की फूँक से कोपले सुलग उठते हैं
और उसके मुख से डर कर दूर भाग जाया करते हैं।
22 लिब्यातान की शक्ति उसके गर्दन में रहती हैं,
और लोग उससे डर कर दूर भाग जाया करते हैं।
23 उसकी खाल में कही भी कोमल जगह नहीं है।
वह धातु की तरह कठोर हैं।
24 लिब्यातान का हृदय चट्टान की तरह होता है, उसको भय नहीं है।
वह चक्की के नीचे के पाट सा सुदृढ़ है।
25 लिब्यातान जागता है, बली लोग डर जाते हैं।
लिब्यातान जब पूँछ फटकारता है, तो वे लोग भाग जाते हैं।
26 लिब्यातान पर जैसे ही भाले, तीर और तलवार पड़ते है
वे उछल कर दूर हो जाते है।
27 लोहे की मोटी छड़े वह तिनसे सा
और काँसे को सड़ी लकड़ी सा तोड़ देता है।
28 बाण लिब्यातान को नहीं भगा पाते हैं,
उस पर फेंकी गई चट्टाने सूखे तिनके की भाँति हैं।
29 लिब्यातान पर जब मुगदर पड़ता है तो उसे ऐसा लगता है मानों वह कोई तिनका हो।
जब लोग उस पर भाले फेंकते हैं, तब वह हँसा करता है।
30 लिब्यातान की देह के नीचे की खाल टूटे हुऐ बर्तन के कठोर व पैने टुकड़े सा है।
वह जब चलता है तो कीचड़ में ऐसे छोड़ता है। मानों खलिहान में पाटा लगाया गया हो।
31 लिब्यातान पानी को यूँ मथता है, मानों कोई हँड़ियाँ उबलती हो।
वह ऐसे बुलबुले बनाता है मानों पात्र में उबलता हुआ तेल हो।
32 लिब्यातान जब सागर में तैरता है तो अपने पीछे वह सफेद झागों जैसी राह छोड़ता है,
जैसे कोई श्वेत बालों की विशाल पूँछ हो।
33 लिब्यातान सा कोई और जन्तु धरती पर नहीं है।
वह ऐसा पशु है जिसे निर्भय बनाया गया।
34 वह अत्याधिक गर्वीले पशुओं तक को घृणा से देखता है।
सभी जंगली पशुओं का वह राजा हैं।
मैंने (यहोवा) लिब्यातान को बनाया है।”
अय्यूब 38-41
Hindi Bible: Easy-to-Read Version
38 फिर यहोवा ने तूफान में से अय्यूब को उत्तर दिया। परमेश्वर ने कहा:
2 “यह कौन व्यक्ति है
जो मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा है?”
3 अय्यूब, तुम पुरुष की भाँति सुदृढ़ बनों।
जो प्रश्न मैं पूछूँ उसका उत्तर देने को तैयार हो जाओ।
4 अय्यूब, बताओ तुम कहाँ थे, जब मैंने पृथ्वी की रचना की थी?
यदि तू इतना समझदार है तो मुझे उत्तर दे।
5 अय्यूब, इस संसार का विस्तार किसने निश्चित किया था?
किसने संसार को नापने के फीते से नापा?
6 इस पृथ्वी की नींव किस पर रखी गई है?
किसने पृथ्वी की नींव के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्थर को रखा है?
7 जब ऐसा किया था तब भोर के तारों ने मिलकर गया
और स्वर्गदूत ने प्रसन्न होकर जयजयकार किया।
8 “अय्यूब, जब सागर धरती के गर्भ से फूट पड़ा था,
तो किसने उसे रोकने के लिये द्वार को बन्द किया था।
9 उस समय मैंने बादलों से समुद्र को ढक दिया
और अन्धकार में सागर को लपेट दिया था (जैसे बालक को चादर में लपेटा जाता है।)
10 सागर की सीमाऐं मैंने निश्चित की थीं
और उसे ताले लगे द्वारों के पीछे रख दिया था।
11 मैंने सागर से कहा, ‘तू यहाँ तक आ सकता है किन्तु और अधिक आगे नहीं।
तेरी अभिमानी लहरें यहाँ तक रुक जायेंगी।’
12 “अय्यूब, क्या तूने कभी अपनी जीवन में भोर को आज्ञा दी है
उग आने और दिन को आरम्भ करने की?
13 अय्यूब, क्या तूने कभी प्रात: के प्रकाश को धरती पर छा जाने को कहा है
और क्या कभी उससे दुष्टों के छिपने के स्थान को छोड़ने के लिये विवश करने को कहा है
14 प्रात: का प्रकाश पहाड़ों
व घाटियों को देखने लायक बना देता है।
जब दिन का प्रकाश धरती पर आता है
तो उन वस्तुओं के रूप वस्त्र की सलवटों की तरह उभर कर आते हैं।
वे स्थान रूप को नम मिट्टी की तरह
जो दबोई गई मुहर की ग्रहण करते हैं।
15 दुष्ट लोगों को दिन का प्रकाश अच्छा नहीं लगता
क्योंकि जब वह चमचमाता है, तब वह उनको बुरे काम करने से रोकता है।
16 “अय्यूब, बता क्या तू कभी सागर के गहरे तल में गया है?
जहाँ से सागर शुरु होता है क्या तू कभी सागर के तल पर चला है?
17 अय्यूब, क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा है, जो मृत्यु लोक को ले जाते हैं?
क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा जो उस मृत्यु के अन्धेरे स्थान को ले जाते हैं?
18 अय्यूब, तू जानता है कि यह धरती कितनी बड़ी है?
यदि तू ये सब कुछ जानता है, तो तू मुझकों बता दे।
19 “अय्यूब, प्रकाश कहाँ से आता है?
और अन्धकार कहाँ से आता है?
20 अय्यूब, क्या तू प्रकाश और अन्धकार को ऐसी जगह ले जा सकता है जहाँ से वे आये है? जहाँ वे रहते हैं।
वहाँ पर जाने का मार्ग क्या तू जानता है?
21 अय्यूब, मुझे निश्चय है कि तुझे सारी बातें मालूम हैं? क्योंकि तू बहुत ही बूढ़ा और बुद्धिमान है।
जब वस्तुऐं रची गई थी तब तू वहाँ था।
22 “अय्यूब, क्या तू कभी उन कोठियारों में गया हैं?
जहाँ मैं हिम और ओलों को रखा करता हूँ?
23 मैं हिम और ओलों को विपदा के काल
और युद्ध लड़ाई के समय के लिये बचाये रखता हूँ।
24 अय्यूब, क्या तू कभी ऐसी जगह गया है, जहाँ से सूरज उगता है
और जहाँ से पुरवाई सारी धरती पर छा जाने के लिये आती है?
25 अय्यूब, भारी वर्षा के लिये आकाश में किसने नहर खोदी है,
और किसने भीषण तूफान का मार्ग बनाया है?
26 अय्यूब, किसने वहाँ भी जल बरसाया, जहाँ कोई भी नहीं रहता है?
27 वह वर्षा उस खाली भूमि के बहुतायत से जल देता है
और घास उगनी शुरु हो जाती है।
28 अय्यूब, क्या वर्षा का कोई पिता है?
ओस की बूँदे कहाँ से आती हैं?
29 अय्यूब, हिम की माता कौन है?
आकाश से पाले को कौन उत्पन्न करता है?
30 पानी जमकर चट्टान सा कठोर बन जाता है,
और सागर की ऊपरी सतह जम जाया करती है।
31 “अय्यूब, सप्तर्षि तारों को क्या तू बाँध सकता है?
क्या तू मृगशिरा का बन्धन खोल सकता है?
32 अय्यूब, क्या तू तारा समूहों को उचित समय पर उगा सकता है,
अथवा क्या तू भालू तारा समूह की उसके बच्चों के साथ अगुवाई कर सकता है?
33 अय्यूब क्या तू उन नियमों को जानता है, जो नभ का शासन करते हैं?
क्या तू उन नियमों को धरती पर लागू कर सकता है?
34 “अय्यूब, क्या तू पुकार कर मेघों को आदेश दे सकता है,
कि वे तुझको भारी वर्षा के साथ घेर ले।
35 अय्यूब बता, क्या तू बिजली को
जहाँ चाहता वहाँ भेज सकता है?
और क्या तेरे निकट आकर बिजली कहेगी, “अय्यूब, हम यहाँ है बता तू क्या चाहता है?”
36 “मनुष्य के मन में विवेक को कौन रखता है,
और बुद्धि को कौन समझदारी दिया करता है?
37 अय्यूब, कौन इतना बलवान है जो बादलों को गिन ले
और उनको वर्षा बरसाने से रोक दे?
38 वर्षा धूल को कीचड़ बना देती है
और मिट्टी के लौंदे आपस में चिपक जाते हैं।
39 “अय्यूब, क्या तू सिंहनी का भोजन पा सकता है?
क्या तू भूखे युवा सिंह का पेट भर सकता है?
40 वे अपनी खोहों में पड़े रहते हैं
अथवा झाड़ियों में छिप कर अपने शिकार पर हमला करने के लिये बैठते हैं।
41 अय्यूब, कौवे के बच्चे परमेश्वर की दुहाई देते हैं,
और भोजन को पाये बिना वे इधर—उधर घूमतें रहते हैं, तब उन्हें भोजन कौन देता है?
39 “अय्यूब, क्या तू जानता है कि पहाड़ी बकरी कब ब्याती हैं?
क्या तूने कभी देखा जब हिरणी ब्याती है?
2 अय्यूब, क्या तू जानता है पहाड़ी बकरियाँ और माता हरिणियाँ कितने महीने अपने बच्चे को गर्भ में रखती हैं?
क्या तूझे पता है कि उनका ब्याने का उचित समय क्या है?
3 वे लेट जाती हैं और बच्चों को जन्म देती है,
तब उनकी पीड़ा समाप्त हो जाती है।
4 पहाड़ी बकरियों और हरिणी माँ के बच्चे खेतों में हृष्ट—पुष्ट हो जाते हैं।
फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं, और फिर लौट कर वापस नहीं आते।
5 “अय्यूब, जंगली गधों को कौन आजाद छोड़ देता है?
किसने उसके रस्से खोले और उनको बन्धन मुक्त किया?
6 यह मैं (यहोवा) हूँ जिसने बनैले गधे को घर के रूप में मरुभूमि दिया।
मैंने उनको रहने के लिये रेही धरती दी।
7 बनैला गधा शोर भरे नगरों के पास नहीं जाता है
और कोई भी व्यक्ति उसे काम करवाने के लिये नहीं साधता है।
8 बनैले गधे पहाड़ों में घूमते हैं
और वे वहीं घास चरा करते हैं।
वे वहीं पर हरी घास चरने को ढूँढते रहते हैं।
9 “अय्यूब, बता, क्या कोई जंगली सांड़ तेरी सेवा के लिये राजी होगा?
क्या वह तेरे खलिहान में रात को रुकेगा?
10 अय्यूब, क्या तू जंगली सांड़ को रस्से से बाँध कर
अपना खेत जुता सकता है? क्या घाटी में तेरे लिये वह पटेला करेगा?
11 अय्यूब, क्या तू किसी जंगली सांड़ के भरोसे रह सकता है?
क्या तू उसकी शक्ति से अपनी सेवा लेने की अपेक्षा रखता है?
12 क्या तू उसके भरोसे है कि वह तेरा अनाज इकट्ठा
तेरे और उसे तेरे खलिहान में ले जाये?
13 “शुतुरमुर्ग जब प्रसन्न होता है वह अपने पंख फड़फड़ाता है किन्तु शुतुरमुर्ग उड़ नहीं सकता।
उस के पैर और पंख सारस के जैसे नहीं होते।
14 शुतुरमुर्ग धरती पर अण्डे देती है,
और वे रेत में सेये जाते हैं।
15 किन्तु शुतुरमुर्ग भूल जाता है कि कोई उसके अण्डों पर से चल कर उन्हें कुचल सकता है,
अथवा कोई बनैला पशु उनको तोड़ सकता है।
16 शुतुरमुर्ग अपने ही बच्चों पर निर्दयता दिखाता है
जैसे वे उसके बच्चे नहीं है।
यदि उसके बच्चे मर भी जाये तो भी उसको उसकी चिन्ता नहीं है।
17 ऐसा क्यों? क्योंकि मैंने (परमेश्वर) उस शुतुरमुर्ग को विवेक नहीं दिया था।
शुतुरमुर्ग मूर्ख होता है, मैंने ही उसे ऐसा बनाया है।
18 किन्तु जब शुतुरमुर्ग दौड़ने को उठती है तब वह घोड़े और उसके सवार पर हँसती है,
क्योंकि वह घोड़े से अधिक तेज भाग सकती है।
19 “अय्यूब, बता क्या तूने घोड़े को बल दिया
और क्या तूने ही घोड़े की गर्दन पर अयाल जमाया है?
20 अय्यूब, बता जैसे टिड्डी कूद जाती है क्या तूने वैसा घोड़े को कुदाया है?
घोड़ा घोर स्वर में हिनहिनाता है और लोग डर जाते हैं।
21 घोड़ा प्रसन्न है कि वह बहुत बलशाली है
और अपने खुर से वह धरती को खोदा करता है। युद्ध में जाता हुआ घोड़ा तेज दौड़ता है।
22 घोड़ा डर की हँसी उड़ाता है क्योंकि वह कभी नहीं डरता।
घोड़ा कभी भी युद्ध से मुख नहीं मोड़ता है।
23 घोड़े की बगल में तरकस थिरका करते हैं।
उसके सवार के भाले और हथियार धूप में चमचमाया करते हैं।
24 घोड़ा बहुत उत्तेजित है, मैदान पर वह तीव्र गति से दौड़ता है।
घोड़ा जब बिगुल की आवाज सुनता है तब वह शान्त खड़ा नहीं रह सकता।
25 जब बिगुल की ध्वनि होती है घोड़ा कहा करता है “अहा!”
वह बहुत ही दूर से युद्ध को सूँघ लेता हैं।
वह सेना के नायकों के घोष भरे आदेश और युद्ध के अन्य सभी शब्द सुन लेता है।
26 “अय्यूब, क्या तूने बाज को सिखाया अपने पंखो को फैलाना और दक्षिण की ओर उड़ जाना?
27 अय्यूब, क्या तू उकाब को उड़ने की
और ऊँचे पहाड़ों में अपना घोंसला बनाने की आज्ञा देता है?
28 उकाब चट्टान पर रहा करता है।
उसका किला चट्टान हुआ करती है।
29 उकाब किले से अपने शिकार पर दृष्टि रखता है।
वह बहुत दूर से अपने शिकार को देख लेता है।
30 उकाब के बच्चे लहू चाटा करते हैं
और वे मरी हुई लाशों के पास इकट्ठे होते हैं।”
40 यहोवा ने अय्यूब से कहा:
2 “अय्यूब तूने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से तर्क किया।
तूने बुरे काम करने का मुझे दोषी ठहराया।
अब तू मुझको उत्तर दे।”
3 इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए परमेश्वर से कहा:
4 “मैं तो कुछ कहने के लिये बहुत ही तुच्छ हूँ।
मैं तुझसे क्या कह सकता हूँ?
मैं तुझे कोई उत्तर नहीं दे सकता।
मैं अपना हाथ अपने मुख पर रख लूँगा।
5 मैंने एक बार कहा किन्तु अब मैं उत्तर नहीं दूँगा।
फिर मैंने दोबारा कहा किन्तु अब और कुछ नहीं बोलूँगा।”
6 इसके बाद यहोवा ने आँधी में बोलते हुए अय्यूब से कहा:
7 अय्यूब, तू पुरुष की तरह खड़ा हो,
मैं तुझ से कुछ प्रश्न पूछूँगा और तू उन प्रश्नों का उत्तर मुझे देगा।
8 अय्यूब क्या तू सोचता है कि मैं न्यायपूर्ण नहीं हूँ?
क्या तू मुझे बुरा काम करने का दोषी मानता है ताकि तू यह दिखा सके कि तू उचित है?
9 अय्यूब, बता क्या मेरे शस्त्र इतने शक्तिशाली हैं जितने कि मेरे शस्त्र हैं?
क्या तू अपनी वाणी को उतना ऊँचा गरजा सकता है जितनी मेरी वाणी है?
10 यदि तू वैसा कर सकता है तो तू स्वयं को आदर और महिमा दे
तथा महिमा और उज्वलता को उसी प्रकार धारण कर जैसे कोई वस्त्र धारण करता है।
11 अय्यूब, यदि तू मेरे समान है, तो अभिमानी लोगों से घृणा कर।
अय्यूब, तू उन अहंकारी लोगों पर अपना क्रोध बरसा और उन्हें तू विनम्र बना दे।
12 हाँ, अय्यूब उन अहंकारी लोगों को देख और तू उन्हें विनम्र बना दे।
उन दुष्टों को तू कुचल दे जहाँ भी वे खड़े हों।
13 तू सभी अभिमानियों को मिट्टी में गाड़ दे
और उनकी देहों पर कफन लपेट कर तू उनको उनकी कब्रों में रख दे।
14 अय्यूब, यदि तू इन सब बातों को कर सकता है
तो मैं यह तेरे सामने स्वीकार करूँगा कि तू स्वयं को बचा सकता है।
15 “अय्यूब, देख तू, उस जलगज को
मैंने (परमेश्वर) ने बनाया है और मैंने ही तुझे बनाया है।
जलगज उसी प्रकार घास खाती है, जैसे गाय घास खाती है।
16 जलगज के शरीर में बहुत शक्ति होती है।
उसके पेट की माँसपेशियाँ बहुत शक्तिशाली होती हैं।
17 जलगज की पूँछ दृढ़ता से ऐसी रहती है जैसा देवदार का वृक्ष खड़ा रहता है।
उसके पैर की माँसपेशियाँ बहुत सुदृढ़ होती हैं।
18 जलगज की हड्डियाँ काँसे की भाँति सुदृढ़ होती है,
और पाँव उसके लोहे की छड़ों जैसे।
19 जलगज पहला पशु है जिसे मैंने (परमेश्वर) बनाया है
किन्तु मैं उस को हरा सकता हूँ।
20 जलगज जो भोजन करता है उसे उसको वे पहाड़ देते हैं
जहाँ बनैले पशु विचरते हैं।
21 जलगज कमल के पौधे के नीचे पड़ा रहता है
और कीचड़ में सरकण्ड़ों की आड़ में छिपा रहता है।
22 कमल के पौधे जलगज को अपनी छाया में छिपाते है।
वह बाँस के पेड़ों के तले रहता हैं, जो नदी के पास उगा करते है।
23 यदि नदी में बाढ़ आ जाये तो भी जल गज भागता नहीं है।
यदि यरदन नदी भी उसके मुख पर थपेड़े मारे तो भी वह डरता नहीं है।
24 जल गज की आँखों को कोई नहीं फोड़ सकता है
और उसे कोई भी जाल में नहीं फँसा सकता।
41 “अय्यूब, बता, क्या तू लिब्यातान (सागर के दैत्य) को
किसी मछली के काँटे से पकड़ सकता है?
2 अय्यूब, क्या तू लिब्यातान की नाक में नकेल डाल सकता है?
अथवा उसके जबड़ों में काँटा फँसा सकता है?
3 अय्यूब, क्या लिब्यातान आजाद होने के लिये तुझसे विनती करेगा
क्या वह तुझसे मधुर बातें करेगा?
4 अय्यूब, क्या लिब्यातान तुझसे सन्धि करेगा,
और सदा तेरी सेवा का तुझे वचन देगा?
5 अय्यूब, क्या तू लिब्यातान से वैसे ही खेलेगा जैसे तू किसी चिड़ियाँ से खेलता है?
क्या तू उसे रस्से से बांधेगा जिससे तेरी दासियाँ उससे खेल सकें?
6 अय्यूब, क्या मछुवारे लिब्यातान को तुझसे खरीदने का प्रयास करेंगे?
क्या वे उसको काटेंगे और उन्हें व्यापारियों के हाथ बेच सकेंगे?
7 अय्यूब, क्या तू लिब्यातान की खाल में और माथे पर भाले फेंक सकता है?
8 “अय्यूब, लिब्यातान पर यदि तू हाथ डाले तो जो भयंकर युद्ध होगा, तू कभी भी भूल नहीं पायेगा,
और फिर तू उससे कभी युद्ध न करेगा।
9 और यदि तू सोचता है कि तू लिब्यातान को हरा देगा
तो इस बात को तू भूल जा।
क्योंकि इसकी कोई आशा नहीं है।
तू तो बस उसे देखने भर से ही डर जायेगा।
10 कोई भी इतना वीर नहीं है,
जो लिब्यातान को जगा कर भड़काये।
“तो फिर अय्यूब बता, मेरे विरोध में कौन टिक सकता है?
11 मुझ को (परमेश्वर को) किसी भी व्यक्ति कुछ नहीं देना है।
सारे आकाश के नीचे जो कुछ भी है, वह सब कुछ मेरा ही है।
12 “अय्यूब, मैं तुझको लिब्यातान के पैरों के विषय में बताऊँगा।
मैं उसकी शक्ति और उसके रूप की शोभा के बारे में बताऊँगा।
13 कोई भी व्यक्ति उसकी खाल को भेद नहीं सकता।
उसकी खाल दुहरा कवच के समान हैं।
14 लिब्यातान को कोई भी व्यक्ति मुख खोलने के लिये विवश नहीं कर सकता है।
उसके जबड़े के दाँत सभी को भयभीत करते हैं।
15 लिब्यातान की पीठ पर ढालों की पंक्तियाँ होती है,
जो आपस में कड़ी छाप से जुड़े होते हैं।
16 ये ढ़ाले आपस में इतनी सटी होती हैं
कि हवा तक उनमें प्रवेश नहीं कर पाती है।
17 ये ढाले एक दूसरे से जुड़ी होती हैं।
वे इतनी मजबूती से एक दूसरे से जुडी हुई है कि कोई भी उनको उखाड़ कर अलग नहीं कर सकता।
18 लिब्यातान जब छींका करता है तो ऐसा लगता है जैसे बिजली सी कौंध गई हो।
आँखे उसकी ऐसी चमकती है जैसे कोई तीव्र प्रकाश हो।
19 उसके मुख से जलती हुई मशालें निकलती है
और उससे आग की चिंगारियाँ बिखरती हैं।
20 लिब्यातान के नथुनों से धुआँ ऐसा निकलता है,
जैसे उबलती हुई हाँडी से भाप निकलता हो।
21 लिब्यातान की फूँक से कोपले सुलग उठते हैं
और उसके मुख से डर कर दूर भाग जाया करते हैं।
22 लिब्यातान की शक्ति उसके गर्दन में रहती हैं,
और लोग उससे डर कर दूर भाग जाया करते हैं।
23 उसकी खाल में कही भी कोमल जगह नहीं है।
वह धातु की तरह कठोर हैं।
24 लिब्यातान का हृदय चट्टान की तरह होता है, उसको भय नहीं है।
वह चक्की के नीचे के पाट सा सुदृढ़ है।
25 लिब्यातान जागता है, बली लोग डर जाते हैं।
लिब्यातान जब पूँछ फटकारता है, तो वे लोग भाग जाते हैं।
26 लिब्यातान पर जैसे ही भाले, तीर और तलवार पड़ते है
वे उछल कर दूर हो जाते है।
27 लोहे की मोटी छड़े वह तिनसे सा
और काँसे को सड़ी लकड़ी सा तोड़ देता है।
28 बाण लिब्यातान को नहीं भगा पाते हैं,
उस पर फेंकी गई चट्टाने सूखे तिनके की भाँति हैं।
29 लिब्यातान पर जब मुगदर पड़ता है तो उसे ऐसा लगता है मानों वह कोई तिनका हो।
जब लोग उस पर भाले फेंकते हैं, तब वह हँसा करता है।
30 लिब्यातान की देह के नीचे की खाल टूटे हुऐ बर्तन के कठोर व पैने टुकड़े सा है।
वह जब चलता है तो कीचड़ में ऐसे छोड़ता है। मानों खलिहान में पाटा लगाया गया हो।
31 लिब्यातान पानी को यूँ मथता है, मानों कोई हँड़ियाँ उबलती हो।
वह ऐसे बुलबुले बनाता है मानों पात्र में उबलता हुआ तेल हो।
32 लिब्यातान जब सागर में तैरता है तो अपने पीछे वह सफेद झागों जैसी राह छोड़ता है,
जैसे कोई श्वेत बालों की विशाल पूँछ हो।
33 लिब्यातान सा कोई और जन्तु धरती पर नहीं है।
वह ऐसा पशु है जिसे निर्भय बनाया गया।
34 वह अत्याधिक गर्वीले पशुओं तक को घृणा से देखता है।
सभी जंगली पशुओं का वह राजा हैं।
मैंने (यहोवा) लिब्यातान को बनाया है।”
© 1995, 2010 Bible League International